खेतवा के अरी-अरी, घुमे छै किसान हो

(ठेठी लोकगीत)

अखिलेश:

खेतवा के अरी-अरी
घुमे छै किसान होsss
पूरबी बयरिया मे काटे पटुआ धान हो…x 2
खेतवा के अरी-अरी…x 2

आगू-आगू बैल चले
पीछु से किसनवा होsss 
खेतवा मे मिली-झूमीं
करे सब कामवाsss
गोरिया के चुनरी देखss … उड़े आसमान होsss
पूरबी बयरिया मे काटे पटुआ धान हो…x 2
खेतवा के अरी-अरी… x 2

धान गेहूँ पटुआ बुने
रौपे छै मक्कैया
खेतवा मे मिली-जुली
काटे छै भद्देय्याsss
अगहन के मास देखss 
काटे छे लगन हो
पूरबी बयरिया मे काटे पटुआ धान हो…x 2
खेतवा के अरी-अरी…x 2

सबहा अतिथी लैsss रोपे छे मखान हो …
पूरबी बयरिया मे काटे पटुआ धान हो…x 2
खेतवा के अरी-अरी…x 2

उत्तर-पूर्व और पूर्वी बिहार की प्रचलित भाषा मैथिली भाषा की ठेठी बोली में खेती पर आधारित यह गीत जितेंद्र ने लिखा है। कटिहार जिले के रहने वाले जितेंद्र, जन जागरण शक्ति संगठन से जुड़े हैं और अपनी पंचायत के सरपंच भी हैं। यह गीत हमारे साथ सामाजिक परिवर्तन शाला के साथी अखिलेश ने साझा किया है, जो खुद जन जागरण शक्ति संगठन के सक्रिय सदस्य हैं।

अखिलेश के शब्दों में ही आइये पढ़ते हैं इस गीत का हिन्दी में सार:

“किसान जब खेती करता है तो वह खेत के बगल में छोटे-छोटे बांध बना देता है और फिर उन पर चलता है। जब अगहन की माह यानि कि नवंबर के आस-पास का समय आता है, तब किसान फसल काटने के लिए खुशी से अपने खेतों में जाता है। सावन के महीने में जो अतिथि आते हैं, उनको माखन परोस कर खिलाते हैं।”

Author

  • अखिलेश / Akhilesh

    अखिलेश, बिहार के अररिया ज़िले से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं। गाने लिखना, गाना और सबको खेल खिलाने में माहिर। जन जागरण शक्ति संगठन के साथ मिलकर अपने समुदाय के लिए काम करते हैं।

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