अखिलेश कुमार:
मांडवी का जन्म 1973 में बिहार के अररिया ज़िले के एक छोटे से गाँव कुंवारी में हुआ, वहीं से मांडवी ने आठवीं तक पढ़ाई की और फिर उसके बाद कहीं पढ़ाई नहीं की। मांडवी हमेशा मुस्कुराती रहती थी, ऐसा लगता था कि उसका जिंदगी में कभी दुख से वास्ता नहीं पड़ा। सुख-दुख से जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था, और वह हमेशा मुस्कुराती ही रहती थी। बचपन में उसने गाँव की लड़कियों की एक टोली बना ली थी जो अपनी शरारतों से पूरे गाँव के लोगों को हँसाती भी थी और तंग भी करती थी। गाँव के बगीचों से फल चुराना मांडवी और उसकी टोली की पसंदीदा शरारतों में से थी। फिर जिसके यहाँ से वो जो भी फल चुराती, उससे जाकर वो बोलती, “चाचा तोहर आम हम तोरी लेली ह!” ऐसा सुनकर चाचा उनके पीछे लाठी लेकर दौड़ता। मांडवी और उसकी टोली आगे-आगे और चाचा उनके पीछे-पीछे। सभी सहेलियाँ इकट्ठे होकर किसी के आम तो किसी की लीची तो खोजने और तोड़ने की फिराक में लगे रहते।
13 वर्ष की छोटी सी उम्र में मांडवी की शादी रामपुर कोदर कट्टी (अररिया) के रहने वाले हरीराम यादव से कर दी गई जिसकी उम्र 42 वर्ष की थी। हरीराम पहले भी एक शादी कर चुका था। शादी के तुरंत बाद ही पति जब खेती करने चला गया तो मांडवी 7 सात रोज तक रोती रही। किसी तरह वह अपना घर चलाने लगी और कुछ महीनों के बाद मांडवी ने अपने ससुराल की महिलाओं के साथ बैठना और सबके साथ गपशप करना चालू कर दिया। इस तरह से गाँव की महिलाओं से बातचीत करके मांडवी फिर से खुश रहने लगी। महिलाओं के साथ लगातार मेलजोल के बाद मांडवी को देखा कि गाँव की सभी महिलाए अशिक्षित हैं, इसके बाद उसने इन महिलाओं को शाम में बुलाकर पढ़ाना चालू कर दिया।

धीरे-धीरे लगभग 50 महिलाएँ मांडवी के यहाँ आने लगी, लेकिन समस्या ये थी कि रौशनी की कमी के कारण पढ़ाई करना बहुत मुश्किल था। ऐसे में मांडवी के पापा ने उसे कुछ रुपये दिये जिससे उसने कैरोसीन तेल खरीदकर उसे एक कांच बोतल में भर लिया और उसके ढक्कन में छेद कर कपड़ा की एक बाती डालकर उसका छोटा सा लैंप बना लिया। अब इसी रोशनी के साथ सभी महिलाएँ खाने के बाद 8:00 बजे से 8:30 बजे तक मांडवी के पास पढ़ने जाती। इन महिलाओं ने बहुत ज़्यादा कुछ तो नहीं लेकिन अपना नाम-पता लिखना तो सीख ही लिया था।
जब ये बात बीडीओ (प्रखंड विकास अधिकारी) को पता चली तो वह मांडवी के घर पर आया और महिलाओं की फोटो खींचने लगा। उसने महिलाओं से पूछा कि यह जो आप लोगों को पढ़ाते हैं, उसके लिए आपसे रूपये भी लेते हैं? तो सभी ने जवाब दिया कि नहीं फ्री में पढ़ाते हैं। तब बीडीओ ने मांडवी से कहा कि आप कल ब्लॉक में आकर मिलिये और हम आपको साक्षर भारत के टीचर के रूप में जोड़ देंगे। जब मांडवी बीडीओ के दफ्तर पहुंची तो उसके स्टाफ ने कहा कि 1100 रुपए देंगी तो आपको जोड़ देंगे। यह सुनकर मांडवी बोली, “हम यहाँ बिकने के लिए नहीं आए हैं, जो करते हैं अपनी मर्ज़ी से करते हैं। हमें नहीं करनी आपकी नौकरी, हमें जो काम अच्छा लगेगा वही काम करेंगे।”
मांडवी के पति हरीराम की पहली पत्नी रेखा देवी थी, जो अपने पति को छोड़कर जा चुकी थी। लेकिन रेखा देवी का वोटर आईडी कार्ड वहीं छूट गया था, एक बार चुनाव में मांडवी के पति ने रेखा देवी के वोटर आईडी कार्ड से मांडवी को जबरदस्ती वोट डालने भेज दिया। यहाँ वोट डालते समय अक्सर स्थानीय प्रतिनिधि महिलाओं को हाथ पकड़कर अपनी मर्ज़ी से वोट डलवाते थे जो मांडवी को बहुत बुरा लगा। उसने इसका विरोध किया और कहा, “हम अभी नई बहू हैं, ऐसे में आप लोग कैसे मेरा हाथ पकड़कर दूसरे के नाम से वोट गिरा रहे हैं? यह हमें पसंद नहीं है।” फिर मांडवी ने अपना खुद का वोटर आईडी बनाकर अपनी मर्ज़ी के प्रतिनिधि को वोट डालना शुरू किया।