विश्वजीत नास्तिक:
अररिया, बिहार | कक्षा 12वी

तेरी यादों का मौसम,
बेमौसम बरसात की तरह है…,
जब भी आती है,
मुझे भीगा जाती है…।

तेरी जुल्फों की महक,
निशा की रात रानी की तरह है,
जब भी महकती है,
मुझे बहा ले जाती है…।

तेरे माथे की काली बिंदी,
मेरे शरीर पर बने तिल की तरह है,
जब भी देखता हूँ,
मैं खिल जाता हूँ…।

तेरी पैरों की घुंघरू की आवाज़,
पहाड़ों से गिरने वाली झरनों की तरह है,
मैं जब भी सुनता हूँ,
मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती है…।

तेरी आवाज़ कोयल की मीठी बोली की तरह है,
मैं जब भी सुनता हूँ, मुझे डूबा ले जाती है…।

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