प्रेरणा:
(कोरोना और वैक्सीनेशन अपडेट – चित्तौड़गढ़, राजस्थान )
कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सरकार की ओर से अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं कुछ ज़िलों में वैक्सीन के उपयोग में लापरवाही बरती जाने की भी ख़बर अखबारों में रिपोर्ट की जा रही हैं। राजस्थान में एक रिपोर्ट के अनुसार अभी तक 1.66 करोड़ डोज़ में से 7 फीसदी (लगभग 11.5 लाख डोज़) ख़राब हुई हैं। प्रदेश में चुरू ज़िले में सबसे अधिक (39.7 प्रतिशत डोज़ ख़राब हुई) लापरवाही बरती गई है, इस रिपोर्ट में ज़िलेवार वेस्टेज की जानकारी दी गई है। रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, चित्तौड़गढ़ ज़िले से सटे उदयपुर ज़िले को छोड़कर बाकी सभी सटे हुए ज़िलों में वैक्सीन डोज़ की वेस्टेज हुई है, जिसकी दर (प्रतिशत) इस प्रकार है –
ज़िलेवार वेस्टेज (%) –
- कोटा – 16.71
- चित्तौड़गढ़ – 11.81
- बूंदी – 5.81
- राजसमन्द – 2.07
- भीलवाड़ा – 1.72
- प्रतापगढ़ – 1.36
मैं चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर तहसील में एक पास के गाँव का अनुभव आप सबके साथ साझा करना चाहती हूँ। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर जो आई है, वह अब गाँव-गाँव में परिवारों तक पहुँच गई है। इस संक्रमण से बचने के लिए टीका लगाने की ज़रूरत भी धीरे-धीरे समझ आ रही है। पर ग्रामीण क्षेत्र में दोनों महिला और पुरुष जो 45+ साल के है, वह टीका लगाने के लिए तैयार ही नहीं हो रहे हैं।

प्रशासन ने ये ज़िम्मेदारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सरकारी स्कूल में नियुक्त शिक्षकों को दे रखी है। इसके तहत उन्हें सर्वे करने के साथ-साथ प्रत्येक ग्रामीण वासी का टीकाकरण हो, यह सुनिश्चित करना है। पर गाँव के लोगों के दिमाग में यह बैठ गया है कि टीका लगवाने से तो लोग मर जा रहे हैं। हाल तो ऐसा है कि ऐसी ख़बरें भी आई हैं कुछ ज़िलों और पंचायतों में धमकी दी गई है कि जो व्यक्ति टीका नहीं लगवाएगा, उनकी सरकारी या वृद्धा पेंशन आदि बंद कर दी जाएगी।
हमारे पास के गाँव चंपा खेड़ी में एक सरकारी शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भंवरी बाई जाट (वह एक वृद्ध महिला हैं जिनकी उम्र लगभग 60 साल है) के घर गए और उनको टीका लगाने को कहा। यह सुनकर उन्होंने अपना नाम बताने से ही मना कर दिया और कहा कि वह वैक्सीन नहीं लगवाएँगी, चाहे उनकी पेंशन ही क्यूँ न बंद हो जाए। ये बोलते ही, वह उन दोनों के पीछे लकड़ी लेकर भागने लगीं। मैं जब भी विजिट पर गई हूँ तो ऐसे ही दृश्य कई अलग-अलग गाँवों में मुझे देखने को मिले हैं।
मैं अमरपुरा गाँव का एक किस्सा आपको सुनाती हूँ, क्यूंकि मैं वहां पर पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थी। मैंने वहाँ लोगों का हाल-चाल पूछना और एनी रोज़मर्रा की बातें करने से शुरुआत करी। फिर बातचीत करने आए लोगों में से एक महिला (गुड्डी) को टीका लगाने के लिए बोला, तो उसके पास बैठी सारी महिलाएं और गुड्डी खुद भी, खेत की ओर भग गई। वो सभी आम के पेड़ पर चढ़ कर खड़ी हो गई और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी – “कह दो मोदी से, हमको टीका लगा कर मरना नहीं है, और ना ही हमें भामाशाह योजना के तहत हमको मिलने वाले 500 रूपए (जो महिलाओं को मिलते हैं) चाहिए।”

बहुत से गाँवों में तो कई औरतें कोरोना माता का उपवास भी रख रही हैं! (करीब 150 महिलाओं ने रखा उपवास)। और तो और लोग महामारी की अब तीसरी लहर से बचने के लिए जगह-जगह पर हवन कर रहे हैं। अक्सर न्यूज़ और अखबारों में डिजिटल इंडिया की दुहाई दे कर, डिजिटल इंडिया के चलते देश को आगे बढ़ाने की बातें उठती हैं। शायद यही है डिजिटल इंडिया – हवन, उपवास, पूजा करना और भगवा कपड़े पहनने से बढ़ेगा इंडिया। डिजिटल इंडिया की ही बात से जुड़ी, मैं इस बात पर भी रौशनी डालना चाहती हूँ कि 100% में से 40% 18+ से 45 साल की उम्र वाले लोगों ने रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन करवा कर टीका लगवाया है। वहीं दूसरी तरफ जब मैंने कुछ लोगों से बात करी, तो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाने की क्या प्रक्रिया है, इसके बारे में उनको कुछ जानकारी नहीं थी।
कभी-कभी हम ये सोचने में मजबूर हो जाते हैं कि जो अनपढ़ युवा-युवतियां, महिला-पुरुष हैं, उन सबके लिए तो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और उसकी जानकारी तो दूर की बात है, क्यूंकि एक तरफ बहुत से ऐसे लोग हैं जो फ़ोन चलाना ही नहीं जानते है और दूसरी तरफ अधिकतर ऐसे लोग हैं जिनके पास फ़ोन ही नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र में तो ज़्यादातर लोग कीपैड वाला फ़ोन रखते-चलाते हैं। फिर भी सरकार और प्रशासन में इन सब बातों को लेकर संवेदना नहीं दिखती है। ऐसा लगता है की ऐसे लोगों को सुविधाएं मिले या नहीं मिले, अधिकारियों को कोई फ़रक नहीं पड़ता है।
