राजू व स्वप्निल:
भारतीय समाज में शादी को स्त्री या पुरुष के बीच का पवित्र सम्बन्ध माना जाता हैं । प्यार और विश्वास के इस संबंध को लेन-देन कर आर्थिक सम्पन्नता हासिल करने का अवसर सदियों से माना गया है, जो की दहेज के रूप में आज भी हमारे समाज में प्रचलित है। दहेज़ को व्यक्ति के मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और गौरव के साथ जोड़ कर देखा जाने लगा है और आज यह एक विकराल सामाजिक कुरीति बनकर समाज का दमन कर रही है। आजकल बेटी की शादी, दहेज़ एवं राशि पर निर्भर करती है। यदि दहेज नहीं तो शादी नहीं। इसीलिए शायद माता-पिता, लड़कियों की शादी करने के लिए बड़ी मुश्किल से बचत करके अपनी बेटी के लिए दहेज़ के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं, इसी सोच में कि हमारी बेटी दूसरे घर जाकर खुशी खुशी जीवन यापन कर सके। हालांकि यह प्रथा समाज के सारे वर्गों में सामान रूप से व्याप्त नहीं है। कुछ आदिवासी समुदायों में दहेज एक निश्चित राशि के रूप में दुल्हे वालों की तरफ से दिया जाता है। मध्य प्रदेश के बारेला समुदाय में इस प्रथा को मान दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में कई आदिवासी समाज के लड़के, मज़दूरी करके शादी की राशि इकट्ठा करने में जुट जाते हैं या कई बार दहेज देने के लिए लड़के के घर वाले को कर्ज़ लेना पड़ता है और फिर शादी के बाद दोनों नव विवाहित कर्ज़ की राशि कमाने के लिए गुजरात या महाराष्ट्र निकाल जाते हैं।
समाज में अगर मांग के अनुसार पर्याप्त दहेज़ नहीं देते हैं तो बेटी की शादी नहीं होती है। अगर किसी तरह से हो भी जाती है तो शादी के पश्चात लड़की को दहेज़ न लाने या कम लाने पर प्रताड़ित किया जाता है, शोषण किया जाता है, उसके साथ मारपीट की जाती है, यहाँ तक कि कभी-कभी तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या जिन्दा जला दिया जाता है। यह सब झेलते हुए महिलाएँ बेबस और लाचार जीवन जीने के लिए मजबूर हो जातीहैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2020 डाटा के अनुसार भारत में दहेज के लिए प्रताड़ित करने के परिणामस्वरूप पिछले साल में हर दिन 19 महिलाओं की मृत्यु हुई है, और 2019 में 7,141 और 2018 में 7,167 दहेज़ मृत्यु हुई थी। यह तो सिर्फ रिकॉर्ड किये हुए आंकड़े है, ऐसे बहुत सारे मामले होते हैं जिसमें लड़की परिवार वालों का डर एवं अपने माँ बाप का मान-सम्मान रखने के मामला दर्ज तक नहीं कराती हैं।
ऐसी परिस्थितियां पैदा न हो इसके लिए भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनुच्छेद 15, जो कि समानता के अधिकार का भाग है, में विशेष प्रावधान किये गए हैं। सरकार ने इस प्रावधान का प्रयोग करते हुए इनकी सुरक्षा के लिए कई अधिनियम भी बनाये हैं: जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम इत्यादि। कानून बनाकर भारत की संसद में दहेज जैसे अभिशाप से महिलाओं की सुरक्षा एवं संरक्षण के प्रयास किए हैं।
दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति दहेज़ मांगता है या दहेज़ देता है उसके लिए सजा का प्रावधान हैं। दहेज़ निषेध अधिनियम की धारा 3 के अनुसार दहेज़ लेना और देना या इसको उकसाने को दंडनीय अपराध माना गया है। अगर कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसे पांच वर्ष का कारावास एवं 15000 रुपये या दहेज़ मूल्य, जो भी अधिक हो वह सजा दी जा सकती है। 1961 से पहले, कानून के प्रावधान काफ़ी कमजोर थे, और महिलाओं के ख़िलाफ़ होती हिंसा और प्रताड़ना को देखते हुए, सांसद को एक मज़बूत और कारगर कानून लाने का एहसास हुआ। इसी के उपरांत, एक नए क़ानून को पारित किया गया जिसका मुख्य उद्देश दहेज़ लेने और देने पर प्रतिबन्ध लगाना और कारगर रूप से महिलायो को सुरक्षा देना है।
धारा 4 के तहत अगर कोई व्यक्ति दहेज़ की मांग करता है तो उसके लिए 6 माह से लेकर दो वर्ष एवं 10000 का जुर्माने का प्रावधान हैं. धारा ‘4 अ’ दहेज़ सम्बंधित विज्ञापनों को प्रतिबंधित करती हैं। धारा 5 के अनुसार दहेज़ लेने देने का किसी प्रकार का समझौता या कोंट्राक्ट अमान्य व अवैध माना जायेगा.
दहेज संबंधी अपराधों में दहेज मृत्यु सबसे जघन्य अपराध है। दहेज मृत्यु, दहेज की मांग के परिणामस्वरुप होती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी दहेज मृत्यु से संबंधित है। कश्मीर कौर बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब AIR 2013 SC 1039 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दहेज मृत्यु को स्थापित करने के लिए आवश्यक बातें हैं.
1. मृत्यु से ठीक पहले दहेज की मांग करके मृतका को परेशान करना
2. मृतका की मृत्यु जलने या शारीरिक क्षति या अन्य अप्राकृतिक परिस्थितियों में होना
3. मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर होना
4. मृतका के साथ क्रूरता या परेशान उसके पति अथवा उसके रिश्तेदारों द्वारा करना
5. यह सब कुछ दहेज की मांग को लेकर किया जाना
6. मृत्यु से ठीक पूर्व यातना दिया जाना अथवा परेशान किया जाना
धारा 304-बी के अंतर्गत न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ जुर्माने का प्रावधान भी है। यह संज्ञेय अपराध है और गैर-जमानती अपराध है, और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है.
जब सवाल किसी व्यक्ति ने किसी स्त्री की दहेज मृत्यु की है या नहीं और यह दिखाया जाता है कि मृत्यु के कुछ पूर्व ऐसे व्यक्ति ने दहेज की किसी मांग के लिए या उसके संबंध में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी या उसको तंग किया था, तो न्यायालय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-बी के तहत यह मानेगा/उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज मृत्यु कारित की थी, और उसे सजा मिलेगी। वही, 2005 में घरेलू हिंसा क़ानून के उपरांत, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना को क़ानून में साझा किया गया।
दहेज से प्रभावित व्यक्ति, क़ानून का कैसे प्रयोग कर सकता है ?
दहेज की माँग तथा उससे सम्बंधित प्रताड़ना की जानकारी या शिकायत करने पर, क़ानून के अंतर्गत ऐसा करने वाले के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के प्रावधान है। आप क्या क्या कर सकते है:
- शिकायत आप किसी भी नज़दीकी थाने में जाके दे सकते है। सभी थानो पर महिला सेल होता है, वहाँ आप अपनी बात बिना किसी हिजक रख सकते हैं। अपनी शिकायत लिखित रूप में दायर करें, पूर्ण रूप से सभी तथ्य अपने आवेदन में दे। घटना का विवरण करते समय, कौनसी घटना कब घटी उसकी तारीख़, मास और साल ज़रूर लिखेँ।
- हर ज़िले में कुछ महिला थाने होते है, आप अपनी शिकायत किसी महिला थाने में भी कर सकते है। महिला थाना विशेष रूप से महिलयो पर होते अत्याचारों से निपटने और महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं।
- आप अपनी शिकायत महिला आयोग में भी कर सकते हैं। शिकायत आप महिला आयोग के ऑनलाइन केंद्र पर कर सकते हैं। अपनी शिकायत ncw@nic.in या complaintcell-ncw@nic.in पर दर्ज करें ।
- आप अपनी शिकायत अपने प्रदेश के विधिक सहायता केंद्र पर भी कर सकते है। यह केंद्र ज़िला न्यायालय में होता है।
- मध्य प्रदेश के निवासी, अपनी शिकायत CM HELPLINE में भी दायर कर सकते हैं।
- दहेज़ मृत्यु के मामले में नजदीकी पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराया जा सकता है या मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत भी दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा पीड़ित मुआवजे के लिए भी दावा कर सकते हैं।
यदि आपके थाने में शिकायत करने पर भी, उचित कार्यवाही नहीं की जाती है तो आप महिला आयोग, विधिक सहायता और CM HELPLINE का रास्ता ले सकते हैं। महिला स्वयं, उसके माता-पिता, पुलिस, धारा 8-बी के तहत नियुक्त दहेज निषेध अधिकारी या कोई गैर-सरकारी संगठन भी महिला की ओर से शिकायत दर्ज कर सकता है। इस अधिनियम में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम क्लास ही संज्ञान ले सकता हैं।