नौशेरवाँ आदिल:
मेरा नाम नौशेरवाँ आदिल है। मैं अररिया बिहार का रहने वाला हूँ और इस्लाम धर्म के सेखडा जाति से हूँ। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ। मेरी माँ और पिता का मानना-कहना है कि मेरी पैदाइश जुलाई 1998 की है। वो ये भी बताते हैं कि मैं बचपन से ही बहुत कमज़ोर था। अभी मेरी उम्र 24 साल है। मुझे ईसीनोफेलिया नाम की एक बीमारी है, डॉक्टरों ने मुझे बताया कि मैं शारीरीक रूप से कुपोषण का शिकार हूँ, लेकिन मानसिक रूप से एकदम स्वस्थ हूँ।
मेरे परिवार में कुल 10 लोग हैं- मेरी दादी, मम्मी, पापा, हम 5 भाई और 2 बहन। मैं पढ़ाई करता हूँ और साथ-साथ संगठन के साथ जुड़ कर काम कर रहा हूँ। मेरे से छोटा एक भाई बैंगलोर में काम करता है। एक 13-14 वर्ष की उम्र का भाई मदरसे में पढ़ रहा है, एक भाई सरकारी स्कूल में कक्षा आठवीं में पढ़ रहा है और सबसे छोटा वाला अभी घर पर ही है। मेरी एक बहन इंटर की पढ़ाई कर रही है और एक तीसरी कक्षा में पढ़ रही है।

2 साल पहले तक भी मेरे पिताजी ही अकेले कमाने वाले व्यक्ति थे और घर चलाते थे। वे भी साल में 6 महीने ही काम करते थे। वे घर-परिवार की समस्याओं से आगे नहीं निकल पाए, जिसके चलते हम सब भाई-बहन सही से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। अभी भी पैसे के अभाव में मेरे भाई-बहन उच्च शिक्षा सही से प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।
मैं शुरुआती समय में टयूशन पढ़ता था, उसके कुछ समय बाद मदरसे में पढ़ने गया, लेकिन फिर दो साल बाद ही वापस घर आ गया। इसके बाद पास के ही एक स्कूल में मैंने नाम लिखाया, जहाँ मैंने एक साल तक पढ़ाई की। एक साल के बाद मैंने अपने नानी के घर जाकर वहाँ के एक निजी (प्राइवेट) स्कूल में कक्षा चार में दाखिला लिया। लेकिन 18 महीने के बाद आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण मुझे प्राइवेट स्कूल छोड़कर एक सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। कक्षा 6 में आने के बाद मैं गाँव के विजय नाम के टीचर के पास कोचिंग करने लगा। वहीं से मेरे भीतर पढ़ने-लिखने की जिज्ञासा बढ़ी।
जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ राजनैतिक और आर्थिक रूप से बड़े लोगों का दबदबा रहा है जो आज तक भी डरा-धमका कर काम करवा लेते हैं। मेरे जीवन की एक घटना ने मेरी सोच और जीवन को काफ़ी बदल दिया। मेरे परिवार का एक ज़मीन का विवाद था, लेकिन पंचायती के दिन मेरे पिता जी घर में नहीं थे और मुझे अपनी बात उस पंचायत में रखनी थी। लेकिन एक पूर्व सरपंच जिसकी राजनीतिक पहुँच है, वह मुझे आकर डांट दिया और बोला कि तुम नहीं बोलोगे, तुम्हारा चाचा बोलेगा। लेकिन मेरे चाचा को कुछ भी कहना-बोलना नहीं आता था। इसके बाद मैने उसी दिन निर्णय लिया और मन में ठाना कि मुझे कुछ बनना है, जिससे मुझे कोई भी मेरी बात रखने पर डांट न सके।
2021 में मुझे एक दोस्त के माध्यम से जन जागरण शक्ति संगठन नाम के एक ग्रुप के बारे में पता चला, जहाँ पर युवाओं को वालंटियर/कार्यकर्ता के रूप में जोड़ने के लिए इंटरव्यू चल रहे थे। मैं भी इच्छुक हो कर इंटरव्यू दिया, जिसमें मेरा सिलेक्शन भी हो गया। संगठन से जुड़ने के बाद मैं अगले एक महीने संगठन द्वारा चलाये गए इंटर्नशिप प्रोग्राम में प्रतिभागी बना और सक्रिय रूप से जुड़ा और संगठन के बारे में गहराई से जाना। संगठन द्वारा युवा कार्यक्रम चलाया जाता है, जिसके लिए 2 व्यक्तियों की एक टीम बनाई जाति है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर, गाँव-गाँव यूथ क्लब खोलते/गठित करते हैं। हर गाँव के क्लब का संचालन करने के लिए एक संचालक चुनते हैं। मुझे युवा कार्यक्रम के तहत संचालक के रूप में चुना गया। अतः दो महीने मैंने क्लब के संचालक के रूप में काम किया जिसके बाद मुझे क्लब के कार्यकर्ता के रूप में चुना गया। वर्तमान में, मैं इस युवा कार्यक्रम के तहत, गाँव में युवाओं के साथ मिलकर गीत, नारे और शिक्षा को लेकर जागरूकता फ़ैलाने का काम कर रहा हूँ।
घरवालों की तरफ़ से इस तरह के काम करने के लिए मुझे अनुमति नहीं मिली है। लेकिन मुझे सामाजिक काम करना पसंद है, तो मैं अपनी ज़िद और मेरी मम्मी द्वारा मिल रहे थोड़े से सपोर्ट के साथ पूरी तरह से इस काम में उतर गया हूँ। मेरा सपना है कि मैं एक अच्छा टीचर बनू और पूरी इमानदारी के साथ गरीब, किसान, वंचितों और शोषितों के बच्चों को पढाऊँ, ताकि वो बच्चे भी अपने हक़-अधिकारों के बारे में जाने, उनके साथ हो रहे ऊँच-नीच, भेदभाव पर अपनी आवाज़ उठाये और अपने हक़ की लड़ाई खुद लड़ सके। मैं समाज सेवी भी बनना चाहता हूँ।