राजेश उपाध्याय:
पाश का पूरा नाम अवतार सिंह संधु था, वे एक युवा पंजाबी कवि थे। उन्होंने युवा सपनों की कविताएं लिखी, अपने देश के बारे में कविता लिखी, प्रेम की कविताएं लिखीं, इंकलाब की कविताएं लिखीं, उम्मीद की कविताएं लिखीं, परेशानी की कविताएं लिखीं, एक अदम्य जिजीविषा की कविताएं लिखीं। उन्होंने शोषक सरकार और समाज को ललकारते हुए और खालिस्तानी रूढ़िवादियों के खिलाफ कविताएं लिखीं। वे 9 सितंबर 1950 को जालंधर में पैदा हुए। वहीं एक स्कूल भी खोला। पहली कविता 15 वर्ष कि आयु में 1965 में लिखी। पहली कविता 1967 में छपी। सीआड़, हेम ज्योति और हस्तलिखित हाक पत्रिका का सम्पादन किया। कुछ साल अमेरिका में रहे। 23 मार्च (शहीद भागात सिंह का शहादत दिवस), 1988 को खालिस्तानी आतंकवादियों की गोली के शिकार हुए।
पाश का नाम सामने आते ही एक विशिष्ट कवि का बिम्ब उभर आता है। एक ऐसा कवि जिसकी कविता में पंजाब की ज़मीन की गंध स्पष्ट पहचानी जाती है, लेकिन जिसकी कविता में विश्व की प्रगतिशील क्रांतिकारी कविता से अभिन्नता भी साफ नजर आती है। पाश एक ऐसे कवि थे जिसने विश्व के क्रांतिकारी साहित्य की परंपरा में कलम और कर्म की एकता की धारा से खुद को जोड़ा। इस प्रकार उन्होने नाज़िम हिकमत, क्रिस्टोफर काडवेल, राल्फ फॉक्स, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, पाब्लो नेरुदा व उन तमाम साहित्यकारों में अपना नाम शामिल किया, जिन्होंने अपनी कलम से निकलने वाले शब्दों पर कभी अपनी ओर से सेंसरशिप नहीं लागू किया। और अपने शब्दों के लिए उन्हें जो कीमत चुकानी पड़ी वह चुकाई। इतिहास के कठोर न्याय से उनके कातिल इतिहास के कूड़ेदान में फेंके जा चुके हैं जबकि पाश का काव्य मानवतावादी काव्यात्मक परंपरा को अपने में समेटे, अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ, जिसमें पंजाबी की पूरी उन्मुक्तता शामिल है, पाश को गौरवशाली ढंग से जीवित रखे हुए है।
प्रस्तुत है पाश की दो लंबी कविताओं के कुछ अंश और एक पूरी कविता –
1. सबसे खतरनाक …
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
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सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
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2. हम लड़ेंगे साथी …
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िंदगी के टुकड़े
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कत्ल हुए जज़्बात की कसम खाकर
बुझी हुई नज़रों की काम खाकर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
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हम लड़ेंगे
कि लड़ने के बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अभी तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों
की याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी ……………..
3. तूफान कभी मात नहीं खाते …
हवा का रुख बदलने से
बहुत उछले बहुत कूदे
वे जिनके शामियाने डोल चुके थे
उन्होंने ऐलान कर दिया कि
अब वृक्ष शांत हो गए हैं
जैसे कि जानते ही नया हों
एलानों का तूफ़ानों पर
कोई असर नहीं होता
जैसे कि जानते ही नया हों
कि वह उमस बहुत गहरी थी
जिसमें से तूफान ने जन्म लिया था
जैसे कि जानते ही न हों
तूफ़ानों कि वजह
वृक्ष ही नहीं होते
वरन वह घुटन होती है
धरती का मुखड़ा जो धूल में मिलाती है
ओ भ्रमपुत्रों , सुनो
हवा ने दिशा बदली है
हवा बंद हो नहीं सकती
जब तक कि धरती का मुखड़ा
टहक गुलजार नहीं बनता
तुम्हारे शामियाने आज गिरे
कल गिरे
तूफान कभी मात नहीं खाते