(किसान आन्दोलन के समर्थन में लिखी गई एक कविता)
तेज़ झोंके हवाओं के आते रहे;
और पानी बरसता रहा रात भर।
जितने मेरे डर थे जाते रहे,
और पानी बरसता रहा रात भर।
बीसियों खौफ़ हमे डराते रहे,
घुप अंधेरे में हम कंप-कंपाते रहे।
बहुत चाहा कि शमा जला ले मगर,
माचिस की एक भी तीली जल न सकी।
बस जुगनू थे, जो जगमगाते रहे,
और पानी बरसता रहा रात भर।
