जितेंद्र माझी:
दूर धूमिल रंगीन क्षितिज से,
सूर्य धीरे से निकल आता है,
उम्मीदों से भरा तब निर्मल प्रकाश,
दूर-दूर तक छिटक जाता है।
वह गर्म सी कोमल ऊषा
इस धरा को छेड़ जाती है।
तब इस अलसाए सोते जग में
एक हलचल सी मच जाती है।
घनी उदास काली रातों को,
पल में समेट ले जाता है,
खोल अपनी दो भुजाओं को,
जग को प्रकाशमय बनाता है।
पल भर का यह धूमिल दृश्य
आकाश चीर स्पष्ट हो जाता है
नई सुबह का यह सूर्य धरा पर
ऊर्जा की फसल बो जाता है।
फीचर्ड फोटो आभार: अनस्प्लैश