विजय सिंह ठाकुर:
14 से 25 के बीच की उम्र, इंसान की वह उम्र होती है, जिसमें वह कई बड़े-बड़े सपने देखता और, जिसमें वह नई-नई चीजें सीखता है। हमारे अंदर नई-नई आदतें विकसित होती हैं। इस उम्र में हम जो सोचते हैं और जो करते हैं, इसी से यह तय हो जाता है कि हमारी आगे की ज़िंदगी कैसी होने वाली है। हम जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छूएँगे या असफलता की गहरी खाइयों में गिरेंगे। हमारा भविष्य अमीरी की चमक से रौशन होगा या हम गरीबी के अंधियारों में रोते रहेंगे।
युवाओं का आत्मविश्वास बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए:
छोटे-छोटे टास्क को पूरा करने की आदत से बड़े लक्ष्य को पूरा करने की क्षमता बढ़ती है, जिससे उनके अंदर आत्मविश्वावास बढ़ेगा और उनमें बड़े लक्ष्य को पाने का हौसला बढ़ेगा।
युवाओं को अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करने की सीख देंगे:
आपकी ज़िंदगी का लक्ष्य क्या है? इस सवाल को जब युवाओं से पूछते हैं, तो उनके जवाब सुनकर मुझे बहुत दु:ख होता है। अधिकांश लोगों का यही जवाब होता है कि बस कोई अच्छी सी जॉब मिल जाए तो ज़िंदगी आराम से कट जायेगी। उनके सपने पटवारी या शिक्षक बनने तक ही सीमित होते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो हर किसी की ज़िंदगी का कोई ना कोई लक्ष्य ज़रूर होना चाहिए और वह बस अपनी आराम की ज़िंदगी तक ही सीमित नहीं होना चाहिए।
समय की इज्ज़त करों,समय पर काम पूरा करें:
“काल करे सो आज कर,आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगा, बहुरि करेगा कब??”
समय इस दुनिया की सबसे कीमती चीज है, जो हम सब को मुफ्त में मिलती है। लेकिन दिक्कत यह है कि अगर ये एक बार चला जाए तो दुबारा लौटकर वापस नहीं आता। मगर अफ़सोस कि आजकल के युवा अपना अधिकतर समय सोशल मीडिया और प्यार-मोहब्बत जैसी फालतू की चीजों में बर्बाद कर देते हैं। जब समय बीत जाता है तो बैठ कर पछताते हैं। याद रखें कि अगर अपने सपनों को हकीकत में बदलना है तो सबसे पहले समय का सही तरीके से उपयोग करना सीखना होगा। अगर हम समय का सदुपयोग करेंगे तो यह भविष्य संवार सकता है परंतु यदि इसका दुरूपयोग करेंगे तो यही समय हमारा भविष्य बर्बाद भी कर सकता है।
आलस छोड़, मेहनत से मुकाम हासिल करने की प्रेरणा:
आलस एक ऐसा रोग है जो इंसान के तन, मन और धन तीनों का सर्वनाश कर देता है। आलस का शिकार व्यक्ति अनेकों प्रकार के रोगों की चपेट में आ जाता है। आलसी व्यक्ति का मन हमेशा नकारात्मकता से घिरा रहता है। आलस का शिकार व्यक्ति कर्तव्यविमूढ़, आरामतलबी और कामचोर बन जाता है इसलिए वह मेहनत करने से कतराता है। किशोर और युवा वर्ग के लिए तो आलस एक अभिशाप है। क्योंकि इसके कारण वे अपने कामों को टालते हैं या फिर देरी से करते हैं। वे कभी सर्दी के मौसम में ठंड का बहाना बनाकर तो कभी गर्मी के मौसम में गर्मी का बहाना बनाकर अपना काम टालते रहते हैं। परीक्षा अथवा कैरियर में असफल भी हो जाते हैं, अतः हमें आलस को त्यागकर मेहनती बनने की शिक्षा देनी होगी।
खेल के माध्यम से सिखाने का प्रयास करना:
पढ़ी हुई बातें हमेशा याद नहीं रहती, पर यदि उसके साथ कुछ गतिविधि या खेल जोड़ दिया जाए तो वह अक्सर बहुत दिनों तक याद रह जाती हैं। हम यह अपने शिविर में भी देखते हैं कि कोई गतिविधि या खेल कराई जाती हैं, तो उसमे पूर्ण रूप से सभी रुचि दिखाते हैं और सीखते हैं और वो बातें हमेशा याद भी रहती हैं। इस दुनिया में इतना कुछ है सीखने के लिए, समझने के लिए और जानने के लिए कि यदि हम जीवन भर पढ़ते और सीखते रहें तो भी सब-कुछ जान नहीं पाएंगे। यहाँ हर दिन, हर पल नई-नई चीजें सामने आती रहती हैं। यह कभी भी नहीं मानना चाहिए कि आपने सब-कुछ सीख लिया है। यदि आपको शिक्षा और तकनीकी क्रांति के दौर में जीवन में क़ामयाब होना है तो हमेशा अपडेटेड रहिए।
गाँव-शहर में युवाओं को बैठकें कर संगठित करने के प्रयास करना:
युवाओं को सामाजिक गतिविधियों से जोड़ने के लिए छोटी-छोटी बैठकें कर, सामाजिक गतिविधियों और संवैधानिक एवं कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्रदान करनी चाहिए। युवाओं को संविधान का महत्व बताते हुए बीच-बीच में प्रशिक्षण कार्यशालाएँ रखकर युवाओं में इस विषय पर रुचि पैदा की जा सकती है।
अच्छे लोगों की संगति और अच्छी किताबों का अध्ययन करना सिखाना:
कहते हैं कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व क्रमश: उन पांच लोगों के व्यक्तित्व का मिश्रण होता है जिनसे साथ वह अपना अधिकांश समय व्यतीत करता है। अर्थात हमारे विचार, व्यवहार और चरित्र वैसे ही होते हैं जैसे लोगों की संगति में हम रहते हैं। आप चाहे इस बात को माने या ना माने, परंतु यह सच है। लॉ ऑफ अट्रैक्शन का सिद्धांत यहाँ भी काम करता है और मैंने स्वयं इस बात को अनुभव किया है। इसलिए मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि अच्छी संगत का हमारे ऊपर अच्छा प्रभाव पड़ता है और बुरी संगत का बुरा। हम यह भी जानते हैं कि अच्छी किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, जो हमें हमेशा कुछ ना कुछ देकर जाती हैं। हमें मोटिवेट करती हैं और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं और यह हमारा कुछ भी नुकसान नहीं करती। तो अगर हम यह बात समझ गए तो अब हमें अच्छे लोगों की संगत में रहने की आदत बना लेनी चाहिए, क्योंकि सुनार का कचरा भी बनिये के बादाम से महँगा होता है।
रिस्क लेने से पीछे नहीं हटने की इच्छाशक्ति जागृत करना:
कहते हैं कि ज़िंदगी हर लूज़र को विनर बनने का मौका ज़रूर देती है। यानी हमारी ज़िंदगी में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब हम अपनी ज़िंदगी को बदल सकते हैं। हमारे एक कदम से हमारी किस्मत बदलने वाली होती है। युवाओं में कुछ कर गुजरने के इच्छा होती है। पर हम असफलता के किसी अनजाने भय और आशंका से भयभीत होकर जोखिम लेने से पीछे हट जाते हैं और उस अवसर के निकल जाने के बाद यह एहसास होता है कि काश हम उस समय सही निर्णय ले पाते। युवाओं को यह बात हमें सीखानी पड़ेगी कि किसी काम को ना करके पछताने से कहीं बेहतर है उस काम को करने के बाद पछताना। क्योंकि यदि उस काम को करके हमें सफलता ना भी मिली तो तजुर्बा ज़रूर मिलेगा और तजुर्बा भी सफलता से कम कीमती नहीं होता। तो जीवन में कभी भी रिस्क लेने से पीछे मत हटो। युवाओं को चुनौतियों का सामना करना सिखाना चाहिए।
नशे से दूर रहने और नशे का दुश्चप्रभाव से युवा पीढ़ी को बचाना:
नशा आजकल युवाओं की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। हम किशोरों और युवाओं को गलियों और चौराहों पर सिगरेट, गुटखा खाते देखते हैं, ये कैसी नादानी और मूर्खता है? नशे के कारण कई लोगों के घरों को बर्बाद होते हुए देखा गया है, शायद वे इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि नशा उनके तन, मन और धन को अंदर ही अंदर तबाह कर रहा है। नशा एक ऐसा दलदल है जिसमें अगर कोई एक बार उतर गया वह उसमें धंसता ही चला जाता है। इसलिए युवाओं को जागरूक करना पड़ेगा कि ना शौक के लिए, ना दोस्तों की बात रखने के लिए और ना ही किसी तनाव या बेवफा प्यार को भुलाने के लिए, किसी भी हाल में नशा ना करें।