आम दो आदिवासी संथाल होपोन

(संथाली लोकगीत)

चास कमी गेताम सोरोस कमी
बनीज बेपार बाम बाड़ाय
चकरी कमी बाम नाय
ओलोक अकील बांगते
आम दो आदिवासी संथाल होपोन

गडा आड़े फेड रेताम जमी जयगा
चा: एम सेहोय अकात बिर पकाड़ी
ताक रे सिया: में होड़ो, गेहुम, जोन्डरा
बुट, मसरी, केसारी,
हायरे हायरे चास ताम आसेच तासेच
ओड़ा: पेरेज धोन अर्जाव जोंग में

संथाली भाषा का यह गीत, बिहार के बांका जिले से बबलू भाई ने साझा किया है। गीत का अर्थ है-

हम आदिवासी संथाल समुदाय के पुत्र हैं, खेती बाड़ी ही हमारा सर्वोच्च काम है। शिक्षा और ज्ञान के अभाव में, ना ही हम व्यापार जानते हैं और ना ही हमे सरकारी नौकरी मिलती है। इसलिए खेती बाड़ी ही हमारा सब कुछ है।

नदी के किनारे हमारे खेत-बाड़ी होते हैं। उसमें जंगली-कंटीली झाड़ियाँ क्यों लगा रखी हैं भाई, समय पर जुताई करो और खेतों को आबाद करो। धान, गेहूं, मकई, चना, मसूर, खेसारी (एक तरह कि स्थानीय दाल) की खेती करो हाय रे!! अनाज की इस उपज से तुम्हारा घर भर जाएगा।


संथाली भाषा के इस गीत की शाब्दिक त्रुटियां, मदन मोहन सोरेन जी ने ठीक की हैं।

Author

  • बबलू / Bablu

    बबलू, बिहार के बांका ज़िले से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं। अपने क्षेत्र के संगठन- आदिवासी मजदूर किसान मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर अपने समुदाय के लिए काम करते हैं।

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