विजय सोलंकी:
आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं, जहां मेहनत तो हर कोई कर रहा है परंतु उसकी मेहनत को सही दिशा नहीं मिल पा रही है। मैं विजय सोलंकी इस लेख से यह अवगत कराना चाहता हूं कि आज युवा नौकरी की तैयारी करें तो किस बुनियाद पर करें? वर्तमान में हमारे देश में ऐसी स्थिति है कि सरकार नौकरियाँ निकालने के पहले सोचती हैं कि इन नौकरियों को निकालने से उन्हें कितना राजनीतिक फायदा होगा? इसलिए देश में सरकारी नौकरियों की स्थिति बहुत खराब है। बच्चे बड़ी-बड़ी कोचिंगों में पढ़ाई के लिए जाते हैं, सरकार परीक्षा की तिथि घोषित करती हैं, बच्चे उस परीक्षा के लिए जम कर तैयारी करते हैं, बाद में पता चलता है परीक्षा ही निरस्त हो गई अब इसमें उन बच्चो का क्या कसूर? जिन्होंने इतनी मुश्किलों से पैसों का तालमेल करके कोचिंग की, और उनकी परीक्षा ही नहीं ली गई! इन सब चीजों से बच्चे मानसिक रूप से प्रभावित होते हैं, उन्हें लगने लगता है कि मैं कितना भी पढ़ लूं, होगा तो वहीं जो सरकार चाहेगी। इससे उनमें हताशा भी बढ़ रही है।
मैं स्वयं का एक अनुभव साझा कर रहा हूं। मैंने भारतीय पैरामिलेट्री की परीक्षा के लिए 2018 में आवेदन किया था, जिसकी लिखित परीक्षा व भर्ती का दूसरा चरण फिजिकल था जिसमें 5 किलोमीटर की दौड़ अगस्त 2019 में हुई। तीसरा चरण मेडिकल चेकअप, जनवरी 2020 में आयोजित हुआ। अब कोई चरण नहीं बाकी रहा फाइनल मेरिट ही बनकर आने वाली थी पर सरकार ने इसमें कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखाई और जनवरी 2020 से जनवरी 2021 तक फाइनल मेरिट बनाने में समय लगा दिया। अखिरकार रिजल्ट जनवरी 2021 में आ गया। अब आप इसे यात्रा कहें या कुछ और पर मैं तो दुबारा ऐसी कोई यात्रा नहीं करना चाहूंगा।
विगत दो वर्षो में मैंने देखा हमारे आस-पास के युवा अच्छी पढ़ाई करने के बावजूद प्राइवेट कंपनियों में रोज़गार के लिए कोई इंदौर, कोई गुजरात तो कोई पूना जैसे शहरों में चले गए हैं। इसके पीछे मुख्य कारण यही रहा है कि जब लोग मेहनत के काबिल थे तब उन्हें सही मौका नहीं मिल पाया और जब मौका मिला तब तक उम्र की पाबंदी लग गई।
मैं अपने अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूं कि आज का युवा मेहनत तो बहुत कर रहा है परन्तु उसकी नींव में जो पत्थर डाले जाते हैं वो सीमित हैं। कोई पत्थर विज्ञान का तो कोई गणित का और नहीं तो कृषि विज्ञान का। जब सरकारी स्कूलों में सीमित विषय होंगे तो बच्चे मजबूरी में उन ही विषय को चुन लेते हैं। आज डॉक्टर, इंजिनियर बनना गलत नहीं है परंतु कोई पेंटर, चित्रकार या कुछ और अपनी रूचि अनुसार बनना चाहे तो उसके लिए भी सरकार को पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को भी जगह देनी चाहिए और उन बच्चों को बढ़ावा देना चाहिए। सरकार ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
इस प्रकार के कुछ विषय प्राइवेट स्कूलों में जरूर मिल जाते हैं। सरकार को ऐसे पाठ्यक्रम भी बनाना चाहिए जिससे युवा अपने अंदर छुपी प्रतिभा को निखार सकें और उस पर आधारित रोज़गार भी उन्हें मिलने चाहिए। अगर ऐसा होता है तो भविष्य में रोज़गार की इतनी भाग-दौड़ नहीं रहेगी, क्योंकि सरकारी नौकरी के अलावा उनके पास उनका अपना हुनर होगा। और आज आप देख सकते हैं कि यदि किसी को उसके हुनर के मुताबिक सही मौका मिल जाए तो वह क्या नहीं कर सकता है? सरकार को नौकरी के लिए नौकर नहीं, प्रतिभा और हुनर को तलाशना चाहिए। क्या पता कोई नया अब्दुल कलम मिल जाएं?
