सावन के समय छिंदवाड़ा (म.प्र.) में गाया जाने वाला एक लोकगीत
झमको तो झमको वीरों सेजरो रे।
कौन बहनी जाए परदेस बारे मोरे लाल
सावन झमकन दे।। (१)
काली कमरिया वीरा होड़ के रे।
बहनी लेवौआ वीरा जाए परदेस वारे मोरे
लाल सावन झमकन दे।। (२)
आगे चलत बहनी नदिया पड़त है रे।
नदिया चली है अथाएं वारे मोरे लाल
सावन झमकन दे।। (३)
अम्मा काटके वीरा नाव नेवारिया रे।
चंदन काटके केलवार वारे मोरे लाल
सावन झमकन दे।। (४)
नदिया पार होखे बहनी घर पहुंच गाओ रे।
बहनी लेवाऊआ लाए परदेश वारे मोरे लाल
सावन झमकन दे।। (५)
सावन के समय गाया जाने वाला यह लोकगीत, बहन अपने भाई को याद कर गाती है जो उसे ससुराल से पीहर ले जाने आ रहा है। रास्ते में जाते समय हो रही कठिनाइयों का वर्णन किया गया है इस गीत में।

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