केवल घर की नींव पूजने वालों सुन लो

ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह:

एक सदी से केवल घर की नींव पूजने वालों सुन लो;
इक दिन तुमसे ये दीवारें कुंठित होकर प्रश्न करेंगी।

नदियाँ पूजो, सागर पूजो;
उस सागर के तल को पूजो।
लेकिन इन तीनों से पहले;
अपने घर के जल को पूजो।

वरना ये अविचल धाराएं विचलित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….

मुझ पर कपड़े टांग रहे हो;
मुझ पर घड़िया टांग रहे हो।
जब बिटिया की शादी होती;
मुझ पर लड़िया टांग रहे हो।

फिर भी मेरा तिरस्कार क्यों? खंडित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….

जो पत्थर दहलीजों में हैं;
वे पत्थर कुछ अलग नहीं है।
फिर भी उनको पूज रहे हो;
ये करना क्या गलत नहीं है?

इक दिन खुद की अंतरात्मा, शापित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….

इतिहासों की कारिगरियाँ;
दीवारों पर गढ़ी गयी हैं।
राजमहल पर लिखी मिसालें;
पीढ़ी-पीढ़ी पढ़ी गयीं हैं।

आँख में आंसू भरकर, तुमसे कंठित होकर प्रश्न करेंगी;
एक सदी से….

Author

  • ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह / Gyanendra Pratap Singh

    ज्ञानेंद्र, उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले से हैं। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। वे लगातार थिएटर और फिल्मों से जुड़े हुए हैं और कई शार्ट फिल्में भी बनाई हैं, जिन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं। आजकल ये लखनऊ में रहकर फिल्म जगत और साहित्य के लिए स्वतंत्र लेखन और निर्देशन में सक्रिय हैं। ज्ञानेंद्र गजल, गीत, कविताएँ, कहानियाँ और फिल्मों के लिए लिखते हैं।

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