स्वप्निल:
ग्वालियर ; 27- अगस्त 2021
1.

राजू, मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले में रहता है। हर सुबह वह शहर के जाने माने गोले के मंदिर के पास की पहाड़ी से घास काटता है और पूरे दिन, एक गौशाला के ठीक बाहर की व्यस्त सड़क पर, आते-जाते राहगीरों और वाहन चालकों को घास बेचता है। यहाँ एक सरकारी गौशाला है जिसमें लगभग 7000 गाय हैं, इस गौशाला के पशुओं के लिए लोग घास खरीदकर, उन्हें खिलाते हैं। इससे गौशाला की गायों का पेट भी भर जाता है, और खिलाने वाले लोगों को पुण्य करने की संतुष्टि और एहसास भी हो जाता है। राजू बताता है कि उसने, पिछले 9 महीनों से एक भी दिन काम से छुट्टी नहीं ली है। इस अनुशासन पर उसे काफ़ी गर्व भी है।
काम वैसे भी कहीं मिलता नहीं। यहां आकर मेरे खाने का तो बंदोबस्त हो जाता है। मेहनत करने से कौन डरता है? मेहनत तो हम कर ही रहे हैं। हमें नहीं मिलता है तो मौका — किसी अच्छी चीज़ पर मेहनत करने का, ताकि हम इस ‘शाम को भूखे सोने’ के डर से बाहर निकल पाएं।
2.

दीन दयाल नगर, ग्वालियर के एक ऑटो मैकेनिक – भाईसाहब, काम का तो पूछो मत। पिछले साल से जो हम झेल रहे हैं, वो हम ही जानते हैं। मेरे आधे मैकेनिक साथी तो अपने गाँव वापस चले गए हैं। न कमरे के किराए के पैसे थे, न ही घर भेजने के लिए कुछ बचा पाए हैं। अब गाँव में ही खेती वगैरह कर रहे हैं वो सब। अभी आमदनी इतनी कम है कि मैंने अपने बेटे को भी काम पर लगा दिया है। शायद मुझसे कुछ सीखकर 4 पैसे कमाने योग्य ही बन जाए वो !
3.

पिंटों पार्क, ग्वालियर की लेबर मार्केट में काम की तलाश में बैठे जगन्नाथ और उनकी पत्नी – शाम के 5 बज गए बैठे-बैठे काम की तलाश में, पर आज नसीब ही खराब है शायद। सुबह हर रोज़ तकरीबन 1 हज़ार मज़दूर आपको मिलेंगे यहां। जब ठेकेदार आता है तो सब उस पर टूट पड़ते है — कहीं कहा-सुनी होती है तो कहीं मारपीट। आदमी पेट पालने के लिए कुछ भी करने को तैयार है !! लोग तो आधे पैसों में भी काम कर देते हैं। नहीं करेंगे तो कोई और करने वाला करेगा, बहुत मारामारी है।
महिलाओं को तो और भी मुश्किल होती है इस भीड़ में। अगर भाई, पति या रिश्तेदार न हो तो ठेकदार से बात करने के लिए, तो काम नहीं मिले पाता। बाकि लोग 12 बजे तक चले जाते है पर हम बैठे हैं इसी आस में कि शायद कोई काम देने आ जाए। कभी-कभी शाम को भी मिल जाता है काम। पूरे दिन की दिहाड़ी तो नहीं मिलेगी पर ठीक है, कुछ न मिलने से, कुछ तो मिलेगा।