सिंचाई हेतु पानी की अनुपलब्धता से पलायन को मजबूर बाशिंदे!

महेश मईडा:

आए दिन मज़दूरों के साथ अन्याय, दुराचार, दुर्व्यवहार की खबरें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इनमे सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले ज़्यादातर मज़दूर वर्ग वह हैं जो घर से दूर बेगाने शहरों में जाकर काम करने वाले प्रवासी मज़दूर होते हैं। अधिकांश मामलों मे मज़दूर वर्ग के हक-अधिकारों के लिए उठाई गई आवाज़ या तो किसी परिस्थितिवश दबा दी जाती है या मुआवज़े के बोझ तले दबा दी जाती है। 

कुछ समय पहले ही सूरत में हुए एक हादसे में बांसवाड़ा के कुशलगढ़ एरिया के 15 मज़दूर समय पूर्व ही काल का ग्रास बन गए। गौरतलब है कि बांसवाड़ा-डूंगरपुर ज़िले से बड़ी संख्या में श्रमिक गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रोज़गार के लिए हर वर्ष पलायन करते हैं। बांसवाड़ा के कुशलगढ़, आनंदपुरी, सज्जनगढ़, गांगड़तलाई और छोटी सरवन आदि क्षेत्रों के हजारों श्रमिक गुजरात के विभिन्न शहरों में निर्माण सहित अन्य कार्यों को लेकर परिवार सहित पलायन करते हैं।

सूरत हादसे के बाद गुजरात, राजस्थान के मुख्यमंत्री एवम माननीय प्रधानमंत्री महोदय द्वारा शोक संवेदना व्यक्त कर इतिश्री कर दी गयी तथा स्थानीय विधायक, मंत्री महोदय द्वारा कुछ मुआवज़े की राशि पीड़ित परिवार को सुपुर्द कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया गया। 

दुर्भाग्यवश आदिवासी अंचल होने की वजह से यहां की आम जनता आज तक मूलभूत सेवाओं तथा रोज़गार के साधनों से वंचित है। इसका सबसे बड़ा कारण सिंचाई हेतु पानी की अनुपलब्धता है जबकि इसी क्षेत्र में माही नदी बहती है जो अपने मे अथाह जल भंडार को समेटे है। बावजूद इसके राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर बैक वाटर क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सिंचाई का पानी उपलब्ध नहीं करवा पाना पलायन का सबसे बड़ा कारण है। 

लेकिन सवाल यह है कि इन सब घटनाओं की ज़िम्मेदारी आखिर किसी द्वारा क्यूँ नहीं ली जाती? आखिर क्यूँ यहाँ के मज़दूरों को अन्य राज्यों में काम के लिए पलायन करना पड़ता है? कब तक मज़दूरों को जीवन-यापन के लिए अपनी जान को दांव पर लगाना पड़ेगा? शायद इन सब सवालों के जवाब यहाँ के नेता, जनप्रतिनिधियों, सरकार के आला अधिकारियों से पूछे जाने चाहिए, लेकिन उन्हें मज़दूरों से जुड़े इन सवालों का जवाब देने की फुर्सत कहाँ! 

असल में इन सबके लिए ज़िम्मेदार है यहाँ की शासन प्रणाली जो 75 वर्ष के शासनकाल में भी यहाँ की माली हालात ना सुधार सकी, जिस वजह से पलायन यहाँ की मजबूरी है। ज़िम्मेदार हैं नेताओ के झूठे आश्वासन जो क्षेत्र को सिंचित क्षेत्र में ना बदल सके। ज़िम्मेदार है यहाँ की जनता, जो अनभिज्ञ और गैरज़िम्मेदार शासक को चुनती रही। 

वर्तमान में दानपुर छोटी सरवन एवं कुशलगढ़ क्षेत्र के किसानों द्वारा माही जल संघर्ष समिति के बैनर तले बैक वाटर क्षेत्र के किसानों को पानी की उपलब्धता के लिए लिफ्ट इरिगेशन परियोजना की मांग हेतु जनआंदोलन किया जा रहा है। लेकिन राजनीतिक उपेक्षा की वजह से अब तक किसानों की मांगों पर किसी भी राजनीतिक दल अथवा प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा गौर नहीं किया जा रहा है, जो चिंता का बड़ा विषय है।

Author

  • महेश मईडा / Mahesh Maida

    महेश मईडा, राजस्थान के बांसवाड़ा ज़िले से हैं। महेश नर्सिंग ऑफिसर के पद पर कलावती सरन केंद्रीय बाल चिकित्सालय, नई दिल्ली में कार्यरत हैं।

One comment

  1. सर जी आपके द्वारा जो भी विचार रखे गए वह सराहनीय विचार है सभी राजनीतिक पार्टियों को एक ही मंच पर इकट्ठा होकर के इस बात का विचार अच्छे तरीके से सरकार के सामने रखना होगा तो जा कर के हमारे मजदूर वर्ग की माली हालत में सुधार किया जा सकता है माही नदी में हमारी जमीन होने के बावजूद हमें ही सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है और इसका एक ही कारण यहां का प्रशासन अपने आप में नेता तो कहलाते हैं लेकिन इसके लिए कोई प्रयास नहीं करते यहां के किसानों को सिंचाई के सुविधा उपलब्ध करा दी जाए इसके लिए प्रशासन को कुछ भी करना पड़े लेकिन सिंचाई की व्यवस्था तो तो करवानी ही पड़ेगी

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