ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह:
एक सदी से केवल घर की नींव पूजने वालों सुन लो;
इक दिन तुमसे ये दीवारें कुंठित होकर प्रश्न करेंगी।
नदियाँ पूजो, सागर पूजो;
उस सागर के तल को पूजो।
लेकिन इन तीनों से पहले;
अपने घर के जल को पूजो।
वरना ये अविचल धाराएं विचलित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….
मुझ पर कपड़े टांग रहे हो;
मुझ पर घड़िया टांग रहे हो।
जब बिटिया की शादी होती;
मुझ पर लड़िया टांग रहे हो।
फिर भी मेरा तिरस्कार क्यों? खंडित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….
जो पत्थर दहलीजों में हैं;
वे पत्थर कुछ अलग नहीं है।
फिर भी उनको पूज रहे हो;
ये करना क्या गलत नहीं है?
इक दिन खुद की अंतरात्मा, शापित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….
इतिहासों की कारिगरियाँ;
दीवारों पर गढ़ी गयी हैं।
राजमहल पर लिखी मिसालें;
पीढ़ी-पीढ़ी पढ़ी गयीं हैं।
आँख में आंसू भरकर, तुमसे कंठित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….
Bahut khoob 🙌🙌