
पुस्तकें इंसानों की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। अच्छी पुस्तकें ज्ञानवर्धन के साथ-साथ भाषा कौशल और शब्दावली विकसित करती हैं तथा तनाव को कम करने का एक बेहतरीन तरीका है। कोरोना वायरस महामारी के कारण स्कूल बन्द होने की वजह से बच्चों की शिक्षा पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। बच्चों को पढ़ने-लिखने और सीखने की प्रक्रिया से पुनः जोड़ने के क्रम में “अवध पीपुल्स फोरम” के कार्यक्रम अपना तालीम घर के तहत “पुस्तक यात्रा” नाम से पुस्तक मेला का आयोजन फैजाबाद, अयोध्या शहर के अलग-अलग जगहों पर किया जा रहा है। अब तक यह यात्रा शहर के लगभग 15 से भी अधिक जगहों पर और 400 से ज़्यादा बच्चों तक पहुंच चुकी है।
हम इस पुस्तक यात्रा में अपने साथ निरंतर संस्था का किताबों का पिटारा और युवा श्रृंखला, एकलव्य, आदि से किताबें झोले में लेकर जाते हैं। समुदाय में जो स्थान मिले जैसे पेड़, चारपाई, तख्त, मेज़, दीवार, फल रैक, आदि का प्रयोग करते हुए पुस्तकों की प्रदर्शनी लगा देते हैं। इन पुस्तक प्रदर्शनी में बच्चों का पुस्तकों के प्रति प्रेम और उत्साह देखते ही बनता है। इतने दिनों के बाद पुस्तकों को अपने बीच पाकर वे खुशी से झूम उठते हैं। पुस्तकों को देखने और पढ़ने के लिए इधर से उधर दौड़ना, अपने संगी साथी को भी बुला कर लाना, अपने घर वालों से पुस्तकों को साथ चलकर देखने और लेने के लिए ज़िद करना, घरों में ले जाकर अपने बड़े भाई-बहन को पुस्तकें दिखाना जैसे तमाम दृश्य, बच्चों का किताबों के लिए प्रेम और उत्साह को उजागर करता है।
बच्चों के अलावा बड़े भी इस मेले में आकर पुस्तकें देखते और पढ़ते हैं। बच्चें अपनी पसंद की पुस्तकों को पढ़नें के साथ-साथ लेते भी हैं ताकि बाद में वह उसे पढ़ सके। यह पुस्तक यात्रा बच्चों के भीतर पढ़ने-लिखने और सीखने की रूचि को रोपित कर रहा है। समाज के गरीब और पिछड़े तबके के बच्चे जो इस महामारी के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं उनके लिए ये पुस्तक मेला एक सपने के साकार होने जैसा है। पुस्तक मेले का बच्चों के बीच लोकप्रियता और स्वीकार्यता को उनके द्वारा कौतूहलवश बोले गए मधुर शब्दों से पता चलता है, कि, भैया/दीदी, आप दोबारा नई-नई किताबों के साथ फिर कब आएंगे? इस बार चुटकलों, गणित और अंग्रेजी की नई किताब लेकर आईएगा !
हम इस बात को भी जान पाए हैं कि बाल साहित्य बच्चों के बीच बिलकुल भी नहीं पहुुँच रहा है। बच्चों और युवाओं के पास वही किताबें हैं, जो उनको स्कूल-कालेज से मिली हैं। वो सिर्फ कोर्स की ही किताबों से रूबरू हैं। ऐसे में जो बाल एवं युवा साहित्य इतने बड़े पैमाने पर मौजूद हैं वह उन तक सहजता से नहीं पहुुँच रहा है। ऐसा नहीं हैं कि जहाँ संसाधनों की कमी हैं, वहाँ ही बाल साहित्य नहीं पहुुँच रहा हैं। बल्कि जहाँ संसाधन हैं, वहां भी बाल साहित्य ना के ही बराबर पहुुँच रहा हैं। संसाधन होने के बावजूद बाल साहित्य की समझ एवं उपलब्धता के बारे में कोई रूचि शिक्षक वर्ग के भीतर भी दिखाई नहीं देती है।
इस पुस्तक यात्रा से हम यह समझ पाए हैं कि यदि बच्चों और युवाओं के बीच बेहतर साहित्य उपलब्ध हो तो बच्चे खुद बा खुद पढ़ने के लिए आगे आ रहे हैं। पढाई दिलचस्पी के लिए हो, उनके अपने लिए हो तो बच्चों या किसी को बोझ नहीं लगता है। एक बार पढ़ने में रूचि जागृत हो जाए तो फिर कोर्स भी पढ़ने और अपने जीवन से जोड़कर देखने की संस्कृत बच्चों के बीच विकसित हो सकती हैं। इसलिए समुदाय से लेकर स्कूल, कालेज में बेहतर बाल एवं युवा साहित्य की उपलब्धता ज़रूरी हैं। इस दिशा में काम करना मौजूदा शिक्षा व्यवस्था के लिए एक आवश्यक कदम होगा।
