राजू और स्वप्निल:
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 5.6 करोड़ अंतर्राज्यीय प्रवासी हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश के हिंदी भाषी क्षेत्रों से आते हैं। ऐसे अधिकांश प्रवासी मज़दूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं; बड़ी संख्या में दिहाड़ी मज़दूर हैं और बहुत कम लोगों के पास उनके वैध पहचान पत्र का कोई रूप है। प्रवासी मज़दूर विशेष रूप से कमजोर वर्ग हैं – कारण है आर्थिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा की कमी। प्रवासी मज़दूरों की भयावह दुर्दशा करोना तालाबंदी के दौरान देखने को मिली और पूरे देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई।
प्रवासी मज़दूर कौन हैं?
भारत के नागरिकों के पास, देश के किसी भी हिस्से में काम करने का अधिकार है। भले ही वो स्थान उस नागरिक के अधिवास राज्य से अलग हो। काम और बेहतर वेतन की तलाश में कई असंगठित मज़दूर हर साल आसपास के दूसरे गाँव, तहसील, ज़िले और राज्यों में प्रवास करते है। प्रवास छोटा भी हो सकता है, जैसे एक गाँव से दूसरे गाँव, या बड़ा, जैसे एक देश से दूसरे देश या एक राज्य से दूसरे राज्य। प्रवास छोटा हो या बड़ा, जो भी प्रवास करता है वह प्रवासी मज़दूर की परिभाषा में आता है।
क़ानून के द्वारा प्रवासी मज़दूरों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा देने का प्रयास होता आ रहा है। पर ये प्रयास दूरदर्शी नहीं रहे हैं और इनका लाभ कुछ ही मज़दूरों तक पहुँच पाता है। क़ानून के अंतर्गत प्रवास एक सीमित दृष्टि से देखा जाता है और सिर्फ़ अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक को ही क़ानून के अंदर सुरक्षा दी गयी है।
जो मज़दूर/श्रमिक काम की तलाश में दूसरे राज्यों में प्रवास करते हैं उनको “अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक” कहा जाता हैं। अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के लिए क़ानून का नाम अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 था। लेकिन 2019-20 में श्रमिकों से सम्बंधित 29 कानूनों को मिला कर चार कानून बना दिए गए हैं। इनमें से एक कानून व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियां संहिता, 2020 हैं जिसमें अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों से जुड़े प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।
नये कानून में प्रवासी श्रमिकों से सम्बंधित क्या प्रावधान हैं?
यह कानून प्रवासी मज़दूरों के लिए काम करने की स्थितियां, न्यूनतम वेतन, शिकायत निवारण प्रणाली, शोषण और उत्पीड़न से सुरक्षा, कुशलता बढ़ाने और सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करने जैसी चीजों पर केंद्रित है। यह कानून संगठित और असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों पर लागू होता है। इसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं-
- नया कानून उन सभी संस्थानों/फैक्टरियों पर लागू होगा जहां 10 या इससे ज्यादा अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं।
- श्रमिक खुद ही ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण कर सकते है।
- प्रवासी मज़दूर जो कि भवन निर्माण का कार्य करता है उसे एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर भवन निर्माण फंड की सुविधाओं का लाभ का प्रावधान।
- प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के निवारण हेतु हर राज्य में हेल्पलाइन की सुविधा का प्रावधान है।
- सप्ताह में छह दिनों से अधिक काम नहीं कराना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत प्रवासी मज़दूर जिस राज्य में काम करता है वहां राशन की सुविधा प्राप्त कर सकता है तथा मज़दूर के परिवार के सदस्य अपने निवास स्थान वाले राज्य में भी राशन की सुविधा ले सकते हैं इसका प्रावधान भी किया गया है।
ठेकेदार/नियोजक के कर्तव्य
ठेकेदार/नियोजक के निम्नलिखित कर्तव्य हैं-
- काम करने की सुरक्षित कार्य स्थितियां सुनिश्चित करना,
- मज़दूर को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा,
- मज़दूर के साथ दुर्घटना होने की स्थिति में सरकार एवं मज़दूर के रिश्तेदारों को सूचित करना,
- नियोक्ताओं (नियोक्ता वह व्यक्ति जिसकी संस्थान या फैक्ट्री में प्रवासी मज़दूर काम कर रहा है) का दायित्व है कि वो प्रवासी मज़दूरों को EPFO और कर्मचारी राज्य बीमा योजनाओं से जोड़े, इन योजनाओं का लाभ दिलाना भी उनका कर्तव्य हैं,
- प्रवासी मज़दूर को वर्ष में एक बार अपने घर जाने एवं वापस आने के लिए नियोक्ता द्वारा यात्रा भत्ता दिए जाने का प्रावधान किया गया है,
- वार्षिक स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था करना।
नए क़ानून की कुछ कमियाँ:
- व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियाँ संहिता की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि इसने बहुत बड़े श्रमिकों के समूह को कानून की सुरक्षा से बाहर कर दिया है, क्योंकि नया कानून उन सभी संस्थानों/फैक्टरियों पर लागू होता हैं जहां 10 या इससे ज्यादा अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं, जबकि अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम 1979, में उन सभी संस्थानों/फैक्टरियों पर लागू होता था जहां 5 या इससे अधिक श्रमिक काम करते हैं। 6वीं आर्थिक जनगणना के अनुसार 70% संस्थानों में 6 से कम प्रवासी मज़दूर काम करते हैं, इस प्रकार नया कानून लाखों प्रवासी मज़दूरों को नए कानून के दायरे से बाहर कर देता है।
- दूसरी बड़ी आलोचना यह कि यह एक राज्य के अंदर ही एक जिले से दुसरे जिलों में मज़दूरी करने वाले पलायन को मान्यता नहीं देता, 2011 की जनगणना के अनुसार 85% से ज्यादा प्रवासी श्रमिक राज्य के अन्दर ही एक जिले से दूसरे जिले में पलायन करते हैं और इन सभी प्रवासी मज़दूरों को नए कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
- प्रवासी मज़दूर की परिभाषा के अनुसार जो प्रवासी मज़दूर 18000 रूपये पतिमाह से अधिक पैसे कमाते हैं तो वो प्रवासी मज़दूर होते हुए भी इस कानून के दायरे से बाहर रखे गए है।
- प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण से सम्बंधित प्रावधान तो पुराने कानून (अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम 1979) में भी थे और नए कानून में भी है लेकिन पंजीकरण के प्रावधान होने के बावजूद भी लॉकडाउन में प्रवासी मज़दूरों की स्थिति बहुत ख़राब थी, क्योंकि कानून का क्रियान्वयन सही से नहीं हो रहा था तो इस बार भी क्या गारंटी है कि नए कानून का क्रियान्वयन सही से होगा?
- इसके साथ ही नए कानून में खुद से पंजीयन करने का प्रावधान भी है लेकिन उसके लिए आधार कार्ड और स्मार्ट फ़ोन की आवश्यकता होती है और सभी प्रवासी मज़दूरों के पास आधार कार्ड हो यह ज़रुरी नहीं है और सभी श्रमिक स्मार्ट फोन का उपयोग नहीं करते हैं। और आधार और फ़ोन का लिंक होना भी ज़रुरी है और OTP, लिंक हुए फ़ोन पर ही आएगा। कभी-कभी तो फ़ोन खो जाता है, तो ऐसी स्थिति में मज़दूरों की समस्या और बढ़ जाती है।