चित्तौड़गढ़ के गांवों में ऐसे मनाया जाता है दिवाली पर्व

सुमन चौहान:

इस क्षेत्र में दीपावली वाले दिन पूजा नहीं करते हैं। धनतेरस को लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। उस दिन अपने घर के गहनों और पैसों की पूजा करते हैं। लक्ष्मी पूजा के दिन अपने घर के बैलों व अन्य पशुओं को नहलाते हैं, मेंहदी लगा कर सुन्दर तरीके से सजाते हैं। गोवर्धन पूजा वाले दिन गोबर से गोवर्धन बनातें है और मक्की के दानों से दांत बनाते हैं। दस दिनों तक उसको अपने दरवाज़े के बाहर ही रखते हैं।

देव उठनी ग्यारस वाले दिन दीपक जलाकर मिठाई और धूप देकर गोवर्धन की पूजा करते हैं और दूसरे दिन उसे फेंक देते हैं।

पुराने समय में कहते हैं कि पूरे गाँव के लोग अपने पशुओं को नदी पर ले जाकर नहलाते थे। फिर गाँव के मुख्य द्वार पर सब इकट्ठे होते और गाँव का मुखिया सभी बैलों के लिए मीठा दलिया बनवा कर, बैलों को खिलाता था।

पर अब ऐसा नहीं होता है क्योंकि अब लोग बैलों को नहीं रखते हैं। बहुत ही कम लोगों के पास बैल हैं।

अब लोग ट्रेक्टर-ट्राली, मोटरसाइकिल आदि मशीनों की पूजा करते हैं।

नाम तो दिवाली है लेकिन इसमें राम के घर वापिस आने का कोई ज़िक्र नहीं होता।

फीचर्ड फोटो आभार: सीएनएन ट्रेवल और ग्लिब्स

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  • सुमन चौहान / Suman Chouhan

    सुमन जी, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले से हैं। वह खेतिहर खान मज़दूर शक्ति संगठन और आधारशिला विद्यालय के साथ जुड़ी हुई हैं और कई सालों से आदिवासी बालिकाओं के शिक्षा और स्थानीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।

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