अखिलेश:
सुरेश शर्मा, सहरसा ज़िले के एक छोटे से गाँव कानोवा के रहने वाले हैं। सुरेश बहुत ही गरीब परिवार से हैं, इनके दो छोटे-छोटे बच्चे एवं बीवी घर में रहते हैं और वह खुद कमाने के लिए बाहर पलायन कर जाते हैं। एक बार सुरेश ने 10 लोगों के एक समूह से लोन लिया था, लेकिन पैर टूट जाने के कारण वह इस लोन को पूरी तरह से चुका नहीं पाए। इसके बाद इस समूह का एजेंट, सुरेश शर्मा को काफी टॉर्चर करने लगा। वह कहता कि किस्त जल्दी दो नहीं तो जेल भेज देंगे, घर की कुर्की कर देंगे। इसके बाद भी जब सुरेश लोन की किस्त जमा नहीं कर पाए तो उस एजेंट ने सुरेश शर्मा को थाने से एक नोटिस भिजवाया, और पुलिस जब इनके घर पर आई तो यह घर छोड़कर भाग गए।
घर से भागने के बाद गाँव के ही एक व्यक्ति ने उन्हें बताया कि आप जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) के साथियों से मिलो। वह मदद करेंगे कि जब तक तुम्हारा पैर ठीक नहीं होता तब तक तुम्हें किस्त ना देनी पड़े। संगठन के साथी एजेंट से यह लिखा कर ले लेंगे, और तुम्हें पुलिस-प्रशासन भी तंग नहीं करेगा। जब वह मुझसे मिले तो मैं उसी गाँव में एक अन्य टोले में मीटिंग कर रहा था। जब सुरेश ने आपबीती सुनाई तो हमने तुरंत समूह के एजेंट से जाकर भेंट की और उनसे टाइम लिया कि जब तक सुरेश का पैर ठीक नहीं होता, तब तक आप इन्हें तंग नहीं करें। हमने उनसे यह भी कहा कि पुलिस-प्रशासन के द्वारा हो या किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा उन्हें तंग नहीं किया जाए। इसके बाद सुरेश संगठन से जुड़ गए और 2 महीने बाद उन्होंने किश्त के रूप में एक छोटी रकम भी समूह में जमा करना चालू कर दिया, पैर ठीक हो जाने के बाद सुरेश फिर से कमाने के लिए बाहर निकल गए।
जब हम उत्तराखंड में अप्रैल 2023 में हुए सामाजिक परिवर्तन शाला के शिविर में गए तो पलायन करने वाले मज़दूरों के मुद्दे पर जयश्री ताई ने जानकारी दी थी। सुरेश से मिलने के बाद से ही मेरे दिमाग में यह बात चल रही थी कि इनकी मदद कैसे की जाए। मई महीने में सुरेश जब काम के लिए बाहर थे तो एक बार उनसे फोन पर बात हुई। उन्होंने भी बताया कि हर बार मज़दूरी से कुछ ना कुछ बेमानी करके यह लोग पैसा काट लेते हैं। इस बार जो ठेकेदार सुरेश को काम के लिए लेकर गया था, उसने हर महीने ₹18000 मज़दूरी देने की बात कही थी, लेकिन जब मज़दूरी भुगतान करने का समय आया तो ठेकेदार पूरे पैसे देना नहीं चाहता था।
इसके बाद हमने जयश्री ताई से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने सुरेश का पूरा पता मांगा। तब सुरेश पंजाब के फरीदाबाद की किसी मंडी में काम कर रहे थे, यही बात हमने जयश्री ताई को बताई। संगठन के साथी सुरेश को जब ढूंढना शुरू किया गया तो संयुक्त किसान मोर्चा के एक साथी से संपर्क हुआ, उन्होंने सुरेश का पता लगाने में काफी मदद की। जब वहाँ के मज़दूरों से मुलाक़ात हुई तो सभी काफी डरे हुए थे, बिहार से मज़दूरों की सप्लाई करने वाले बल्ली सरदार को मज़दूरों को ₹18000 का भुगतान करना था, लेकिन उन्हें केवल ₹12000 दिये गए।
इसमें 10 से अधिक मज़दूर दलित समुदाय से थे जो बहुत ही लाचार और दबे-कुचले परिवारों से थे। इनमें से एक सुबोध राम भी थे, जो बिहार के मधेपुरा जिला से हैं। इनको भी अपने गाँव में जाति आधारित उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। सुबोध के गाँव के यादव समुदाय के कुछ दबंग लोग, इनका घर तोड़ने लगे क्योंकि वह काफी दिनों से उच्च जाति वालों की ज़मीन के आगे एक सरकारी ज़मीन पर घर बनाकर रह रहे हैं। जब वह अपने परिवार को गाँव में छोड़कर काम करने बाहर गए तो इसी बीच कुछ दबंग लोगों ने इनके घर के पीछे वाली ज़मीन को बेच दिया और खरीदने वाले भी उनही की तरह के दबंग लोग हैं। अपने घर के आगे एक महादलित का घर होना उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसलिए सुबोध को वहाँ से भगाने की लगातार कोशिशें की जा रहीं हैं। सुबोध राम ने थाने में भी इसकी शिकायत की लेकिन उस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है, उन्हें लगातार डराया और धमकाया जा रहा है। जन जागरण शक्ति संगठन की एक टीम उनके परिवार से उनके गाँव मिलने गयी थी।
टीम के साथ मिल कर सुबोध जी की पत्नी हीरा देवी और पिताजी बहादुर राम ने बताया की कैसे हाल ही में सरकारी ज़मीन पे लगे आम के पेड़ से बच्चों द्वारा फल खाने पर भी उनके साथ गाली-गलौज और मारपीट हुआ।
बगल में श्रीनगर थाना का ओ पी है। वहाँ के थानेदार से संगठन की टीम मिली और हमें आश्वासन भी दिया गया कि गश्ती के दौरान पुलिस विजिट करेगी पर कोई पुलिस का टीम वहाँ नहीं पहुँचा। पुलिस का यह उदासीन रवैया बिहार के इन इलाकों में आर्थिक और सामाजिक तौर पे कमज़ोर समुदायों के प्रति कोई नई बात नहीं। सरपंच से भी फोन पर संपर्क हुआ तो उन्होंने हाथ झाड़ लिया यह कह कर की पीछे रहने वाले ज़मींदार सब झगड़ालू स्वभाव के हैं ही और उन्होंने कई दफा उन सब को समझाने की कोशिश की पर फायदा नहीं हुआ। गाँव के ब्राह्मण सरपंच ने आश्वासन दिया कि वो अगले दिन दोनों परिवार से मेल-मिलाप करवाने जाएंगे पर वो भी अपनी बातों पर खड़े नहीं उतरे। उनकी बातों से लग रहा था कि यह जातिगत उत्पीड़न वहाँ के लिए आम बात है और चीज़ें जैसी हैं वैसे ही चलने देनी चाहिए। सुबोध जी का ही परिवार नहीं वहाँ करीब 10 घर महादलित परिवार बसे हुए हैं जिन्होंने मिल कर बताया कि वे लगातार ज़मीन एवं अन्य कारणों से तथाकथित ऊंची जाति से दुर्व्यवहार एवं प्रशासनिक अवहेलना का शिकार होते रहते हैं।
अभी हाल ही में सुबोध जी ने संगठन की मदद से अपने लिए ज़मीन और ज़मीन के पर्चे की माँग करते हुए अनुमंडल पदाधिकारी को आवेदन दे कर प्राप्ति हासिल की है, थाना में भी लिखित शिकायत किया है पर बिना लगातार निगरानी और संघर्ष के कहीं फाइलों और चिट्ठियों के ढेर में इनकी अर्जी भी ना खो जाए, यह डर लग रहता है।
कुमारखंड का यह पंचायत – परमानंदपुर, संगठन के इलाकों से काफी दूर है। संगठित ना होने की वजह से राम समाज के यह साथी अपने ऊपर हो रही हिंसा के खिलाफ़ हिम्मत और एकता बना कर लड़ नहीं पा रहे। सुबोध जी के बूढ़े पिताजी दफ्तरों का चक्कर काट-काट के थक गए हैं। उनकी पत्नी हीरा देवी काफी हिम्मतवाली और समझदार हैं पर समाज में महिला को वो दर्जा नहीं दिया जाता है इसलिए शायद चाह कर भी बहुत कुछ कर नहीं पा रही। अब सुबोध जी कुछ कमा कर अगले दो हफ्ते में घर लौटेंगे और तब शायद सब लोग मिल कर प्रयास करें तो इन सभी पे आन पड़ी इस आफत का कोई समाधान निकले।