शोषण की सत्ता के खिलाफ सतत संघर्षरत कबीर कला मंच

शिवांशु:

पिछले दिनों मैं फिल्म देखने के क्रम में था उस दौरान मुझे खोजते हुये एक मराठी फिल्म मिली नाम था “कोर्ट” मैंने वो फिल्म देखी, उन दिनों फिल्म की बहुत चर्चा थी। दरअसल फिल्म एक मराठी जनकवि, लोकगायक और दलित कार्यकर्ता नारायण कांबले (वीरा साथीदार) पर चल रहे मुकदमे को दिखाती है। कांबले पर आरोप है कि उसका जनवादी गीत सुन कर मुंबई नगर निगम के एक सफाई कर्मचारी वासुदेव पवार ने आत्महत्या कर ली।

पवार बगैर सुरक्षा उपायों के अंडरग्राउंड गटर की सफाई के लिए उतरा था और वहाँ मृत पाया गया। पुलिस के अनुसार, पवार मरने से दो दिन पहले कांबले की सभा में गया था, जहाँ इस लोकगायक ने गीत गाया था कि सारे सफाई कर्मचारियों को गटर में उतर कर आत्महत्या कर लेनी चाहिए। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं आपको फिल्म की कहानी क्यों सुना रहा हूँ, तो हुआ ये की फिल्म देखते हुये मुझे लगातार शीतल साठे जी और कबीर कला मंच की याद आ रही थी, कई मानों में उनकी जिंदगी का चित्रण ही है ये फिल्म।

तो बात करते हैं कबीर कला मंच की, 2002 के गुजरात दंगों के बाद महाराष्ट्र के पुणे मे कुछ छात्रों के एक समूह ने एक साथ आकर कबीर कला मंच का गठन किया। कबीर काला मंच एक सांस्कृतिक समूह है जिसने अपने संगीत और कविता के माध्यम से सामाजिक असमानता, निम्न वर्गों के शोषण, किसान आत्महत्या, महिला भ्रूण हत्या, दलित हत्याएं और भ्रष्टाचार का बढ़ता जाल आदि विषयों पर आवाज़ उठाई है।

शीतल साठे कबीर कला मंच की प्रमुख गायिकाओं में से हैं जो 2002 से अपने साथियों के साथ दलित पिछड़े लोगों और धार्मिक अंध विशवास के खिलाफ बुलंद स्वर में आवाज उठा रही हैं। शीतल खुद एक बहुत सक्षम कवि, गायिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। शीतल के साथ उनके समूह में उनके पति सचिन माली भी शामिल हैं, इसके साथ ही समूह में सागर गोरखे, रमेश गयचोर आदि साथी कबीर कला मंच के साथ मिलकर अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं।

शीतल अपने गानों से हमेशा समाज के उन मुद्दों पर वार करती हैं जिन पर आम तौर पर लोग बात नहीं करना चाहते। शीतल और उनका समूह मूलतः मराठी भाषी है लेकिन वो कहती हैं कि विरोध की भाषा कुछ भी हो स्वर सबको समझ में आता है। कबीर कला मंच और शीतल हिन्दी में भी बहुत सारे गाने गाते हैं, और ये गाने बड़ी सहजता से सामाजिक मुद्दों को उठाते हैं और विरोध की आवाज को बुलंद करते हैं। शीतल जी का बहुत ही मशहूर गाना है जो युवाओं में खास प्रसिद्ध भी है, उस गाने में डफ़ली बजाती हुई शीतल साठे गाती हैं: 

“ऐ भगत सिंह तू ज़िंदा है, हर एक लहू के क़तरे में 

हर एक लहू के क़तरे में, इन्क़लाब के नारे में” 

शब्द पीछे रह जाते हैं, संगीत और लय लोगों का दिल मोह लेते हैं; “ऐ भगत सिंह तू ज़िंदा है” यह पंक्ति सामाजिक अन्याय के विरुद्ध विद्रोह का प्रतीक बनकर लोगों के लहू में घुल जाती है। यह वह ज़मीन है जहाँ ज्योतिबा फुले, बी आर आंबेडकर, भगत सिंह, कार्ल मार्क्स और अन्य अन्य क्रांतिकारी इकट्ठा होते हैं। शीतल और उनके समूह की आवाज समाज के दलित, दबे कुचले शोषित लोगों में ऊर्जा भरते हुये प्रतीत होती है। उनको गाते हुये सुनने के बाद अपने कुर्ते की बांह चढ़ा कर हमें कुछ कर गुजरने का मन होता है। शीतल और कबीर कला मंच के साथियों के बहुत से मशहूर गाने हैं, सारे ही गानों में विरोध और चेतना का स्वर बुलंन्द है।

इस ग्रुप ने नरेंद्र दाभोलकर और गोविन्द पानसरे, जिनका कट्टरपंथियों ने कत्ल कर दिया था, के बारे में गीत लिखे और गाए। महाराष्ट्र के भांदरा जिले के खैरलांजी गाँव की 2006 की घटना है, जिसमें दलित औरतों (माँ और बेटी) को नंगा करके जुलूस निकालने और बलात्कार करने के बाद (उस माँ और उसके दो बेटों समेत) मार दिया गया था। इस घटना के बाद कबीर कला मंच ने जातिगत भेदभाव और हिंसा की ओर विशेष ध्यान दिया और जातिवाद-विरोधी विषयों पर गीत लिखे और गाए।

इस समूह की ताकत यह है कि इस समूह के लोग अलग-अलग जगहों में हुये जन संघर्षों से निकले हैं। जब भी कोई संघर्ष में होता है, सताया जाता है, जहाँ भी इंसानियत पर ज्यादती होती है वहाँ कबीर कला मंच अथवा उनके गाने संघर्ष में साथ मिलते हैं। यह लोग जनकवि और कलाकार, गीतों और नाटकों के माध्यम से दमन और अत्याचार का विरोध करने वाले लोग हैं। यह लोग अपने आप को इस तरह परिभाषित करते हैं: 

“हम मेहनतकश मजदूर 

सृष्टि के असली करतार 

हम कारीगर, काश्तकार 

इस दुनिया के शिल्पकार 

यह कायनात हमारे काम करने से बनी है 

यह संसार हमारी मेहनत पर कायम है 

धरती के सिरजनहार हैं हम 

जब-जब मुफ़्तखोरों ने, हमसे 

हमारी ही रोटी छीन ली 

तो हम पूरी ताकत से लड़े 

हमारी मुट्ठियाँ तन गईं”                                       -(सागर गोरखे)

इन शब्दों की ताकत मराठी और इनके गायन में अनुभव की जा सकती है। इन गीतों में तथाकथित साहित्यिक उत्कृष्टता पर यह कलाकार डफ़लियों की ताल और हारमोनियम के सुरों पर शब्दों को दोहराते हुए अजब तरीके का समां बांधते हैं, जिसमें अत्याचार का शिकार हुए लोगों को ऊर्जा और संघर्ष करने की ताकत मिलती है। यह कलाकार विभिन्न जगहों पर हुए संघर्षों में शामिल हुए।

लेकिन सरकारों को, सत्तानशीनों को कभी भी हक मांगने वाले, सच बोलने वाले लोग पसंद नहीं होते। कुर्सी का नशा, बोलने वाले को और आवाज उठाने वाले को खतरे की तरह देखता है। जब अंधेरे के दौर में कोई गीत भी गाता है तो हुक्मरानों को लगता है की उनकी सत्ता को कोई खतरा है। इस बात से मुझे मेरे जिले गोंडा के मशहूर शायर “अदम गोंडवी” जी की ग़ज़ल का एक मतला  याद आता है जिसमें वो कहते हैं-

“हमने अदब से हाथ उठाया सलाम को, 

समझा उन्होंने इससे है खतरा निजाम को”

अदम जी कहते हैं कि जब निज़ाम गलत होता है तो सलाम को उठाए गये हाथ से भी उसे सत्ता के लिए खतरा लगता है। शीतल और उनके साथियों के साथ भी यही हुआ। उन पर अलग-अलग जगहों पर केस हुये, कबीर कला मंच के साथी सालों जेल में रहे, अगर उस बारे में लिखने लगें तो उसका अंत नहीं है। सिर्फ गाने और अपनी बात कहने के लिए सालों जेल में रहना, सुनने में जितना अजीब लगता है देखने में उतना ही विद्रुप भी है।

इसी क्रम में 3 अप्रैल 2013 को कबीर कला मंच के सदस्य शीतल साठे और उनके पति सचिन माली को महाराष्ट्र पुलिस ने नक्सल समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। सचिन और उनकी पत्नी लंबे समय से दलित उत्पीड़न और सामाजिक अन्याय के खिलाफ सांस्कृतिक लड़ाई लड़ रहे थे और यही बना उनकी गिरफ्तारी का सबब। एक लंबी लड़ाई के बाद अंततः 3 जनवरी 2017 को सचिन माली को जमानत मिल गई। सचिन की गिरफ्तारी और चार वर्ष का कारावास यह स्पष्ट दिखाता है कि भारतीय राजसत्ता किस तरह जनवादी लड़ाई को कुचलने पर आमादा रहती है। लेकिन तमाम उत्पीड़नों के बावजूद इस लड़ाई में लगे योद्धा अभी भी अपने मोर्चे पर टिके हुए हैं। 

कमाल इस बात का है कि ये कलाकार अभी रुके नहीं हैं और देश में हो रहे अन्य और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। दिल्ली और अन्य जगहों पर हुए नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध हुए संघर्षों में भी। जामिया मिलिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को भी निशाना बनाया गया। कई जगहों पर विद्यार्थियों पर लाठियां बरसा रही पुलिस को गुलाब के फूल दिये। कलाकार शीतल साठे कुछ यूँ गाती हैं: 

“अंग्रेजों से लड़े थे हम 

कौन यह देसी साहब है 

आज़ादी हमारा ख्वाब है 

यह गुलाब नहीं, इन्क़लाब है।”

हर समय में सरकारें आवाज़ उठाने वालों से ऐसे ही डरती रही हैं और ऐसे ही उन्हें जेल में भरती रही हैं। शीतल, सचिन और उनके साथियों को नक्सली बता कर जेल में भर दिया गया, इससे ये बात साफ हो जाती है कि हम लोकतन्त्र का गंदा दिखावा करने वाले वो लोग हैं जो सच सुनना भी पसंद नहीं करते। कबीर कला मंच और साथी इस अंधेरे समय में भी डटे हुये हैं और सवाल पूछ रहे हैं, अपनी बात कह रहे हैं जो बहुत ही प्रेरणादायी है। 

अंत में मैं कबीर कला मंच द्वारा गाये गए मेरे पसंदीदा गानों में से एक गाने के बारे में बताना चाहूँगा जिसने मुझे बहुत प्रेरित भी किया और रुलाया भी। जब शीतल और उनके पति जेल में थे तो कुछ समय बाद शीतल को जमानत मिल गयी लेकिन उनके पति बंद रह गए और फिर शीतल ने अपने बच्चे को जन्म दिया। उसके लिए सचिन माली जी ने एक गाना लिखा जिसे शीतल जी गाती हैं, गाना मराठी में है और उसके बोल हैं-

“काय संघु तुला माझा पिला रे, तुला वादलात जन्म दिला रे।”

जिसका हिन्दी में मतलब है – “मैं तुझे क्या बताऊँ मेरे प्यारे बच्चे, हमने तुम्हें तूफान में जन्म दिया है।” इस गाने को सुनते हुये आप कबीर कला मंच, शीतल राठे, सचिन माली जी का दर्द और संघर्ष समझ सकते हैं। यह गाना खत्म होते होते आप में एक ऊर्जा का विस्तार करेगा। मैं यहाँ गाने की लिंक साझा कर रहा हूँ, आप सब भी सुनिए-

Author

  • शिवांशु / Shivanshu

    शिवांशु, उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले के रहने वाले हैं। शिवांशु अलग-अलग सामाजिक संस्थाओं के साथ पिछले 6 वर्षों से बच्चों की शिक्षा और पुस्तकालय विकास पर काम कर रहे हैं। हाशिए के समुदायों के युवाओं और बच्चों तक शिक्षा पहुँच सके इस बात को सुनिश्चित करने के लिए लाइब्रेरी एजुकेशन, पियर एजुकेशन आदि शैक्षणिक करिकुलम बनाने का काम करते हैं। शिवांशु अवध यूथ कलेक्टिव के साथी हैं और गोंडा में सरयू फाउंडेशन के डायरेक्टर हैं।

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