अंजली गौतम:
मेरा घर फ़ैज़ाबाद कैंट एरिया से कुछ दूरी पर है, मोहल्ले का नाम है मुरावनटोला। यह निषाद समुदाय की एक बस्ती है, जहां अधिकांश लोग सरयू नदी से मछली पकड़ कर और उनको बेचकर अपनी गृहस्थी चलाते हैं। कुछ लोग नौकरी भी करते हैं, वह नगर निगम में सफाई का काम करते हैं। मुरावनटोला मोहल्ले की सारी सड़कें टूटी-फूटी हैं और कच्ची हैं। समुदाय के कुछ लोगों के पास दो चक्का वाहन हैं और गलियाँ इतनी पतली हैं कि एक बार में एक ही वाहन निकल सकता है। मेन सड़क तक जाने के लिए गलियों के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों से मेरी बस्ती के आस-पास सबसे ज्यादा समस्याएं आर्मी के जवानों के कारण हो रही हैं। क्योंकि आमदनी ज़्यादा नहीं है, तो महिलाएँ व छोरियाँ जंगल में गिरी हुई लकड़ियाँ बीन के घर का चूल्हा जलाते हैं। जब शाम ज़्यादा हो जाती है तो किशोरियों और महिलाओं के साथ अक्सर छेड़छाड़ की जाती है और बाहर के लोगों को शिकायत करने के लिए भी कैंट में जाने भी नहीं दिया जाता। यहाँ पर अलग-अलग रेजिमेंट आती हैं और चली जाती हैं, तो हर साल नए सिपाहियों और रंगरूटों से मेरी बस्ती परेशान रहती है। रंग रूट और सिपाही लड़कियों को और लड़कों दोनों को ही बात-बात पर पकड़ कर उनको परेशान करते हैं और उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं।
अबकी बार बरसात के दौरान काफ़ी गंदा माहौल रहा। बारिश क्योंकि काफ़ी दिनों तक हुई और पूरी बस्ती में पानी भर गया। नदी के किनारे रहने के कारण जब नदी में पानी भरा तो पूरा का पूरा मोहल्ला ही बाढ़ ग्रस्त हो गया। आमदनी भी छिन गई क्योंकि मछलियां नहीं पकड़ पा रहे थे और लकड़ियाँ भी नहीं जुटा पा रहे थे। जो अमीर घर थे उनके पास कोयला पड़ा हुआ था। पर बाढ़ के कारण सबका पूरा कोयला भी भीग गया, जिसके चलते उनकी स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं थी।
समुदाय के जो लोग नगर निगम में काम करते हैं, सबने सड़क बनवाने की मांग रखी और खुद सड़क बनाने की पहल की। आपसी मतभेद होने के बाद भी यह पहली बार था कि सभी लोग एक साथ सड़क निर्माण में लगे थे और नगर निगम से उनको सहयोग भी प्राप्त होने वाला था। परंतु जैसे ही यह खबर कैंट में मौजूद रेजिमेंट को हुई, उन लोगों ने आकर सभी लोगों को घरों में बंद रहने पर मजबूर कर दिया। इतना ही नहीं, जो लड़के बाहर से आ रहे थे उनको भी मारा पीटा गया। एक तरफ हम गांधी को पढ़ते रहते हैं और अहिंसा के नए-नए पैमाने सुनते रहते हैं, और दूसरी तरफ सरकार-प्रशासन हिंसा के अलग-अलग सितम आम जनता पर ढाते रहते हैं।
इस घटना के बाद से अभी तक भी हमारे समुदाय की सड़क नहीं बन पाई है। मैं यह अक्सर देखती हूं कि गर्भवती महिलाएं खराब सड़क के कारण अपना इलाज कराने नहीं जा पाती। सड़क के बेहद खराब होने के कारण कई महिलाओं ने तो प्रसव भी अपने घर में रहकर ही किया है। निषाद बस्ती होने के कारण इस बस्ती के लोगों ने शिक्षा का बहुत महत्व नहीं दिया है, जिसके चलते प्रजनन स्वास्थ्य पर भी लोगों की जानकारी इतनी अच्छी नहीं बन पाती। आज भी समुदाय में यह बात आम है कि एक दंपत्ति के 4 से 5 बच्चे हों और यह बच्चे बालक ही हों।
एक तरफ हमारे समुदाय और बस्ती में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना काफ़ी ज़रूरी है और दूसरी तरफ जो मानसिकता समुदाय की बन गई है, इसको भी बदलने की ज़रूरत है। पर इन दोनों से पहले आर्मी रेजीमेंट द्वारा हो रहे शोषण को रोकना काफ़ी ज़रूरी है। अभी भी काफ़ी ऐसे आर्मी अफ़सर आते हैं जिनका स्वभाव अच्छा नहीं होता है, वह सभी सिपाहियों को डांट के रखते हैं और बस उस समय ही हमारे समुदाय के लोगों को राहत होती है। आज के ऐसे दौर में जब टीवी और मोबाइल के व्हाट्सएप स्टेटस पर हर कोई इंडियन आर्मी का गीत लगाते हुए काफ़ी गौरवान्वित महसूस करता है, मेरे समुदाय में ऐसे गीत सुनकर या स्टेटस देख कर लोग गालियां ही बकते हैं।
फीचर्ड फोटो आभार: विकीमीडिया