राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में ऐसे मनाई जाती है होली

सुमन चौहान व नारायणी भील:

गाँव के लोगों से बात करने पर पता चला कि होली के एक महीने पहले एक लकड़ी का पिलर गाँव में गाड़ दिया जाता है। एक महीने बाद में यहीं होली बनेगी और फिर वहां पर होली मनाई जाती है। इसके अधिकतर खेजड़ी के पेड़ की लकड़ी लाते हैं। लकड़ी गाँव के बीच किसी खुली जगह पर गाड़ते हैं। जहाँ पर पहले से होली जलाई जाती रही है उसी स्थान पर गाड़ते हैं। अधिकतर बार यह स्थान उस जगह होता है जहाँ गाँव बसाने के समय सबसे पहले लोग बसे थे। किसी गाँव में यह स्थान गाँव के मुखिया के घर के पास भी होता है।  

होली जलने के दिन पहले से  गाड़ी गई लकड़ी पर एक नारियल बाँधते हैं। जब होली जलाते हैं तो लकड़ियों को फूल मालाओं और बंदनवार से सजाते हैं। जलती हुई होली से उस लकड़ी को बाहर निकालते हैं। कहते हैं कि प्रहलाद को हमने बाहर निकाल लिया। फिर लोग जलती हुई होली को उठाकर किसी पास के कुएं में डालते हैं।  तब कहते हैं कि होलिका का दहन हो गया और हमने इसको ठंडा कर दिया। 

जिनकी नई शादी हुई है या बच्चा हुआ है वे लड़के लड़कियां होली के चारों और नाचते गाते हैं। ऐसे लड़के ही जलती हुई लकड़ी को बाहर निकालते हैं। पहले जलती होली के चारों तरफ डांडिया नृत्य करते थे। आजकल  यह कम हो गया है। 

कुँए के पास औरतें इकठ्ठा होकर गालियां निकालती हैं और अश्लील गीत गाती हैं। यह प्रथा भी अब कम हो रही है। कहीं कहीं अभी भी कालबलिया जाति की महिलाएं चंग बजाती हुई घर घर जाकर फागन गाती हैं और अनाज या पैसे मांगती हैं। फागन में भी घर वाले को गीतों में बुरा भला कहती हैं। लेकिन इस बात का कोई बुरा नहीं मानता। लोग जवाब में भी ऐसे गीत एक दुसरे के लिए गाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इस तरह से  इन्होंने होलिका को तो बुरा कहा है और प्रहलाद को बचाया है।

यहां पर रंग खेलन तेरह दिन बाद में रंग तेरस के दिन होता है। किसी किसी जगह सात दिन बाद रंग खेलते हैं।

राजस्थान के प्रतापगढ़ ज़िले की आदिवासी महिलाओं ने बताया कि उनके यहां पर तो जब होली जलाने वाले दिन लड़कियां व्रत रखती हैं। दिन भर आदमी औरतें सब व्रत रखते हैं। फिर लड़कियां शाम को जब होली जलाई जाती है तब वहां जाती हैं और उसके आसपास नाचती हुई घूमती हैं और ऐसे करते हुए होली को ठंडा करती हैं। दूसरे दिन फिर सब सज कर जाते हैं और होली के आस पास खेल खेलती है। आदमी बिल्कुल सफेद कपड़े पहनते हैं और महिलाएं अपने पारंपरिक पोशाक पहनती हैं।

फीचर्ड फोटो प्रतीकात्मक है।

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  • सुमन चौहान / Suman Chouhan

    सुमन जी, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले से हैं। वह खेतिहर खान मज़दूर शक्ति संगठन और आधारशिला विद्यालय के साथ जुड़ी हुई हैं और कई सालों से आदिवासी बालिकाओं के शिक्षा और स्थानीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।

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