एड. आराधना भर्गव:
सीधी जिले के वार्ड क्रमांक 06 सेमरिया की जिला पंचायत सदस्य शान्ति कोल जी से मेरी मुलाकात 16/04/2022 को उनके निवास स्थान पर हुई। उनके पति मनोज कोल ने हमें भोजन पर अपने निवास स्थान पर आंमत्रित किया था। हमें जानकारी दी गई थी कि जिला पंचायत सदस्य के घर पर हमें दोपहर का भोजन करना है, तब तक मुझे यह जानकारी नही थी कि जिला पंचायत की सदस्य शान्ति मनोज कोल जी हैं। उनके निवास स्थान पर पहुँचने पर देखा एक महिला जिसने लगभग आधा हाथ का घूंघट डाल रखा है दरवाजे के किनारे पर खड़ी दिखी, उनके पति मनोज कोल जी ने अपना परिचय दिया कि वे जिला पचायत सदस्य के पति हैं और घूंघट डालने वाली महिला जिला पंचायत की सदस्य है। मन यह देखकर बहुत दुःखी हुआ, क्या यही है सम्पूर्ण लोकतांत्रिक गणराज्य?
पितृ सत्ता का इससे अच्छा जीता जागता उदाहरण और क्या मिल सकता था? मेरा मन शान्ति जी से बात करने के लिए आतुर हुआ और मैं उनके साथ उनके रसोई घर में पहुँच गई। मैने कहा भाभी आपने तो भोजन में बहुत सारे पकवान बनाए हैं और देखने से ही लग रहा है कि भोजन बहुत स्वादिष्ट होगा। बड़ी शालीनता से उन्होंने जवाब दिया कि मैं खेत में गेंहू की कटाई कर रही थी, 12ः00 बजे के लगभग मुझे खेत में मोबाइल के माध्यम से सूचना दी गई कि घर में मेहमान आ रहे हैं, लगभग 10 लोगों का भोजन बनाना है। अतः मैने गेंहू काटने के काम को बन्द किया तथा घर में आकर भोजन बनाया।
शान्ति जी से बात करने पर उनकी बातों से पता चला कि वे तो बहुत विद्ववान हैं, जिस सलीके से खेती करती है तथा घर की देखभाल बच्चों की उच्च शिक्षा कराने में पारंगत हैं तो निश्चित तौर पर वे जिला पंचायत में उपस्थित रहकर जिले की विकास योजना का संचालन भी बखूबी करने में सक्षम हैं। नेतृत्व का गुण तो मैने उनके अन्दर कूट-कूट कर भरा हुआ देखा। मैने पूछा, “आप जिला पंचायत की मीटिंग में जाती हैं?” तो उन्होंने कहा, “यहाँ के दबंग लोगों को यह पसन्द नहीं है कि एक महिला जिला पंचायत में अपना प्रतिनिधित्व करे, अतः चाहते हुए भी मैं जो भूमिका जिला पंचायत में निभा सकती हूँ, वह नही निभा पाती।”
इसके बाद मैंने उनसे पूछा, “आप जिला पंचायत के अधिकारी तथा कलेक्टर से, जिला पंचायत के वार्ड क्रमांक 06 के विकास की योजनाओं के संबंध में चर्चा करती है क्या?” तो उनका उत्तर था, “जब मैं खेत एवं घर का संचालन व्यवस्थित तरीके से कर सकती हूँ, तो जिला पंचायत का काम भी मैं करने में सक्षम हूँ, किन्तु क्षेत्र के दबंग नेता ऐसा नहीं चाहते। हमारे यहाँ उच्च जाति के नेताओं का हस्तक्षेप बहुत ज़्यादा है। चाह कर भी हम जिला पंचायत में अपनी भूमिका निभाने में पूर्णतः असमर्थ हैं।” फिर मैंने कहा, “अगर आप जिला पंचायत में जाकर अधिकारियों से बात करके अपने क्षेत्र में विकास का काम करवाएँगी तो क्या होगा?” इस पर उन्होंने कहा कि मुझे, मेरे पति एवं मेरे बच्चों को प्रताड़ित किया जाने लगेगा। हमारा इस गांव में रहना दूभर हो जायेगा।
मेरा अगला सवाल यह था कि आपके घर में रामायण, गीता, या कोई अन्य धार्मिक ग्रंथ है? तो उन्होंने कहा, “हमारे घर में कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है। मैने पूछा, “भारत का संविधान है?” तो उन्होंने कहा, “हाँ है।” फिर मैंने जब उन्हें यह दिखाने को कहा तो देखा कि जिस तरीके से अक्सर धार्मिक ग्रंथ कपड़ों में बाँध कर सुरक्षित रखे जाते हैं, वेसे ही भारत के संविधान को उन्होंने सुरक्षित रखा था। किन्तु उस संविधान का उनके जीवन में क्या उपयोग है, इसका ज्ञान उन्हें नैन था। मैने जब उनसे पूछा कि भारत के संविधान के संबंध में आपको प्रशिक्षण दिया जाये तो? जवाब में उन्होंने खुश होकर कहा, “यह तो हमारे लिये बहुत अच्छी बात होगी और हम लोग भी लगातार प्रशिक्षण लेने का काम करेंगे।”
जिस दिन इस देश को लोगों को भारत के संविधान को पढ़कर अपने अधिकार प्राप्त करने का अनुभव हो जायेगा, उस दिन देश के हर संस्थान में बदलाव महसूस किया जायेगा। हम सब यह जानते हैं कि देश के संस्थान भारत के संविधान के अनुसार संचालित नहीं किये जा रहे हैं। इन संस्थाओं का संचालन सत्ताधीशों के इशारों पर हो रहा है, जिसका परिणाम आज पूरा देश भुगत रहा है। कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका; लोकतंत्र के यह तीनों स्तम्भ चरमरा गये हैं और तीनों की चौकीदारी करने वाला चौथा स्तम्भ पत्रकारिता, पूँजीपतियों की कठपुतली मात्र बनकर रह गया है। वर्तमान सरकार, संविधान को तहस-नहस करने पर उतारू है। हम सभी को मिलकर भारत की संस्थाओं का संचालन भारत के संविधान के अनुकूल किया जाए, इसके लिए सतत संघर्ष करना होगा। यह संघर्ष तभी सम्भव है जब भारत के लोगों को भारत के संविधान का प्रशिक्षण दिया जाए तथा भारत के प्रत्येक नागरिक के पास भारत का संविधान पहुँच सके। भारत के संविधान की रक्षा की ज़िम्मेदारी हम सभी की है, आइये हम सभी मिलकर इस संविधान को बचाने का बीड़ा उठाएँ।