मनीष सिंह:
भारत-पाक बंटवारे को लेकर कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, नेहरू, जिन्ना, तू-तू और मैं-मैं के बीच हम एक बड़ा महत्वपूर्ण ऑब्जर्वेशन भूल जाते है। वो यह कि भारत-पाक के बीच जिन्ना लाइन या नेहरू लाइन नहींं है बल्कि रेडक्लिफ लाइन है।
बँटवारा करना, ब्रिटिश सरकार का निर्णय था, अगर सरकार नहीं बांटती, तो देशों का बंटवारा नहींं होता। डायरेक्ट एक्शन या दंगेबाज़ी से देश नहीं बंटते। मुस्लिम लीग, महासभा और कांग्रेस कोई फ़ौजी मिलिशिया नहीं थे बल्कि सिविलियन पोलिटिकल पार्टी थे। ब्रिटिश से न दंगे संभल रहे थे, न राज संभल रहा था, उनको भारत से जाना था, चले जाते। गांधी ने कैबिनेट मिशन को कहा भी था, हम अपना मामला आपस में समझ लेंगे, आप हमें हमारे हाल पर छोड़कर निकल लीजिये।
किसी भी देश में राजनैतिक दल, सत्ता हस्तांतरण के वक्त में बड़ा हिस्सा चाहते है। आज भी दुनिया के हर देश में, धर्म, भाषा, जाति, एथनिसिटी (नस्ल) के आधार पर कोई न कोई, बड़ी-छोटी अलगाववादी विचारधाराऐं मौजूद है। ऐसे में सरकारों का राजधर्म क्या है? कांग्रेस-भाजपा किसी राज्य में सत्ता शेयर करने को तैयार न हों, तो क्या केंद्र सरकार उस राज्य को आधा-आधा बांट देगी। ब्रिटिशर्स ने जो किया वह उनके भविष्य के नज़रिये से की गई अपनी जियो-पोलिटिक्स थी। तत्कालीन अंतर्विरोधों को दुहते हुए, वे ही बंटवारे का प्लान लाए थे और एग्जीक्यूट करने वाली अथॉरिटी भी वही थे।
अब ज़रा दूसरे एंगल से इसे समझिए। तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था आप भूल जाते हैं। भारत का सारा हिस्सा ब्रिटिश द्वारा डायरेक्टली कंट्रोल्ड नहीं था। प्रिंसली स्टेट्स, संधि के तहत ब्रिटिश के अधीन थे, अर्धस्वतंत्र थे। रक्षा, विदेश और संचार के मसलों को छोड़ बाकी खुदमुख्तार थे। उनका अपना झंडा था, अपनी गवरमेंट थी। ब्रिटिश यूँ ही छोड़कर चले जाते तो 500 देशी रियासतों में से कम से कम 10 ऐसे बड़े प्रिंसली स्टेट थे, जो ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त होते ही खुद को आज़ाद मुल्क घोषित कर देते, और उनका कुछ न उखड़ता। सरदार कहां-कहां फ़ौज उतार लेते?
ब्रिटिश गवरमेंट के पास 5 लाख सिपाहियों की फ़ौज थी। 1 लाख अंग्रेज़ ब्रिटेन लौट गए, डेढ़ लाख पाकिस्तान चले गए। भारत में बचे ढाई लाख। ये आपकी एक्सटर्नल सीमा की निगरानी करते? या इन प्रिंसली स्टेट के देश बन जाने से उनके गिर्द बनी हज़ारों कि.मी. की सीमा की निगरानी करते? या फिर कश्मीर, हैदराबाद, जूनागढ़ में लड़ते। कई स्टेट तक जाने के लिए दूसरे स्टेट से गुज़रना पड़ता। ये लोग मोर्चा बनाकर आपके खिलाफ़ अपनी फ़ौज और सिविलियन उतार देते, तो क्या-क्या और कहाँ-कहाँ लड़ते? सैनिक साल्यूशन आउट ऑफ क्वेचसन था।
चिट्ठियाँ बताती हैं कि सावरकर ने ट्रावनकोर सहित कम से कम 3 स्टेट को आज़ाद मुल्क बनने के लिए उकसाया था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तो “पृथक बंगाल देश” की मांग करते हुए वाइसराय माउंटबेटन को चिट्ठी भी लिखी थी। जाहिर है कि बंगाल में कांग्रेस कमज़ोर थी, मुस्लिम लीग पाकिस्तान जा रही थी, तो छोटे नेता को पीएम बनने लायक एक छोटा देश तो चाहिए था। इस दूसरे एंगल से जाने पर इस उपमहाद्वीप में 2 नहीं, कम से कम 15 देश होते।
लब्बोलुआब ये कि 70-80 साल बाद आप बकैती ज़रूर कर सकते हैं और एक्सपर्ट राय दे सकते हैं। मगर उन बहुआयामी परिस्थितियों को सम्भालना, हल निकालना, निर्णय करना न तब आपके बूते का था, न आज है। जो हुआ, इसके अलावे जो होता और बुरा होता। “भारत, दैट इज इंडिया.. 15 अगस्त सन 47 को पैदा हुआ। वह जैसा था, उससे बेहतर बनाना है” – हम भारत के लोग, बस इतना सोच लें तो 2000 सालों की व्हाटअबाउटरी से मुक्त होकर चैन से जी सकेंगे।
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