नीतू:
वीमेन इंपावरमेंट यानी ‘महिला सशक्तीकरण’ कई साल से फैशन में है। सरकारों के साथ बहुत सी गैर सरकारी संस्थाएं इसके लिए काम कर रही हैं। हर साल महिला दिवस पर अखबारों के पन्ने महिला सशक्तीकरण के उदाहरणों से रंगे मिलते हैं. न्यूज चैनलों पर बहुत सी हस्तियां विचार रखती हैं। राजनीतिक दल भी अपनी रोटियां सेक रहे हैं। इस बाबत ढेरों योजनाएं चलाई जा रही हैं। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, सेल्फी विद डॉटर, सुकन्या समृद्धि योजना वगैरा-वगैरा। लेकिन इन योजनाओं और प्रयासों का महिलाओं के जीवन पर क्या असर हो रहा है, इस पर बहस की जानी चाहिए। हर कोई महिलाओं को सशक्त बनाने का श्रेय लूटने में लगा है। लेकिन भारत में महिला सशक्तीकरण के असली नायक बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर थे।
5 फरवरी 1951 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संसद में ‘हिंदू कोड बिल’ पेश किया। इसका मकसद हिंदू महिलाओं को सामाजिक शोषण से आज़ाद कराना और पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाना था। महिला सशक्तीकरण की दिशा में इस ऐतिहासिक कदम से आज शायद बहुत कम लड़कियां परिचित होंगी। उन सभी को ये जानने-समझने की ज़रूरत है कि इसी बिल में महिला सशक्तीकरण की असली व्याख्या है।
इससे पहले धार्मिक मान्यताओं में महिला अधिकारों को लेकर अलग-अलग राय थीं। एक राय थी कि स्त्री धन, विद्या और शक्ति की देवी है। मनु संहिता में लिखा है, ‘जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता रमण करते हैं। ’दूसरी ओर ऋग्वेद में बेटी के जन्म को दुखों की खान और पुत्र को आकाश की ज्योति माना गया है। ऋग्वेद में ही नारी के मनोरंजनकारी भोग्या रूप का वर्णन है। नियोग प्रथा को पवित्र कर्म माना गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि दुनिया की सब महिलाएं शूद्र हैं।
मनुवाद और अम्बेडकर
हमारा समाज सदियों से मनुवादी संस्कृति से ग्रसित रहा है। मनुस्मृति काल में नारियों के अपमान और उनके साथ अन्याय की पराकाष्ठा थी।
रात और दिन, कभी भी स्त्री को स्वतंत्र नहीं होने देना चाहिए. उन्हें लैंगिक संबंधों द्वारा अपने वश में रखना चाहिए, बालपन में पिता, युवावस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र उसकी रक्षा करें, स्त्री स्वतंत्र होने के लायक नहीं है–
मनुस्मृति (अध्याय 9, 2-3)
मनुस्मृति में स्त्रियों को जड़, मूर्ख और कपटी स्वभाव का माना गया है और शूद्रों की भांति उन्हें अध्ययन से वंचित रखा गया। मनु ने कहा कि पत्नी, पुत्र और दास को संपत्ति अर्जन का अधिकार नहीं है। अगर ये संपत्ति अर्जित करें तो संपत्ति उसकी हो जाएगी, जिसके वे पत्नी, पुत्र या दास होंगे।
बाबासाहेब ने संविधान के ज़रिए महिलाओं को वे अधिकार दिए जो मनुस्मृति ने नकारे थे। उन्होंने राजनीति और संविधान के ज़रिए भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष के बीच असमानता की गहरी खाई पाटने का सार्थक प्रयास किया। जाति, लिंग और धर्मनिरपेक्ष संविधान में उन्होंने सामाजिक न्याय की कल्पना की है।
‘हिंदू कोड बिल’ के ज़रिए उन्होंने संवैधानिक स्तर से महिला हितों की रक्षा का प्रयास किया। इस बिल के मुख्यतया 4 अंग थे-
1. हिंदुओं में बहू विवाह की प्रथा को समाप्त करके केवल एक विवाह का प्रावधान, जो विधिसम्मत हो।
2. महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देना और गोद लेने का अधिकार देना।
3. पुरुषों के समान नारियों को भी तलाक का अधिकार देना, हिंदू समाज में पहले पुरुष ही तलाक दे सकते थे।
4. आधुनिक और प्रगतिशील विचारधारा के अनुरूप हिंदू समाज को एकीकृत करके उसे मजबूत करना।
डॉ. अम्बेडकर का मानना था-
सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा, जब महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी होगी, जब उन्हें परिवार-समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उनकी इस काम में मदद करेगी।
बाबासाहब के लिए ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पास कराना आसान नहीं था। जैसे ही इसे सदन में पेश किया गया, संसद के अंदर और बाहर विरोध के स्वर गूंजने लगे। सनातन हिंदुओं से लेकर आर्य समाजी तक अम्बेडकर के विरोधी हो गए। संसद के अंदर भी काफी विरोध हुआ।
अम्बेडकर हिंदू कोड बिल पारित कराने को लेकर काफी चिंतित थे। सदन में इस बिल पर सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। वे कहते थे, ‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से ज्यादा दिलचस्पी और खुशी हिंदू कोड बिल पास कराने से मिलेगी।’
सच तो ये है कि हिंदू कोड बिल के जरिए महिला हितों की रक्षा करने वाला विधान बनाना भारतीय कानून के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसका विरोध किया था। उन्होंने नेहरू को लिखे एक पत्र में कहा था-
प्रिय जवाहरलाल जी, इस बिल से यद्यपि काफी लाभ हैं। फिर भी मेरा ऐसा विचार है कि बिल के दूरगामी परिणामों के बारे में लोगों में मतभेद है। इसलिए संविधान सभा को इस बिल को पास नहीं करना है। किसी भी परिस्थिति में इस बिल का समर्थन नहीं करना है। इसे पास करने की जल्दी नहीं करनी है। बिल के द्वितीय वाचन में जल्दबाज़ी हुई है। इस संदर्भ में मैंने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मेरा अनुरोध है कि इन सब बातों पर ध्यान देकर विचार कीजिए।
दुखी होकर मंत्रीपद छोड़ा –
आखिर में 26 सितम्बर 1951 को नेहरू ने घोषणा की, कि ये बिल इस सदन से वापस लिया जाता है। इस बिल के पास न होने पर बाबा साहब को पुत्र निधन जैसा दुख हआ। 27 सितंबर 1951 को बाबा साहब ने मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया। मकसद पूरा न होने पर सत्ता से छोड़ देना निस्वार्थ समाजसेवी की पहचान है। ये बाबासाहब जैसे लोग ही कर सकते थे।
बाबासाहब के इस्तीफा के बाद देश भर में हिंदू कोड बिल के पक्ष में बड़ी प्रतिक्रिया हुई। ख़ासतौर से महिला संगठनों द्वारा। विदेशों में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई। कुछ साल बाद 1955-56 हिंदू कोड बिल के अधिकांश प्राविधानों को निम्न भागों में संसद ने पारित किया।
1. हिंदू विवाह अधिनियम
2. हिंदू तलाक अधिनियम
3. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम
4. हिंदू दत्तकगृहण अधिनियम
कोई संदेह नहीं कि इसका श्रेय डॉ. अम्बेडकर को ही जाता है। ये ‘संविधान शिल्पी’ के प्रयासों का परिणाम है कि भारतीय समाज में महिलाओं को अवसर प्राप्त हुए। वैसे अब भी कई सामाजिक रूढ़ियां महिलाओं के रास्ते की रुकावटें हैं। फिर भी मुझे और मेरे जैसी महिलाओं को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी है तो सिर्फ बाबासाहब की वजह से ही मुमकिन हो पाई।
नीतू का ये लेख लल्लनटॉप में 14 अप्रैल 2021 को छपा है। इसको पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।