सलोमी एक्का:

मुंडा (या मुण्डा) जनजाति मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, बंगाल, और अंडमान में निवास करती है। संथाल, हो और खड़िया की तरह ही आस्ट्रो-एशियाटिक या ऑस्ट्रिक या आग्नेय भाषा परिवार में मुंडा, एक वर्ग है। मानव सभ्यता संस्कृति के विकास का सबसे प्रमुख आधार भाषा ही है। समुदाय के साथ सामाजिक जीवन जीने के लिए उसकी भाषा ही विचार संप्रेषण का साधन बनती है। मुंडा जनजाति के लोग मुख्य रूप से मुंडारी भाषा बोलते हैं।

मुंडा आदिवासी भारतवर्ष की एक अति प्राचीन जनजाति है। प्राचीन काल में ये समुदाय सिंधु घाटी में रहा करते थे। वहाँ से कालिबोंगा, उत्तर प्रदेश की मंडी होते हुए, वर्तमान झारखंड में आ बसे। संख्या की दृष्टि से मुंडा समुदाय के लोग झारखंड में सबसे अधिक हैं, उसके बाद ओडिशा के उत्तरी भाग में अधिकतर निवास करते हैं। असम और मध्यप्रदेश में भी मुंडा समुदाय एक अच्छी संख्या में पाए जाते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि मुंडा आदिवासी पहले मोरिया देश में रहते थे। मोरि से मुरा एवं वही मुरा शब्द आगे चलकर मुंडा शब्द में बदल गया। 

मुंडाओं की उत्पत्ति, इतिहास और त्यौहार: ‘हेराल्ड हीलर’ के अनुसार मुंडा लोग किसी एक समय पेलेस्टाइन (फिलिस्तीन) एवं उसके आस-पास में रहा करते थे। प्रमाण के रूप में इस इलाके में मुंडाओं की ससन्दीरी अर्थात कब्रशिला अभी भी पाई जाती हैं। मुंडा लोग मृत व्यक्ति की हड्डी को किसी एक निश्चित समय पर निकालकर अपने पूर्वजों को ज़मीन पर समाधी देते हैं और उस समाधी के ऊपर ससन्दीरी अर्थात क्रबशिला गाड़ देते हैंI 

प्रत्येक मुंडा गाँव में एक मुण्डा परिवया और एक पाहन होता हैI पाहन पुजारी को कहते हैंI पाहन का काम गाँव के धार्मिक अनुष्ठानों को पूर्ण करना होता हैI वह गाँव के सामूहिक पूजा-पाठ करता हैI शादी-विवाह और अच्छी वर्षा के लिए भी पूजा करता हैI इन सबके बदले में गाँव वाले पाहन को गाँव की ओर से कुछ ज़मीन देते हैं, जिसे – पहनई ज़मीन कहा जाता हैI पहले पाहन का चुनाव किया जाता था परन्तु आज कई गाँवों में पाहन का चुनाव वंशगत हो गया हैI मुंडाओं के मुख्य रूप से निम्नलिखित त्योहार हैं – 1. सरहुल | 2. करम | 3. सोहराई | 4. मांगे | 5. फागुI 

सरहुल मुंडाओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे मार्च-अप्रैल महीने में मनाया जाता है। यह फूलों का त्यौहार है। मांगे पर्व को पूस महीने (दिसंबर-जनवरी) के पूर्ण चंद्रमा दिवस में मनाया जाता है। फरवरी-मार्च महीने में फागु उत्सव मनाया जाता है। गाँव की समृद्धि के लिए अगस्त-सितंबर के महीने में करम उत्सव मनाया जाता है। सोहराई अक्टूबर-नवंबर के महीने में मनाया जाता है।

मुंडा लोग जहाँ पूजा करते हैं और बलि चढ़ाते हैं, गाँव के उस स्थान को सरना कहा जाता हैI पारिवारिक पूजा, घर के भीतर की जाती हैI गाँव के पास सखुआ के पेड़ या पीपल के वृक्ष के नीचे का खुला स्थान ही सरना के रूप में माना जाता हैI यहाँ गाँव के ग्राम देवता रहते हैं, यही मुंडाओं का मन्दिर होता हैI

उत्पादन के साधन: मुंडा लोग खेतीहर होते हैंI खेती ही इनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार होता है I मुंडा किसान परिश्रमी होते हैंI मुंडाओं के भौतिक उत्पादन के दो ही आधार है – 1. खेती और 2. जंगलI खेतों से चावल, मडुआ, उरद, मकई तथा गोंदली आदि फसले उगाते हैंI हल-बैल के अलावा अब लोग ट्रैक्टर का भी प्रयोग करने लगे हैंI मुंडा लोग धान को मोरहा में बन्द करके रखते हैं, मोरहा पुआल से बने बिरनी से बनाया जाता हैI बांस से बनी गोलाकार बड़ी टोकरियों मे भी धान रखा जाता है, जिसे दिम्मी कहा जाता हैI

अधिकतर मुंडा लोग परंपरागत साधनों से, नदी-नालों के पानी से और प्रकृति पर निर्भर रहकर खेती करते हैंI मुंडा लोग पाँच-छह महीने खेती–बाड़ी में लगा देते हैं और बाकी समय जंगलों पर निर्भर रहते हैंI लाह (लाख), केन्दू के पत्ते (जिससे बीड़ी बनती है) करंज के बीज, साल के बीज़, महुआ के बीज और मेलआ के फल (इससे तेल निकाला जाता है), आम, जामुन चुनकर हाट मे ले जाकर बेचते हैंI इन उपजों की कीमत उन्हें हमेशा बहुत कम मिलती हैI जबकि बड़े व्यापारी, उद्योगों के मालिक एवं कारोबार करने वाले पूँजीपति, लाखों-करोड़ों का मुनाफ़ा कमाते हैंI

मुंडाओं की समाज व्यवस्था: मुंडा लोग विभिन्न गोत्रों मे विभाजित हैंI माना जाता है कि मुंडा लोग, जब छोटानागपुर में आये थे, तब उनके 21 गोत्र थे, पर आज गोत्रों की संख्या उससे अधिक हैI तोपनो, पूर्ति, मुंडू, भेंगरा, होरो, नाग, सम्मद, बारला, ईटी, संगा आदि मुंडाओं के गोत्र हैं, मुंडारी भाषा में गोत्र को किलि कहा जाता हैI

मुंडा एक न्यायप्रिय एवं सत्यप्रिय जाति हैI मुंडा लोग अपने नियमों का अत्यन्त कठोर रूप से पालन करते हैंI किसी भी नियम, किसी पदाधिकारी के राग, द्वेष, इच्छा, आनिच्छा पर निर्भर रहकर नहीं बनाया जाता हैI ऐसा नियम जिसे सब मानते हैं, वही मुंडाओं की अंतिम सिद्धांत होता हैI 

फीचर्ड फोटो आभार: द वायर हिंदी, इन्कल

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One response to “मुंडा आदिवासी समुदाय का संछिप्त परिचय”

  1. nimabi Avatar

    Thank you very much for sharing, I learned a lot from your article. Very cool. Thanks. nimabi

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