शीबा अज़ीज़:
हर दौर में लड़कियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लड़की बनकर पैदा होना ही उनके लिए एक चुनौती है। आज अगर घर में लड़की पैदा होती है तो लोगों के चेहरों पर एक उदासी तारी हो जाती है क्यूंकि लोगों के ज़हन इसी बात की तरफ जाता है कि लड़की है तो सबसे पहले उसकी शादी और दहेज़ का इंतज़ाम कैसे और कहाँ से करेंगे। दूसरी चुनौती अगर वो पढ़ना चाहे तो घर वाले ये सोचकर मना कर देते हैं कि जितना पैसा तुम्हारे पढ़ने में खर्च होगा, उतने में तुम्हारी शादी ही कर देंगे।
लड़कियों की सुरक्षा आज के दौर का एक बहुत बड़ा मसला बन चूका है। माहौल इस कदर ख़राब हो चुका है कि माँ-बाप अपनी बेटी को अकेले बाहर भेजने से डरते हैं। तो लड़की फिर बाहर जाए कैसे? तीसरी चुनौती लड़की को इंटर के बाद से ही घर की ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ती है। वो ऐसे ही माहौल में परवरिश पाती है कि उनकी सोच कभी आगे तक जा ही नहीं पाती। वो खुद उसी परवरिश में अपने आप को ढाल कर, घर की सारी ज़िम्मेदारी को, अपना फ़र्ज़ समझ कर निभाती रहती है।
आखिर में घर वाले खुद अपनी मर्ज़ी से उसके लिए लड़का ढूँढकर उसकी शादी कर देते हैं। लड़की की मर्ज़ी पूछना ज़रूरी भी नहीं समझते और लड़की भी घर के फैसले को चुपचाप स्वीकार कर उस लड़के के साथ रुख़सत हो जाती है, जिसे वो जानती तक नहीं। दूसरे घर जाकर वही ज़िम्मेदारी सरअज़ाम देती है, जो अपने घर करती थी। बस इसी के इर्द-गिर्द एक आम मध्यम परिवार की ज़िन्दगी घूमती है। कुछ एक अगर बड़े सपने देख भी लेती है तो लोग उसके हौसले को पस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
जिस समुदाय से मैं हूँ या जिस माहौल में रहती हूँ, वहां शायद ही कोई लड़की अपने हक़ या अपने फैसलों पर बोलने का अधिकार रखती हो। सबसे बड़ा मसला तो ये खुद है कि लड़कियां जानती ही नहीं है कि उनका भी घर के फैसले में बोलने का पूरा हक़ है। वो तो बस ये ही समझती है कि जो माँ-बाप हमारे लिए कर रहे हैं वो बिलकुल सही है। हालांकि कभी माता- पिता से भी गलतियाँ हो जाती हैं। एक कहावत है कि लड़कियों को पैदाइश पर ख़ुशी इज़हार करो, लेकिन लोग उससे उसका पहला ही हक़ छीन लेते है। उनके पैदा होने पर गम व अफ़सोस का इज़हार कर जो समाज लड़की का पहला ही हक़ छीन ले, ऐसे समाज से वह क्या उम्मीद रखे कि आगे भी उसे अपने हक़ और अधिकार मिल पाएंगे?
शीबा का मानना है कि उर्दू सीखने से या उर्दू लेखों को पढ़ने से एक अलग सा सुकून मिलता है। शीबा खुद काफी लिखती हैं और भिन्न-भिन्न उर्दू लेखकों और कवियों को पढ़ना पसंद करती है। शीबा का कहना है कि सभ्यता, मानवता, समावेश और प्रेम जैसे भावों को उर्दू की मदद से पूरी ईमानदारी से व्यक्त किया जा सकता है, यही ईमानदारी सबसे बड़ी खूबसूरती है।
फीचर्ड फोटो आभार: फ्लिकर
