अमित:
भुक्ता बुद्धिहीन एक दिन अपने गधे पर सवार बाज़ार के बीच निकल रहा था। गधा एकदम बुलेट ट्रेन की स्पीड से जा रहा था। दोनो तरफ़ बड़े-बड़े मॉल, चमक-धमक, विदेशी ब्रैण्ड की गाड़ियॉं, ज़ूॅं ज़ां करती हुई आएँ-बाएँ से निकल रही थी। एक ने भुक्ता से पूछा, “अरे इतनी फ़ुर्ती से कहॉं जा रहे हो? क्या हो गया?”
भुक्ता बुद्धिहीन बोला, जहॉं ये गधा ले जाए वहीं। मैं कहीं नहीं जा रहा, यह गधा मुझे ले जा रहा है। सुनने वाले सब हॅंसने लगे और बोले, “देखो, अपने गधे को यह नहीं मना सकता। कह रहा है जहॉं गधा ले जा रहा है वहीं जा रहा हूँ। अरे ऐसे कैसे तुम कहीं भी जा रहे हो? तुम्हे गधे को हॉंकना चाहिये, जहॉं तुम जाना चाहते हो।” बाद में भुक्ता ने बताया कि भई क्या है कि जब गधा नया-नया लिया था तब तो मैं इसे इधर-उधर घुमाने ले जाता था। जिधर कहता, उधर ही मुड़ जाता। घूमने में इसे बड़ा मज़ा आता। लेकिन अब यह अपने रंग दिखाने लग गया। जैसे ही कहीं भी बाज़ार आ जाये तो यह भड़क जाता था। बाएँ मोड़ूँ तो दाएँ जायेगा, दाएँ ले जाउॅं तो बाएँ।
बाज़ार के सामने तो मेरी एक नहीं मानता था। फिर बाज़ार में, गधे के साथ मेरी ऐसी खींचातानी देख कर लोग मेरी हॅंसी उड़ाते। कहते थे कि देखो कैसा बेवकूफ़ आदमी है, इसका पाला हुआ गधा ही इसकी बात नहीं मानता। मेरी बहुत बेइज्ज़ती हाने लगी। तो इसका मैने एक बड़ा सीधा इलाज ढूंढ लिया।
मैंने गधे से बोल दिया कि ठीक है मुझे वहीं जाना है जहॉं तुझे! अब का कल्लेगा बता। झगड़ा ही मिट गया। किसी को पता ही नहीं चलता कुछ। सब सोचते हैं कि क्या मज़े से जा रहा है। रफ़्तार देख कर सबको लगता है कि किसी ज़रूरी काम से जा रहा होगा। तबसे मेरी और मेरे गधे की इज्ज़त भी बढ़ गई है बाज़ार में।
भुक्ता की बात सुन सब खुश हो गए और उसकी सूझ-बूझ की तारीफ़ करने लगे। उतने में गधे ने पश्चिम की ओर मुॅंह किया और अचानक तेज़ दौड़ लगा दी। भुक्ता पीछे गिरते- गिरते किसी तरह संभला और जिस तरफ़ गधा ले जा रहा था उस ओर ठण्डी हवा का मज़ा लेते हुए खुशी से जाने लगा।
कुछ सालों में भक्ता पूरी तरह भूल चुका था कि उसने गधा लिया क्यों था और ज़िन्दगी में उसे किधर जाना था, क्या करना था। इससे भुक्ता की ज़िन्दगी बहुत आसान हो गई थी। अब उसे अपने लिये कुछ सोचना ही नहीं पड़ता।