किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम: एक परिचय

लेखक:  राजू राम, स्वप्निल  शुक्ला: 

जैसा कि हमको पता है जब कोई व्यक्ति अपराध करता है तो पुलिस के पास अधिकार है कि उसे गिरफ्तार करे। लेकिन वही अपराध अगर कोई  बच्चा  करता है तो क्या उसे गिरफ्तार करना सही होगा? आपराधिक न्याय प्रणाली बताती हैं कि कानून के अंतर्गत अपराध होने के लिए मुख्यतः दो तत्वों का उपस्थित होना आवश्यक होता है। पहला, किसी कृत्य का कारित होना, दूसरा, उस कृत्य के लिए उपयुक्त मानसिक समझ (intention) का होना। जब तक यह दोनों तत्व उपलब्ध नहीं होते हैं, तब तक  कानून के अंतर्गत उसे अपराध नही माना जाता है।

उपयुक्त मानसिक समझ (intention) का मतलब यह है, कि व्यक्ति को पता है, कि वो क्या करने वाला है या जो काम वह करने जा रहा है, उसका परिणाम क्या होगा उसको पता होता है।  लेकिन बात जब बच्चों  या किशोरों की आती है तो कानून यह मानता है कि तो बच्चों में उपयुक्त मानसिक समझ (intention) नहीं होती है। इसलिए यदि कोई बच्चा या किशोर अपराध करता है तो उसमें कृत्य तो होता है, लेकिन मानसिक समझ (intention) का अभाव होता है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों में मानसिक समझ का अभाव होने के कारण उनकी सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाये गए हैं। किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम इन कानूनों में से एक कानून है।

किशोर न्याय कानून का इतिहास 

भारत में पहली बार किशोर न्याय अधिनियम, 1986 में पारित किया गया। जिसमें किशोर न्याय संबंधी  न्यूनतम मानक नियमों को अपनाते हुए भारत में किशोर अपराधियों के लिए एक व्यापक कानून पारित किया गया।

बाद में यह पाया गया कि इस कानून को और अधिक व्यापक और प्रभावी बनाये जाने की आवश्यकता है। निरंतर बढ़ती जा रही किशोर अपराधियों की संख्या तथा उनकी समुचित देख-रेख और सुरक्षा की अव्यवस्था के कारण उक्त अधिनियम के स्थान पर एक नया किशोर न्याय अधिनियम लागू करने का निर्णय लिया गया। अत: किशोर न्याय अधिनियम, 1986 को निरस्त करके किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 लागू किया गया है। इस अधिनियम का मूल उद्देश्य किशोर अपराधियों को न्याय सुनिश्चित कराने के साथ-साथ निराश्रित बालकों एवं किशोरों की उचित देख-रेख और संरक्षण की व्यवस्था करना है। 

दिल्ली की दुर्भाग्यपूर्ण और बर्बर सामूहिक बलात्कार की घटना (16 दिसंबर, 2012 का निर्भया कांड) जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, इस घटना ने वर्तमान किशोर न्याय कानून की मौजूदा कमियों को सामने ला दिया है। 

इस घटना से किशोर कानून को, बढ़ते हुए अपराधों के खिलाफ असहायता के कारण राष्ट्रव्यापी आलोचना का सामना करना पड़ा। विशेष रूप से जब किशोर 16-18 वर्ष की आयु के बीच, बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में शामिल हो जाते हैं। निर्भया मामले की घटना के बाद वर्तमान कानून में बदलाव की तत्काल आवश्यकता महसूस की गई, जहां 16 या 17 साल के किशोर जब उपरोक्त जघन्य अपराधों में शामिल हो जाते हैं तो उनको वयस्कों के रूप में पेश किये जाने की मंशा जाहिर की गई।

भारत की संसद द्वारा 2015 में, जनता के मनोभाव का जवाब देते हुए किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को पारित किया गया था।

किशोर न्याय अधिनियम, 2015  का  उद्देश्य

किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015  का मुख्य उद्देश्य कानून से संघर्षरत बच्चों तथा देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों की बाल मैत्री प्रकिया के तहत उनके सर्वोतम हित को ध्यान में रखते हुए उनकी समुचित देखरेख, पुनर्वास, संरक्षण, उपचार एवं विकास सुनिश्चित करना है। 

इस कानून में 18 वर्ष से कम उम्र के सभी व्यक्तियों को बच्चा/बालक/किशोर माना गया है। 

इस कानून में दो प्रकार के बच्चों के बारे में बात की गई है 

  1. देखरेख और संरक्षण  की आवश्यकता वाले किशोर।
  2. कानून का उल्लंघन करने वाला बालक या विधि के साथ संघर्षरत किशोर।

इस लेख में हम कानून का उल्लंघन करने वाले या विधि के साथ संघर्षरत किशोरों के बारे में चर्चा कर रहे हैं। 

इस कानून में विशेष प्रावधान क्या है ?

1- वह किशोर जिसके खिलाफ अपराध करने का आरोप है उसके साथ एक वयस्क की तुलना में अलग तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए, जैसे कि किशोर को हिरासत/गिरफ्तार नहीं करना, बाल पुलिस का पुलिस वर्दी में नहीं होना और कानून के उल्लंघन करने वाले बच्चों को जेल या पुलिस लॉकअप में भेजने के बजाय बाल  सुधार गृह में भेजना इत्यादि। 

2- अपराधों के प्रकार- बालक द्वारा किए गए अपराध को तीन प्रकारों में बांटा जा सकता हैं – 

क. जघन्य अपराध- जघन्य अपराधों के अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जिनके लिए भारतीय दंड संहिता  या  किसी अन्य कानून में न्यूनतम दंड सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास का है।

ख. गंभीर अपराध- गंभीर अपराधों के अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जिनके लिए भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य कानून में दंड तीन से सात वर्ष के बीच के कारावास का है।

ग. छोटे अपराध- छोटे अपराधों के अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जिनके लिए भारतीय दंड संहिता या  किसी अन्य कानून में  दंड तीन वर्ष तक के कारावास का है।

3- विशेष किशोर न्यालायल की स्थापना व किशोर न्याय बोर्ड का गठन करना, पुलिस थानों में विशेष पुलिस सेल का गठन करना, जिससे कि बालकों के सर्वोतम हित का ध्यान रखा जा सके। 

4- निर्भया हत्या काण्ड के बाद जहां 16 या 17 साल के किशोर जब जघन्य अपराधों में शामिल होते  हैं तो उनके साथ वयस्क के रूप में व्यवहार या उनके साथ वयस्क की तरह क़ानूनी कार्यवाही करना आदि।

इस कानून की विशेष बात यह है कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों को अपराधी ना बोलकर विधि विरोधी बालक कहा गया है। 

कोई भी व्यक्ति अपराधी जन्म से नही होता है, विभिन्न परिस्थितियां व्यक्ति को एक अपराधी बनाती हैं। किशोर न्याय कानून उन बच्चों को सुरक्षा देता है जिससे कि इन परिस्थितियों का खामियाजा 18 साल से कम बच्चों को ना  झेलना पड़े और उन्हें अपराधी घोषित ना किया जाए। यह कानून, परिवर्तन एवं बच्चों के सर्वोतम हितों को ध्यान में रखकर बनाया है। इस कानून में भी संविधान की ही तरह अच्छी-अच्छी बातों का जिक्र है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभी भी कई कमियां हैं। 

फीचर्ड फोटो आभार: ipleaders.in

Author

  • राजू राम / Raju Ram

    राजू ,राजस्थान के जोधपुर ज़िले से हैं और व्हाई.पी.पी.एल.ई. (YPPLE) के तौर पर सामाजिक न्याय केंद्र के साथ जुड़े हैं। वर्तमान में राजू मध्य प्रदेश में जेनिथ सोसायटी फॉर सोशियो लीगल एम्पावरमेंट संगठन के साथ कार्य कर रहे हैं। वह बास्केटबॉल खेलना एवं किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

Leave a Reply