धरती से सोना उगाने वाले – बृजमोहन

देवेंद्र उपाध्याय:

हम रोज़ बहुत से गाने सुनते हैं, कई कविताएँ हमारी आँखों के सामने से गुजरती हैं, पर कुछ ही कविताएँ या उनकी पंक्तियाँ हमारे दिलो दिमाग पर छा जाती हैं। जो भी साथी सामाजिक जीवन में आंदोलनों, धरना प्रदर्शन से जुड़े रहे हैं, उन्हें गीतों की ताकत का अहसास है। कुछ गीत तो पूरी दुनिया में गाए जाते हैं जैसे- वी शेल ओवरकम (हिन्दी में हम होंगे कामयाब..) या भूपेन हजारिका का ‘गंगा बहती हो क्यूं’, जो मूलत: 1927 के पुराने अमेरिकन गाने – ‘ओल्ड मेन रिवर’ का रूपांतरण है। इसी प्रकार हमारे देश के सन्दर्भ में गदर के गीत हैं। कई साल पहले ऐसे ही कुछ गीत सुने/पढ़े जो जीवन का हिस्सा बन गये। उनमें से पहला गीत था –

“धरती से सोना उगाने वाले भाई रे, माटी से हीरा बनाने वाले भाई रे”

तब पहली बार बृजमोहन का नाम सुना जिन्होंने ये गीत लिखा था। फिर उनके लिखे बहुत से गीत काम का हिस्सा बनते गये। उनका ही एक और प्यारा गीत है – 

“गीत जैसे हरे-भरे खेत में किसान रे 

गीत जैसे बच्चा माँगे दुनिया की खुशियाँ 

गीत जैसे काटे नहीं कटती हो रतियाँ”

उन्हीं का एक और गीत है – “हाथ कुदाली रे, ओ भैया हाथ कुदाली रे…” 

ऐसे गीत वही लिख सकता था जिसने मेहनतकश जीवन जिया हो, जो खुद जनता की लड़ाइयों में हिस्सेदार रहा हो, और बृज‌मोहन ऐसे ही थे। उनका जन्म 1 अगस्त 1955 को एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में दिल्ली में हुआ था, उन्होंने उन्होंने अर्थशास्त्र में M.A. किया। बीस वर्ष की उम्र में उन्होंने लिखना शुरू किया। वो विभिन्न लेखक संघों का हिस्सा रहे और नाटकों में सक्रिय भागीदार रहे। जीविका के लिए उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया। बाद में वो दिल्ली से मुम्बई चले गये। उनका पहला कविता संग्रह – ‘दुःख जोड़ेंगे हमें’ 1986 में प्रकाशित हुआ, पर उनकी कई रचनाएं पहले से ही प्रसिद्ध हो गयी थी। जैसे- “देखो रे सियार देखो…”, “आधा पेट पानी, सूखी रोटियाँ चबानी भाई…” और “तेरी लाठी का नाच सब देखें, जमींदार तेरी खादी के कुर्ते का तार तार रे…”

बृजमोहन ने ‘दुःख जोड़ेंगे हमें’ के अलावा ‘किसी बच्चे से पूछो’ (1991) और एक कहानी संग्रह ‘घास का मैदान’ भी प्रकाशित किया और हिंदी के साहित्य समाज में जो गुटबंदी का माहौल है बृजमोहन हमेशा उसके विरुद्ध लड़े। उन्होंने कई नाट्य मंडलियों का निर्माण किया, वो चकाचौंध से दूर जनपक्षीय रचनाओं के निर्माण में लगे रहे। वो ही लिख सकते थे – “धीरे-धीरे ही सही दु:ख जोड़ेंगे हमें, इक साथ ही लाके ये छोड़ेंगे हमें” ऐसे अद्भुत गीतकार को हमारा क्रांतिकारी सलाम।

Author

  • देवेंद्र/Devendra

    देवेंद्र, राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के झिरी गाँव में रहते हैं। वह सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं, और अपने गाँव में हम किसान संगठन का संचालन करते हैं साथ ही एक वैकल्पिक स्कूल मंथन शिक्षण केंद्र भी चलाते हैं।

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