विश्वजीत नास्तिक:
एक ही दुनिया में कहीं सुबह है तो कहीं रात,
कहीं विकसित देश है तो कहीं विकासशील राज्य
कहीं सब चीजों से संपन्न शहर है तो,
कहीं गांव से बाहर घर के ऊपर छत भी नहीं!
कोई अरबो के महल में रह रहे हैं तो,
कोई गगन से हो रहे झांझावत में सिकुड़ते हुए |
एक ही दुनिया में कहीं सुबह है तो कहीं रात,
कहीं जाति, धर्म ,लिंग, वर्ण, वर्ग से जकड़े समाज,
तो कहीं राजनीतिक दलो का कोहराम|
हमारे देश को आज़ाद हुए 75 साल हो गए ,
आज भी महिलाये पुरुष के हाथों तले दबे रह गए..
आज भी गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, बलत्कार दिख गए….
जरा सोचिए क्या हम आजाद हो गए?