अमित:
हमारा देश विविधताओं का देश है। सैंकड़ों समुदाय और उनकी सैंकड़ों संस्कृतियाॅं, भाषाएं, गीत और लोक कथाएँ। हज़ारों देवी-देवता और उनकी तरह-तरह की मज़ेदार पूजा पद्धतियाॅं। लेकिन कुछ लोग इस सच को झुटलाने में लगे हैं और देश की सांस्कृतिक एकता के नाम पर किसी एक देवता, एक पूजा पद्धति, और त्योहारों की एक कहानी के प्रचार की जुगत में लगे हैं। क्यूंकि सारे भोंपू उनके ही हाथ में हैं इनका प्रचार भी अधिक हो जाता है।
हमारा मानना है कि हमारी यह सांस्कृतिक विविधता, हमारी विशिष्टता भी है। इन विविध भाषाओं, गीतों, लोक कथाओं को ज़िंदा रखना बहुत ज़रूरी काम है। देश के नागरिक होते हुए भी सबकी अपनी विशिष्ट पहचान बनी रहे, यह भी बहुत ज़रूरी लगता है।
हमें खुशी है कि युवानिया के इस अंक के माध्यम से हम आपके लिए ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में दिवाली मनाने के कुछ तरीकों को पेश कर रहे हैं। इन आलेखों से ज़ाहिर है कि इन जगहों पर, दिवाली को मुख्यतः बैलों के त्योहार के रूप में देखा जाता है और धन, याने लक्ष्मी की पूजा के रूप में। धन जानवर, गहने, अनाज या कुछ भी हो सकता है। अधिकतर यह त्योहार एक फ़़सल के अंत पर आता है जब खेत की फ़सल कट कर घरों में आ जाती है और रबी की बुआई में कुछ समय होता है।
आज के समय में इन विविधताओं को जानना और उनका प्रचार-प्रसार करना निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि पूॅंजीवादी – फ़ासीवादी ताकतों को विविधतायें पसंद नहीं आतीं क्यूंकि ऐसे में लोगों को काबू करना मुश्किल होता है। ज़रूरी होने के साथ-साथ ये लोक परम्पराएं रोचक और मज़ेदार भी हैं और प्रदूषण फैलाने के बजाये प्रकृति से इंसान के रिश्ते को स्थापित करती हैं।
इन कहानियों के साथ-साथ इस अंक में एक लेख – कर्ज़ करो घी खाओ – यह भी समझा रहा है कि कैसे हमारे देश की लक्ष्मी, विदेशी पूॅंजीपतियों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की मुठ्ठी में जकड़ी जा रही है और हमारी विकास नीतियाॅं विदेशी पूॅंजीपतियों के इशारों पर बनाई जा रही हैं।
आशा है आपको यह अंक रोचक लगेगा।
फीचर्ड फोटो आभार: द आर्टिफिस
आप सब को भी तरह तरह की दिवाली की शुभकामनाएं