ନରେନ୍ଦ୍ର ପିଙ୍ଗୁଆ (नरेंद्र पिंगुआ):
ମୋର ନାମ ନରେନ୍ଦ୍ର ପିଙ୍ଗୁଆ ଗ୍ରାମ ରଙ୍ଗିଆପାଳ ପୋଷ୍ଟ ଇଞ୍ଜିଡ଼ି ଥାନା ଖମାର ଜିଲ୍ଲା ଅନଗୁଳ ଓଡିଶା ମୁଁ ଆପଣ ମାନଙ୍କୁ ଏକ ସତ୍ୟ ଘଟଣା ର କାହାଣୀ କହିବାକୁ ଯାଉଛି! ଆମ ଗାଁ ଏକ ଆଦିବାସୀ ବହୁଳ ଗାଁ ଆଦିବାସୀ ଲୋକ ପୂଜା ପାଠ ଉପରେ ବେଶୀ ବିଶ୍ୱାସ କରି ଥାନ୍ତି! ସେହି ଭଳି ଗତ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ପୂର୍ବେ ମୋ ବାପା ଦୁଲାଳ ପିଙ୍ଗୁଆ ବୟସ 80ବର୍ଷ ଙ୍କୁ ଗୋଟିଏ ଚିତି ସାପ ଶୋଇଥିବା ଅବସ୍ଥା ରେ କାମୁଡି ଦେଇଥିଲା! ମୁଁ ବାପାଙ୍କୁ ଡାକ୍ତର ଖାନା ନେବା କୁ ବ୍ୟବସ୍ତା କରିବା ସମୟ ରେ ଆମ ଗାଁ ର କିଛି ଲୋକ ଓ ଆମ ଘର ପରିବାର ଲୋକ ମିଶି ମୋତେ ଡାକ୍ତର ଖାନା କୁ ଯିବା ପାଇଁ ମନା କରିବା ସହିତ ପୂଜା କରିବା ପାଇଁ ବାଧ୍ୟ କରିଥିଲେ କିନ୍ତୁ ମୁଁ ତାଙ୍କ କଥା ନ ମାନି ଡାକ୍ତର ଖାନା ନେବା ପାଇଁ ଗାଡି ଯୋଗାଡ଼ କରି ନେବା ସମୟରେ ଗାଁ ଲୋକ ଓ ଘର ଲୋକ ମିଶି ମୋତେ ବହୁତ ଗାଳି କରିବା ସହିତ କହି ଥିଲେ ଡାକ୍ତର ଖାନା ନେଲେ ତୁମ ବାପା ମରିଯିବେ ! ଆଉ ଯଦି ମରିଯାଏ ତାହେଲେ ତମକୁ ଦେଖିବୁ !ମୁଁ କହିଲି ଠିକ ଅଛି ! ଦେଖିବା ତୁମ କଥା ସତ ନା ମୋ କଥା ତାପରେ ମୁଁବାପାଙ୍କୁ ଡାକ୍ତର ଖାନା ନେଇକି ଗଲି. କିନ୍ତୁ ନେବା ବେଳକୁ ବାପାଙ୍କ ବେକ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ବିଷ ଘାରି ଯାଇଥିଲା!ଓ ଭଲ ହେବା ପାଇଁ ସମୁଦାୟ 13ଟା ବିଷ ଇଞ୍ଜେକ୍ସନ ସହିତ 5ଦିନ ସମୟ ଲାଗିଥିଲା ! କିନ୍ତୁ ଡାକ୍ତର ଖାନା ରେ ଥିବା ବେଳେ ଗାଁ ଲୋକ ବିଭିନ୍ନ ଆଲୋଚନା ପଯ୍ୟା ଲୋଚନା କରୁ ଥାନ୍ତି କି ଆଜି ନରେନ୍ଦ୍ର ବାପା ମରିଯିବ ଓ ଯେତେ ବେଳେ ଭଲ କରି ବାପାଙ୍କୁ ଘରକୁ ଫେରାଇ ଆଣିଲି. ସେତେ ବେଳେ ଗାଁ ଲୋକଦେଖିବାକୁ ଲାଗିଲେ ଓ ମୁଁ ଗାଁ ଲୋକ ଙ୍କୁ କହିଲି ଦେଖି ଲ ତ ଡାକ୍ତର ଖାନରେ ପରା ମରି ଯିବ କେମିତି ଭଲ ହେଲା ତାପରେ ଗାଁ ଲୋକ କହିଲେ ହଁ ଆମେ ସେହିପରି ଭାବୁ ଥିଲୁ!ମୁଁ କହିଲି ପୂଜା ପାଠ ହେଉଛି ଅନ୍ଧ ବିଶ୍ୱାସ ତମ କଥାରେ ପୂଜା କରି ଥିଲେ ମୋ ବାପାଙ୍କୁ
ମାରିଦେଇଥାନ୍ତି ତେଣୁ ସମସ୍ତେ ସଚେତନ ହୁଅ ଓ ଡାକ୍ତର ଖାନା ରେ ଚିକିତ୍ସା କର ଅନ୍ଧ ବିଶ୍ୱାସରୁ ଦୂରରେ ରୁହନ୍ତୁ ସମସ୍ତେ ସେହିଦିନ ଠାରୁ ଆମ ଗାଁ ରେ ପୂଜା ପାଠ ବହୁତ ମାତ୍ରା ରେ କମି ଯାଇ ଅଧିକାଂଶ ମେଡିକାଲ ରେ ଚିକିତ୍ସା ହେଉ ଛନ୍ତି!
हिंदी अनुवाद –
मेरा नाम नरेंद्र पिंगुआ है। मैं ग्राम रंगियापाल, पोस्ट इंजीदी, थाना – खमार, ज़िला अंगुल, ओडिशा का रहने वाला हूँ। इस लेख में, मैं आपको एक सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहा हूं।
हमारा गाँव आदिवासी बहुल गाँव है, और आदिवासी लोग पूजा में विश्वास करते हैं। पांच साल पहले, मेरे 80 वर्षीय पिता, दुलाल पिंगुआ को सोते समय एक सांप ने काट लिया था। जब मैंने अपने पिता को डॉक्टर के कार्यालय में ले जाने की व्यवस्था की, तो हमारे गाँव और मेरे परिवार के कुछ लोगों ने मुझे डॉक्टर के कार्यालय में जाकर पूजा करने के लिए मजबूर किया। लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी। जब मैं पिताजी को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कार में बैठने लगा तब भी लोगों ने मुझे डाँटा, और कहा कि यदि तू वैद्य को भोजन नहीं कराएगा तो तेरा पिता मर जाएगा और अगर वह मर गया, तो इसके लिए तू ही ज़िम्मेदार होगा। मैंने कहा ठीक है, देखते हैं तुम सही हो या नहीं।
फिर मैं अपने पिता को इलाज के लिए डॉक्टर के कार्यालय ले गया। लेकिन जब तक मैं वहाँ पहुंचा मेरे पिता के गले तक ज़हर चढ़ चुका था। जब हम डॉक्टर के अस्पताल में थे तो गाँव वाले इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि क्या नरेंद्र के पिता की आज मृत्यु हो जाएगी और मुझे चिंता लगी हुई थी कि मैं उन्हें कब घर वापस ले जा सकता हूँ। उसी समय गाँव वाले मेरी तरफ देखने लगे और मैंने गाँव वालों को कहा कि बिना इलाज के मरने से डॉक्टर के ऑफिस में मरना बेहतर है। दो दिनों तक मेरे पिताजी की हालत बहुत खराब रही। पता नहीं चल रहा था कि बचेंगे या नहीं, डॉक्टर भी स्पष्ट कुछ नहीं बता रहे थे। लेकिन तीसरे दिन वे ठीक हो गए और मैं उन्हे सही सलामत घर ले आया। गाँव वाले उन्हे स्वस्थ देखकर हैरान भी थे और खुश भी। सबने कहा कि हमने ऐसा नहीं सोचा था कि ये ठीक हो जाएंगे!
गाँव वालों को विश्वास हो गया कि झाड़ फूंक के बजाय डॉक्टर से अस्पताल में इलाज करना चाहिए। अंधविश्वास से दूर रहना चाहिए। उस दिन से हमारे गाँव में सभी लोग पूजा में बहुत कम हो गए हैं और उनमें से अधिकांश का इलाज चिकित्सालय में किया जा रहा है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह कि ज़रूरी नहीं है कि अस्पताल में सभी सर्पदंश के मरीज़ ठीक हो जाएं और यह भी ज़रूरी नहीं है कि सारे लोग गाँव के वैद्य के इलाज से मर जाएं। सांप काटने के बाद बचना या मरना अनेक कारणों पर निर्भर है। हो सकता है कि सांप ज़हरीला न हो या उसका बहुत कम ज़हर आपके शरीर में प्रवेश किया हो तो आप गाँव में ही बच जाओ और आपको लगेगा कि पूजा करके बच गया। यह भी हो सकता है कि बहुत अधिक ज़हर चढ़ गया हो और अस्पताल ले जाने में देर हो गई तो अस्पताल में भी न बच पाएँ।
इसलिए सफ़ल या असफल उदाहरणों के साथ गाँव वालों को हमें और बातें भी बतानी होंगी, जैसे कि आपके इलाके में पाए जाने वाले सांपों में कौन से ज़हरीले हैं और कौन से नहीं। ज़हरीले सांप को सर्पदंश के ज़ख्म से कैसे पहचाने, ज़हर के शरीर पर असर आदि। हिम्मत करके ही हम वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे सकते हैं।