रामलाल करियम:
आयेज हमन हसदेव छेत्र के सालही, फतेहपुर, हरिहर पुर के लोग मन फेर जुटे न हमर संग दर्जन भर गाँव के साथी मन भी दु चार सौ ले ज्यादा संख्या मा रहिंन् आउर जंगल जमीन ले कई से बचा बो सोंच के चिंता करत रहेन हिंदी लिखे ला तो जानन नहीं फेर सोचे न अपने भाषा मा लिख बो हमर गाँव उजड़ जाहि त हमन कहाँ जाब हमर लई का मनपार्ट का खा हिं, आये वाले पीढी, ला जमीन जगह नहीं मिलही त ओमन कई से जिहि ये सब कर चिंता करत करत सोचें न की हमर जगह जमीन के लुटाइया मन क र पुतला ला लेस बो काब र की हमर बात ला कोनो नी सुना थे सरगुजा ले रायपुर रेंगत, रेंगत गयेन तभो ले कोनो ला हमर उपर दया नी आथे जैसे की हमन पर्देशिया हंन हमर शुद्ध लेवैया कोनो नी हैं आईसे लागत हे हमर जगह ज़मीन कर लड़ ई हवे काबर की हमर पुरखा में कै पीढी ले रहिंन् बसिंन देव, गुड़ी, शिव शिवाना, डीह डीहारीन, सरना, देवल्ला ला बनाईंन हर पेड़ हर हमर बर पूजनीय हवय हमन बिगर जंगल के नई रह शकन भई लकरा भाजी के खाये वाला जंगल ले हमन ला खाए पिए कर भी चीज मिल थे फेर देखे हवन केते कर मन ला अपन गाँव ला छोड़े के बाद का हाल होवत हे दुसर गाँव मा ज़मीन खरीद के बसबे तभो ले कह थे की अपन ज़मीन ला बेच के आईंन हे दुसर गाँव मा बसे के बाद चुप चाप ताना सह के रहना पड्थे पुरखा मन कौन कस में मेहनत कैर के जगह जमीन ला राखिन् आज हमन अपन जीवन के आधार जल जंगल जमीन, पर्यावरण ला बचाये खातिर हमर लड़ई हवे,सबो संदेश पढाईया, मन ले निवेदन हवे हमर सहयोग करव हमर बर नहीं लेकिन समाज ला बचाये बर, लोग मनकर सांस ला बचाये बर आघू आवा जय आदिवासी, जय जल, जय जमीन, जय जंगल।।जय पर्यावरण
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पेड़ के पेड़ सजिले देते शीतल छाया
पेड़ों ने दी हरियाली फल फूलों की माया।।
साथियों आज हम खा रहे हैं फल पके पकाए हुए,
वो हैं हमारे पुरखो के लगाए हुए,
यदि आज हम पेड़ नहीं बचायेंगे तो सोचिये हमारे बच्चे क्या खायेंगे?
साथियों हम सरगुजा के उन घने जंगलों की बात कर रहे हैं जहाँ काफी संख्या, फलदार, छायादार, आय के साधन के रूप में काफी संख्या में हैं जो आदिवासियों के आजीविका के रूप में प्रकृति द्वारा प्रदत्त हैं। आज भले ही लोगों को ये लेख अच्छा न लगे मगर कुछ वर्षों बाद ये शब्द ज़रूर याद आयेंगे जब क्षेत्र की शांति भंग होगी, पर्यावरण प्रदूषित होगा, जल स्तर घटेगा, वायु प्रदूषण होगा, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण होगा, जीना दूभर हो जायेगा। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा तलाशना पड़ेगी, चारों तरफ धुआंधार, कोयले से निकलने वाली जहरीली गैसें लोगों को गंभीर बीमारी की ओर धकेलेंगी । तब क्या होगा? हम भी खदान का विरोध नहीं करते, विकास का विरोध नहीं करते लेकिन हमारी जो चिंताएं हैं, वे भी तो जायज हैं।
यह क्षेत्र आदिवासियों का क्षेत्र है। पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है, जहाँ पर ग्राम सभा, लोक सभा और विधान सभा से भी बड़ी हैसियत रखती है। ग्राम सभा अपने आप में हाई कोर्ट है। 5 वी अनुसूची क्षेत्र में राज्य सरकार और केंद्र सरकार की एक इंच भी ज़मीन नहीं है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने समता जजमेंट में कही है तो सरकार कैसे ज़मीन खरीद रही है, ग्राम सभा की सहमति के बिना? सरकार को ज़मीन कोल बेयरिंग एक्ट लेनी है तो वहां लेनी चाहिए जहाँ उसकी ज़मीन है। ग्राम सभा के अधिकार में किसी भी सरकार का दखल देशद्रोह की श्रेणी में आता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मान आप नहीं रहे हो, असंवैधानिक काम किया जा रहा है। क्षेत्र में आदिवासियों की ज़मीन को कंपनी के नाम किया जा रहा। हम जानना चाहते हैं कंपनी क्या आदिवासी है? उसके नाम से आदिवासी की ज़मीन को किया जा रहा है। क्षेत्र में टोटल असंवैधानिक कार्य हो रहे हैं जो आने वाले भविष्य के लिए कतई उचित नहीं है। आदिवासियों की, रोजी रोटी, छिन जायेगी, शांत वातावरण, प्रदूषित हो जायेगी, समाजवादी, व्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा।
पैसा तो बहुत कुछ है जनाब लेकिन सब कुछ नहीं है। क्षणिक लाभ के लिए क्षेत्र का विनाश कितना सही है ये सब सोचने की बात है लेकिन आज के समय मे सोचता कौन है? बुद्धिजीवी वर्ग मौन है। कई तो अपनी रोटी सेंक रहे हैं, कई मस्ती कर रहे और कई कंपनी के लिए राह सस्ती कर रहे। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो आने वाली पीढ़ी की बिना चिंता किये, क्या गलत क्या सही बिना विचारे, अंध भक्ति में मस्त हैं। लोग त्रस्त हैं, चाहे जो हो, जैसा हो, लेकिन एक बात तो तय है, क्षेत्र में खदान खुलती है तो करोडो की संख्या में पेड़ कटेगा, हज़ारों की संख्या में परिवार विस्थापित होंगे, उनके आजीविका के साधन विलुप्त होंगे, आदिवासी संस्कृति प्रभावित होगी और आने वाली पीढ़ी रोड पर होगी।
सरगुजा के जंगल को विकास के नाम पर न उजाड़ा जाए वरना गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे,
साथियों, पर्यावरण की दृष्टि से यह समृद्ध जंगल है जो सरगुजा के लिए अहम है। रामगढ़ पुरातत्व विभाग द्वारा चिन्हांकित है जो कि क्षेत्र में खदान खुलने से प्रभावित होगा। इस क्षेत्र के जंगल मे अभी तक जंगल विभाग, पुरातत्व विभाग, औषधि विभाग ने बहुत चीजों तक अपना पहुँच नहीं बना पाया है। कई ऐतिहासिक स्थल अभी भी गुमनाम हैं, जैसे राज माडा, बंशी दरहा, सोन मिरगा, कोठी झरना, बाघ कोठार, देवरी मार, लुकु मुडा, कुरो पखना, लाल मटिया आदि। इस तरह के अनेकों स्थल हैं जो आज भी रहस्यमय बने हुए हैं। हम आपको और आगे ले चलते हैं।
इस जंगल में काली मुस्ली, सफेद मुसली, कोरे या, राम बीटा, मोहला इन, सतावरी, अखरोट, हर्रा, भई आँवला, चिरैयता, भृंगराज, ब्रहमी, चिरई गोडा, रोहिना, अर्जुन, हड जोड़ आदि प्रकार के सैकड़ों आयुर्वेद के लिए उपयोगी जड़ी बूटी उपलब्ध हैं। यह जंगल अपने आप में आयुर्वेद औषधालय से कम नहीं है जिसकी पुष्टी औषधीय पादप बोर्ड के द्वारा किया जा चुका है। एक चीज और बता दें कि इन्ही जंगलों से शुगर, लकवा, दर्द, बुखार, पीलिया, पेट रोग, आदि सैकड़ो बीमारी का इलाज भी आदि काल से क्षेत्र के लोग करते आ रहे है।
यह क्षेत्र राज्य के साथ साथ देश के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसके बावजूद भी विकास के नाम पर विनाश बदस्तूर जारी है। पर्यावरण की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र है। यह क्षेत्र नो गो एरिया होना चाहिए था, ताकि देश को लाभ हो सके। बड़े बड़े तमाम पर्यावरणविदों, वन्य प्राणी विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र के जंगल के कटने से लाभ से ज्यादा नुक्सान ही होना है तो सरकार को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए और नो गो एरिया घोषित करना चाहिए। क्योकि धन तो बरसेगा साहब लेकिन जीवन भी तो तरसेगा। अमीरों को कितना अमीर बनाओगे साहब, गरीबों का आशियाना उजाड़ कर? सुखी, शांत जीवन को जीवन भर संघर्ष करने के लिए मजबूर मत कीजिए। विकास के नाम पर बेघर मत कीजिए। आप से माँग तो कुछ नहीं रहे है साहब, जो कुछ हमारे पास है उसे तो मत छीनो। सरकार, वर्तमान में चल रहे खदान में स्थानीय लोगों की स्थिति क्या है? जिनकी ज़मीन गई उनके हालात क्या हैं? ये तो उनसे मिलने के बाद ही पता चलेगा, परंतु ये तो तय है जंगल का विनाश- क्षेत्र हित, जनहित, देश हित के लिए कतई उचित नहीं है। बात नहीं मानी गई तो परिणाम तो गंभीर ही होंगे……………………. कलम में जो ताकत है तलवार में नहीं।