संविधान दिवस: भारत के लोकतंत्र का पहला मील का पत्थर

बालाजी हालगे:

15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली। तब स्वतंत्र भारत का कारोबार चलाने के लिए देश की व्यवस्था विवरण के लिए कुछ कानून भी बनाने की ज़रूरत थी जिसके चलते घटक समिति का निर्माण हुआ। इस घटक समिति के पहले अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद बने और निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव अम्बेडकर बने। भारत के विभिन्न क्षेत्र, भाषा, लिंग, समाज, कला, संस्कृति से आने वाले कुल 299 प्रतिनिधियों ने इस समिति का गठन 29 अगस्त को किया, इसलिए यह दिन संविधान निर्माण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में दर्ज है। बाबासाहेब एक बुद्धिमान संवैधानिक विशेषज्ञ थे, जिन्होंने 60 से भी ज़्यादा देशों के संविधान का अध्ययन किया था। बाबासाहेब को “भारत के संविधान के पिता” के रूप में जाना जाता है।

समिति के सदस्य लगभग 3 साल (2 साल 11 महीने और 18 दिन तक) में 114 दिन बैठे और गहन चर्चा की कि भारत के संविधान में क्या कानून और प्रावधान होने चाहिए। ड्राफ्ट तैयार करने में समिति को दो साल से ज़्यादा का समय लगा। 26 नवंबर, 1949 को इस समिति ने संविधान का ड्राफ्ट संविधान सभा के सामने प्रस्तुत किया। संविधान के संस्करण, हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में तैयार किए गए थे। यह दुनिया में किसी भी देश का सबसे लंबा हस्तलिखित संविधान था। 26 जनवरी, 1950 को यह प्रभाव में आया और भारत को अपना संविधान मिला। मूल संविधान में कुल 22 भाग, 08 अनुसूचियां और 395 अनुच्छेद थे।

संविधान लेकिन किसी कानून की बड़ी किताब से अलग, एक सजीव सी रचना है – जिसे हम, भारत के लोग, शक्ति देते हैं। किसी भी चुनी हुई सरकार की ज़िम्मेदारी है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा करे।

संविधान दिवस के अवसर पर भारत के विभिन्न जन-संगठनों ने लोकतंत्र के इस पर्व को मनाया, आइये देखते हैं इसकी कुछ झलकियाँ:

ज़िंदाबाद संगठन, बलांगीर (ओडिशा)
दिशा संगठन, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
जन जागरण शक्ति संगठन, अररिया (बिहार)
दलित आदिवासी मंच, पिथौरा (छत्तीसगढ़)
सर्वहारा जनांदोलन, रायगढ़ (महाराष्ट्र)
श्रमजीवी संगठना, लातूर (महाराष्ट्र)
आदिम आदिवासी मुक्ति मंच, नयागढ़ (ओड़ीशा)
विस्थापित मुक्ति वाहिनी, जमशेदपुर (झारखंड)
कष्टकरी जन आंदोलन, नागपुर (महाराष्ट्र)
लोक मुक्ति संगठन, झारसुगुड़ा (ओडिशा)

Author

  • बालाजी / Balaji

    बालाजी हालगे महाराष्ट्र के लातूर ज़िले से हैं और पिछले 20 सालों से श्रमजीवी संगठन के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं। इस दौरान इन्होने कई भूमिहीन परिवारों को सरकारी ज़मीन पर बसाने का काम किया है और वंचित समुदायों के उत्थान और न्याय की प्रक्रिया के लिए कार्यरत रहे हैं।

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