इरम:
आदाब, मेरा नाम इरम है। मैं एम.एस.सी प्रथम वर्ष में पढ़ रही हूं और अवध पीपुल्स फोरम के साथ 100% वैक्सीनेशन का सर्वे कर रही हूं, जिसको 100% वैक्सीनेटेड करके देना है। मुझे सर्वे के दौरान अच्छे और खराब दोनों तरह के लोगों का सामना करना पड़ा, कुछ लोग कुर्सी पर बैठा कर सारी जानकारियां बताते थे और कुछ लोग तो बहुत समझाने पर भी अपनी डिटेल्स नहीं देते थे। नाम लिखवा देते थे और बोल देते थे कि बाकी जानकारी आप कहीं और से ले लीजिए, या फिर बस नाम ही बताएंगे। बहुत सारे लोगों का कहना था कि सरकार के पास तो सारा डाटा है तो आप लोग क्यों सर्वे कर रही हो? हम जानकारी नहीं देंगे, ऐसे बहुत आते हैं। कुछ लोग बोल रहे थे कि आप तो लिख कर चली जाओगी, लेकिन मुझे क्या मिलेगा? कुछ दीजिए तो दिखाएँ। ऐसा करते-करते आज मेरा 2500 लोग का सर्वे पूरा गया है, आगे और करना है। अवध पीपुल्स फोरम के साथ जुड़ने से नई जानकारियां मिली और कई लोगों से मिलने और बातचीत करने का मौका मिला। और भी बहुत कुछ सीखने को हमे मिला, हम लोग कैंप में भी बैठते थे। जहां ज़्यादातर नॉट वैक्सीनेटेड लोग थे, वहाँ अफाक भाई ने वहां पर कैंप लगाकर वैक्सीन भी लगवाई, साथ ही जो बुजुर्ग लोग थे उनके घर जाकर उन्हे वैक्सीन लगवाई है।
नासरा:
आदाब! मेरा नाम नासरा है। मैंने बी.ए. तक पढ़ाई की है और मैं एक मुस्लिम परिवार से हूँ। मैं अवध पीपल्स फोरम के साथ 100% वैक्सीनेशन सर्वे पर काम कर रही हूँ। इस सर्वे के दौरान मुझे बहुत सी चीज़ों का सामना करना पड़ा। बाहर निकलने के लिये अपने ससुराल वालों को समझाया कि सिर्फ एक व्यक्ति के कमाने से घर परिवार नहीं चलता है। अब मुझे भी एक काम मिल रहा है, जिसे मैं करना चाहती हूँ। मेरे पति ने मुझे काम करने के लिये पूरा सपोर्ट किया। जब मैं सर्वे करने के लिये पहले दिन गई तो मुझे बहुत डर भी लग रहा था। सोच रही थी कि काम तो ले लिया है, घर पे भी सबको मना लिया है, लेकिन मेरे लिये ये अब और भी बहुत बड़ी चुनौती थी।
इस बीच मुझे ऐसे कई लोग मिले जो बहुत गन्दी नज़र से देखते थे, मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि ऐसे लोगों के बीच मैं काम करने के लिए जाऊँ। फिर मैंने अपनी सुपरवाईजर से बात की और टीम के साथ काम करने के लिए जाने लगी। सर्वे का यह काम करते हुए मुझेमें हिम्मत आ गई। साथ ही मुझे इससे जो पैसे मिले, उनसे मैने अपना इलाज भी करवाया। मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैं अपने पति को सपोर्ट कर पा रही हूँ। मेरा भी एक मुकाम बन गया है, मुझे इस काम को करने से खुशी मिलती है। काम के बाद सास, जेठानी की बात सुनना, घर आकार काम करना, खाना बनाना रिश्तेदारों को देखना, ये सब भी मेरे लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। मैंने यह काम करते हुए, नई चीजें भी सीखी। वैक्सीन जब लगती थी तो एएनएम (ANM) के साथ पूरे टाइम रहकर मैंने कैम्प में रेजिस्ट्रेशन करना और उन्हें वेरीफाई करना सीखा। कैम्प और सर्वे करने के वजह से मुझे मुहल्ले में लोग जानने लगे है, मेरी एक पहचान बन गई है। अवध पीपल्स फोरम के साथ ये मेरा पहला काम है और मैं उनका बहुत शुक्रिया भी करती हूं। उम्मीद है कि अवध पीपल्स फोरम ऐसे मौके हम महिलाओं को आगे भी देता रहे।
नुजहत:
आदाब, मेरा नाम नुजहत है। मेरा ग्रेजुएशन कम्पलीट हो चुका है, लॉक डाउन में पैसों की परेशानी की वजह से आगे नही पढ़ सकी। घर पे रह कर छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूँ। वैक्सीनेशन सर्वे के बारे में मुझे अवध पीपल्स फोरम के ज़रिए पता चला। क्योंकि मुझे पैसों और काम की ज़रूरत थी, इसलिए मैंने सर्वे करने के लिए तुरंत हाँ कर दिया। इस काम को करते हुए मुझे बहुत से नए अनुभवों का सामना करना पड़ा, जो मेरे लिए किसी चुनौती से कम नही था। मुझे भी बाकी लड़कियों की तरह बाहर जाने की ज़्यादा इजाज़त नही मिलती है, लेकिन जब घर वालों को मैंने इस काम के बारे में बताया, तो सभी ने मेरा साथ दिया। कहीं न कहीं मुझे ये भी लगता है कि शायद मेरे घर वाले इसलिए भी तैयार हुए क्योंकि मुझे मेरे मोहल्ले में ही सर्वे करना था, जो कि मेरे लिए प्लस पॉइंट था। ये काम उतना भी आसान नही था जितना मैं समझ रही थी, क्योंकि कोरोना के टाइम में हर कोई अपने घर में किसी बाहरी इंसान को बिठाने में सहज नहीं महसूस करता था। लोग अपनी डिटेल्स नहीं देना चाहते थे। लोग डरते भी थे कि हमसे क्यों पूछ-ताछ में ये लोग लगे हैं? लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने खुशी-खुशी हमें अपने घर पे बुलाया और नाश्ता भी कराया। कुछ लोग मेरे भाई को जानते थे, इस वजह से मुझपे यकीन कर, सारी डिटेल्स दे देते थे। 100% वैक्सीन लगवाना था, इसलिए हमने मोहल्ले-मोहल्ले और घर-घर जाकर लोगों को वैक्सीन लगवाई हैं। हममें से कुछ लोग कैंप में भी बैठते थे, मुहल्ले के जो लोग नहीं आते थे तो उनको फोन करके बुलाते थे, बुजुर्ग लोग जो चल-फिर नहीं सकते थे, उनके घर जाकर भी वैक्सीन लगवाई।
इस पूरी जर्नी में मुझे बहुत मज़ा आया। कभी-कभी लोगो के रवैये से बुरा भी लगता, अपनी सुपरवाइजर से काफी डांट भी पड़ती, उनकी बात सुननी पड़ती थी, फिर भी अपने काम में कमी नहीं आने दी। अच्छी बात ये है कि अब मुझे बोलना आ गया है। मेरी लोगो के सामने न बोल सकने वाली जो परेशानी थी, वो अब काफी हद तक खत्म हुई है। खुद पर यकीन आया है कि मैं भी कर सकती हूँ और आगे बढ़ सकती हूँ। मीटिंग्स में जुड़कर मैंने खुद को आत्मविश्वास से भरा पाया है। सर्वे के दौरान कई अलग-अलग तरह के अनुभव हुए, एक घर में हम लोग गए जहां पर कुछ लड़के किराएदार थे, जब उनसे उनका डाटा मांगा तो उन्होने सारी जानकारी तो दे दी लेकिन जब उनकी डेट ऑफ बर्थ पूछी, तो बोलने लगे, “मुझे देखकर अंदाज लगा लो, इतना तो अंदाज आता ही होगा!” वह बहुत गलत तरीके से बात कर रहे थे। कुछ लोग यह भी बोले चंद पैसों के लिए घर-घर दरवाजा खटखटाती हो तो बुरा नहीं लगता?
जब गाँव में सर्वे के लिए निकली तो पता चला कि ऐसी और भी औरतें-लड़कियां हैं जो काम करना चाहती हैं और आगे बढ़ना चाहती हैं। हुनर है उनके पास, लेकिन फैमिली की वजह से या पैसों की वजह से नहीं कर पा रही हैं। यह जानने के बाद मेरे मन में यह भी खयाल आया कि मुझे इन लोगों के साथ मिलकर कुछ करना चाहिए, उनकी मदद करनी चाहिए। सोच रही हूँ कि यह सर्वे वाला काम खत्म हो जाए तो फिर गाँव की औरतों और लड़कियों के साथ कुछ नया करना करने का प्रयास करूँ। अगर किसी और हेल्प की जरूरत होगी तो अवध पीपुल्स फोरम से भी लूंगी।
सर्वे के इस काम में कुछ चीजें नई भी सीखने को मिली जैसे कि रजिस्ट्रेशन करना और उसे वेरीफाई करना। अपने मोहल्ले के अलावा में दूसरे गाँव में भी सर्वे के लिए गए थे, वहाँ भी मजा आया। नए लोगों से मिलना, उनकी बातें सुनना मेरे लिए एक नया अनुभव था। बहुत से लोग तो ऐसे थे जो पूछते कि कहाँ से आई हो? यह काम क्यों कर रही हो? जब सरकार के पास यह डाटा पहले से ही है तो आपको क्यूँ दें? इस तरह बातें तो बहुत हैं। अवध पीपुल्स फोरम के साथ जुड़ने से मुझे नई-नई जानकारियां मिली, पहले तो किसी से बोलने में डर लगता था, लेकिन यह काम करने के बाद अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत आ गई है कि मैं 10 लोगों के बीच में खड़ी होकर भी बात कर सकती हूं, अपनी बात रख सकती हूं। अब मुझे हर दिन कुछ नया करना है और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना है।