उमेश्वर:
हम हसदेव के आदिवासी हैं,
आक्सीजन बचाने का संघर्ष करते हैं साहब।
जल जंगल जमीन बचाना हमारा धर्म है,
शोषण, अत्याचार, लूट के खिलाफ और संवैधानिक अधिकार से वंचितों को,
न्याय दिलाना हमारा कर्तव्य है साहब।
हम नदी-नाला-पहाड़-प्रकृति से प्रेम करते हैं, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों का पूजा करते हैं।
विकास के नाम से हमारे जंगलों को काटकर कोयला निकाला जाता है।
बदले में प्रकृति उत्तराखंड, हिमाचल ,केरल, उड़ीसा में बाड़-आंधी-तूफान-तबाही लाता है साहब।
प्रकृति का दोहनकर, लालच में फंस जाता है।
तबाही देख कर खूब रोना आता है साहब।
चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं, सुनता नहीं सरकार।
विकास नहीं विनाश हो रहा, सब होगा बेकार।
ना धर्म-कर्म काम आएगा, ना सरकार-पार्टी, ना पैसा काम आएगा,
क्या जी पाओगे आक्सीजन के बिना साहब?
ये है भारत की फेफड़ा, हसदेव का जंगल,
मधुर गुन गुनाते भंवरे, चहकती चिड़िया डाल पर।
दहाड़ते भालू, शेर, चीता और हाथी, खेत-खलिहान घर-दुआर पर।
खेत हरियाली ,जीवन खुशहाली,
जड़ी-बूटी, लघु वनोपज ,कंद-मूल-फल, यही जीवन का आहार।
मत उजाड़ो हसदेव जंगल, इसी से बचा है संसार।
हसदेव उजड़ेगा, दुनिया उजड़ जायेगा, मिट जाएंगी आदिवासी संस्कृतियां।
बचालो हसदेव, और नहीं तो कफ़न भी बिक जाएगा।
फीचर्ड फोटो आभार: गाँव कनैक्शन