एडविन टोप्पो:
मैं झारखंड के गुमला ज़िले के पुटरुंगी गाँव के एक मध्यवर्गीय परिवार से आता हूँ। मुझे पढ़ने का कोई शौक नहीं था, पर मेरी पढ़ाई प्राइमरी स्कूल तक गाँव में हुई और मैं पढ़ाई में बहुत कमज़ोर था। पर शिक्षकों द्वारा पढ़ाया, बोला हुआ, सब मुझे समझ आता था और याद हो जाता था। इंटर तक पढ़ाई करने के बाद, मैं काम के लिए तमिलनाडु चला गया। पर वहाँ भी मेरा मन नहीं लगा, तो मैं घर वापिस आ गया।फिर एक साल मैंने आईटीआई वेल्डर की पढ़ाई की। इसके बाद मैं फिर से तमिलनाडु वापस जाकर काम करना शुरू किया। पर वहाँ जाकर मुझे मशीन छूने को भी नहीं मिली, तो मैं फिर से वापस लौट आया।
मैंने फिर से आगे पढ़ाई करने का मन बनया, पर मुझे घर चलाने के लिए बोला गया। इस वजह से पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी और गाँव में रहते-रहते, मैं जन संघर्ष समिति की बैठक में जाने लगा। मैंने कभी भी ये बैठक नहीं छोड़ी थी। बैठक में मैंने आदिवासियों की समस्याओं के बारे में बहुत सुना था, और इन सब समस्याओं को सुनकर मुझे बहुत दुःख होता था। इस दुःख को मैंने अपने पिताजी के साथ साझा किया। साझा करते समय हमारी इस विषय पर चर्चा भी होती।
घर में जब मैंने जन संघर्ष समिति से जुड़ने की इच्छा ज़ाहिर की, तो घर वालों ने भी बिना किसी सवाल के हाँ कह दिया। पर कभी चुनाव नहीं लड़ना है, ऐसी शर्त मेरे सामने रखी, क्योंकि घर जाने की छुट्टी आप को नहीं मिलेगी। और इस तरह मैं केन्द्रीय जन संघर्ष समिति में नियमित सदस्य बन गया हूँ, और अपने क्षेत्र में ग्राम सभा मज़बूत करने का कार्य भी करता हूँ। वर्तमान में भी मेरा काम जारी है।