जिनित समाद:
ओडिशा राज्य के झारसुगुड़ा ज़िला के लइकेरा ब्लॉक के जाममाल ग्राम पंचायत की लगभग 900 की जनसंख्या वाला मेरा गाँव तपगुंजा है। हमारे गाँव मे गोंड, मुंडा, किसान, धोबी, लोहार, पान, केऊंट, गौड़ और रकतुरिया जाति के लोग वास करते है। हमारे गाँव के लगभग 85% परिवार आदिवासी संप्रदाय के हैं और 15% परिवार अन्य जाति के हैं। हमारे गाँव के चारो दिशाओं मे जंगल है। यहाँ लगभग 95% परिवार सरकार द्वारा तय गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी के हैं जो छोटे स्तर पर खेती, मज़दूरी करते हैं और लघु वन उपजों का संग्रह कर अपनी जीविका निर्वाह करते हैं। वहीं 5% परिवार मध्यम-आम वर्ग के हैं जो खेती के साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी करते हैं। इन परिवारों में से कुछ सदस्य सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में नौकरीकर अपना जीवन-बसर करते हैं।
23 मार्च को देश भर में कोरोना महामारी के कारण केंद्र सरकार के द्वारा पहली बार लॉकडाउन कराए जाने के बाद से ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार के द्वारा बारी-बारी से कभी लॉकडाउन, कभी शटडाउन, तो कभी अनलॉक के नियम अब तक जारी किए जा रहे हैं। इसके कारण देशवासियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। पर इन सब में भी सबसे दयनीय स्थिति गांव और शहरों में रहने वाले गरीब, दिहाड़ी मज़दूर, प्रवासी मज़दूर और बहुत कम पूंजी में व्यवसाय करने वाले परिवारों का हुआ, जिसके बारे में हम सभी ने देखा, सुना और जाना।
इसके बावजूद भी हमारे गांव के लोगों के जीवन पर लॉकडाउन और शटडाउन का कोई खास असर नहीं था। लेकिन 20 अगस्त को हमारे गांव के आंगनवाड़ी कर्मी के बेटे को, जो सुंदरगढ़ ज़िले के राजगांगपुर स्थित ओ.सी.एल सीमेंट फैक्ट्री में काम करता था और हाल ही मे घर लौटा था, कोरोना से संक्रमित पाया गया। तब तुरंत ही यह खबर झारसुगुड़ा जिले के हर विभागीय अधिकारी तक पहुंच गई। इसकी सूचना हमारे गांव के कोविड संचालन कमेटी को भी दी गई।
21 अगस्त को झारसुगुड़ा ज़िला अधिकारी के द्वारा एक पत्र जारी कर हमारे गांव के एक पाड़ा/टोला को संक्रमित क्षेत्र घोषणा कर, उस पाड़ा/टोला में दिनांक 22 अगस्त से लेकर अगले 14 दिनों के लिए पूर्णरूप से लॉकडाउन लागू कर दिया गया। इसके बाद सरकारी आदेश अनुसार कोविड संचालन कमेटी द्वारा, जिसका एक सदस्य मैं भी हूं, इस विषय पर चर्चा करने के लिए गांव में एक सभा का आयोजन किया, जिसमें करीब 15 लोग शामिल थे। इस सभा में गांव के लोगों के लिए कोविड-19 को लेकर सतर्कता और इस दौरान के लिए ज़रूरी नियमों पर चर्चा की गई, और गांव में 14 दिनों के लिए कुछ नियमों के प्रस्ताव पर निर्णय लिया गया। लॉकडाउन के इन्हीं 14 दिनों के बीच गणेश पूजा और पश्चिम उड़ीसा में मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्यौहार नवाखाई मनाया जाना था। गांव के अंदर इन 14 दिनों तक कोई भी त्यौहार ना मनाए जाने पर निर्णय लिया गया और इसकी सूचना को गांव के बेहरा (ज़ोर आवाज़ से पुकारने वाला) के द्वारा सभी गांववासियों को दी गई।
22 अगस्त को हमारे गांव में स्वास्थ्य विभाग द्वारा, संक्रमित पाड़ा में लोगों की कोरोना जांच के लिए एक दल भेजा गया था। पर इस जांच के वक्त हम सभी को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। फिर भी उस दिन करीब 75 लोगों ने अपनी जांच कराई, जिसमें से तीन लोगों की कोरोना संक्रमित पाए जाने का रिपोर्ट सामने आई। यह लोग हमारे गांव के आंगनवाड़ी कर्मी के परिवार से थे। इस रिपोर्ट के आने से गांव के कोविड संचालन कमेटी के द्वारा अधिकांश परिवारों की कैसे जांच कराई जाए, इस उद्देश्य से दिनांक 22 अगस्त की शाम को पुनः एक सभा बुलाई गई। 24 अगस्त को पुनः कोरोना की जांच के संबंध मे उपस्थित लोगों को बताया गया और सभी लोगों से सहयोग के लिए अनुरोध किया गया। लेकिन सभा में एक समूह ने कोरोना की जांच पर संपूर्ण इनकार करते हुए लॉकडाउन और त्योहारों को ना मनाने के नियमों को न मानने की बात कही और आंगनवाड़ी कर्मी को दोष देते हुए सभा से चले गए। कुछ लोगों ने हमारे अनुरोध को मानते हुए हमारे द्वारा लिए गए फैसले पर सहयोग भी किया।

24 अगस्त को हमारे गांव के करीब 200 लोगों ने अपनी जांच कराई। सभी की जांच की रिपोर्ट नेगेटिव आई। जो समूह हमारे विरोध में थे वे जांच के लिए नहीं आए और उन्होने 25 अगस्त को नुआखाई का त्यौहार भी मनाया। हमें गांव में लॉकडाउन कराने वाला बताकर हमारे विरुद्ध लोगों को भड़काया गया, जिस वजह से गांव में एकता टूट गई और लोग दो दलों में बैठ गए। कोरोना के जांच के एक हफ्ते बाद 14 दिनों के लिए लॉकडाउन मे रहने वाले पाड़ा के लोग अपनी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं को बताते हुए अपनी समस्याओं के समाधान के लिए लॉकडाउन खोलने के लिए कहने लगे या उन्होने खाद्य सामग्री, दवाइयां और रुपए का सुविधा देने की मांग की। समस्याओं को देखते हुए हमारी कमेटी की तरफ से हमने अपने पंचायत के सरपंच, नोडल अधिकारी, ब्लॉक के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी। पर सभी ने लॉकडाउन खोलने से मना कर दिया और ना ही लोगों के मांगों को पूरा करने की आश्वस्ति दी।
हम यह जान गए कि अब हमें ही हमारे लोगों के लिए कुछ सशक्त निर्णय लेने होंगे और हमारे लोगों को संभालना होगा। इसलिए हमने लोगों को एक हफ्ते के अंदर ही लॉकडाउन खोलने की अनुमति दे दी और इसकी पूरी ज़िम्मेदारी अपने सर ली।
लॉकडाउन खोलने के कुछ दिन बाद नुआखाई का त्यौहार मनाया गया और अब हम सब मिलकर गांव को पुनः जोड़ने और लोगों की एकता को मजबूत करने की प्रयास कर रहे हैं। कोरोना के कारण मुझे कई तरह के अनुभवों को देखने और जीने का मौका मिला। मुझ पर और मेरे काम पर भरोसा करने वाले मेरे विरुद्ध हो गए। गांव की एकता टूट गई। रिश्तों में दरार आ गई। गलत सूचना और अफवाह के वजह से लोग स्वास्थ्य जांच कराने से दूर चले गए। व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया की गलत सूचना के प्रचार-प्रसार से लोग इंसानियत के दुश्मन बन गए। कोई इसके लिए मुसलमानो को दोष देने लगे, तो कोई प्रवासी मजदूरों को ज़िम्मेदार मानने लगे। इस लॉकडाउन के दौरान बच्चों की शिक्षा भी छूट गई। कितनों के रोज़गार चले गए। बहुत लोग कर्ज़दार हो गए हैं और अब उसे भरने में समर्थ भी नहीं है। सरकारी सहायता लोगों को सिर्फ़ ज़िन्दा रखने का प्रयास है।
इधर गरीब कोरोना और लॉकडाउन काल में, आर्थिक संकटों से गुज़र रहा है, तो वहीं दूसरी ओर प्रकृति के द्वारा कभी तेज़ वर्षा से, तो कभी वन्य प्राणियों से घरों के टूटने जैसी समस्या भी हो रही है- कई तरह की समस्याएँ, जिसकी कल्पना करना भी कष्ट है।
पर इन सब समस्याओं में सबसे अहम समस्या लोगों की आज़ादी है, जिसे वह किसी भी हाल में त्यागना नहीं चाहते, जो मुझे बहुत ही अच्छी लगी। इसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाएंगे। कोरोना के इस समय में बार-बार लॉकडाउन की वजह से लोगों में काफी आक्रोश है और सरकार की व्यवस्था के प्रति असंतुष्टि बढ़ गई है। मुझे यह लिखने में ज़रा भी संदेह नहीं है कि ऐसी घटना सिर्फ मेरे गांव या मेरे अंचल के अंदर तक सीमित नहीं है, परंतु ऐसी समस्या अनेक गांव या शहरों में है। अगर ऐसा है तो पूरे देश में एक बड़ा असंतोष भरा हुआ है। इस असंतोष को देखते हुए लगता है की आज देश बदलाव चाह रहा है और हर एक बात से आज़ादी की मांग कर रहा है। अभी ज़रूरत है कि हम इन असंतुष्ट आवाज़ों को संगठित करें, उन तक सब सूचना पहुंचाएं और बेहतर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकल्पों की खोज करने के लिए उत्साह पैदा करें।
मैंने अपने लोक मुक्ति संगठन के द्वारा हमारे गांव से इसकी शुरुआत कर दी है। मुझे विश्वास है कि ऐसे प्रयास अन्य संगठनों के साथियों के द्वारा शुरू हो गए होंगे। कुछ अगर बाकी रह भी गए हैं तो आगे अवश्य शुरू होंगे और बेहतर कल का निर्माण अवश्य होगा।
इंकलाब जिंदाबाद!
