जीतेंद्र माझी:
कुछ दिन पहले माननीय केरल उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। याचिकाकर्ता ने कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर हटाने के लिए माननीय केरल उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी। यह राजनेताओं, पत्रकारों, मंत्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और यहां तक कि आम नागरिकों के बीच बहस का एक मुद्दा बन चुका है। जहां एक तरफ विरोधी दल इस पर अपनी नाराजगी जता रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ मोदी जी के समर्थक इसको सही बता रहे हैं। जिससे ये प्रतीत होता है की इस विषय को लेकर देश की जनता तो जैसे दो हिस्सों में बंट गई है। लेकिन सोचने की बात तो यह है कि कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र किसी नेता की तस्वीर लगाना कहां तक उचित हैं?
सबसे पहले हमे ये समझना होगा कि आखिर कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री जी की तस्वीर किस नियम के तहत लगाई गई है? और क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा है? क्या टीकाकरण प्रमाण पत्र पर किसी नेता की तस्वीर लगाना उचित है?
पहली बात तो यह कि ऐसा कोई नियम ही नहीं है जो यह बोलता हो कि कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगनी चाहिए, और न ही केंद्र सरकार कोर्ट में इस बात को साबित नहीं कर पाई है। दूसरी बात, टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगाने के पीछे राजनीतिक मंशा के अलावा और कुछ उद्देश्य प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि अगर इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य नहीं था तो जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य के लिए एक अलग से टीकाकरण प्रमाण पत्र की मांग की और प्रमाण पत्र पर प्रधान मंत्री की तस्वीर की जगह खुद की तस्वीर लगाई तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री क्यों भड़क उठते हैं? अगर इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा नहीं थी तो असम, तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल, पश्चिम बंगाल में चुनाव के चलते चुनाव आयोग ने जब केंद्र सरकार को कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र पर से प्रधानमंत्री की तस्वीर हटाने को कहा तो केंद्र सरकार ने क्यों हटाई? क्या इसलिए हटाई ताकि चुनाव आयोग के कहने पर या फिर चुनाव आने पर ही केंद्र सरकार को ये ज्ञात हुआ कि कोविड टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाना अनुचित है?
जब राज्य सभा में विरोधी दल के नेताओं ने टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर होने पर सवाल उठाए तो केंद्र सरकार के पक्ष में डॉ भारती प्रवीन पवार ने कहा कि टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर – 1) लोगों के बीच जागरूकता पैदा करती है साथ ही यह लोगों को टीका लेने के बाद भी COVID 19 के निर्देशों को पालन करने पर जोर देता है; 2) यह सरकार की नैतिक जिम्मेदारी भी है कि वो अपने नागरिकों तक ऐसा संदेश पहुचाएं; 3) टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर WHO के नियम के तहत लगाया गया है।
लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर में वो बिना मास्क के नजर आ रहे हैं, आखिर ऐसी तस्वीर देश के लोगों के बीच जागरूकता कैसे पैदा करेगी? और अगर सरकार की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि वो अपने नागरिकों तक जरुरी संदेश पहुंचाएं तो जिन लोगों की COVID 19 के चलते और सरकार की लापरवाही के चलते मौत हुई थी, क्या उन लोगों के परिजनों तक सन्देश पहुँचाना एवं उनकी सहायता करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी नहीं है? और WHO के नियम में यह कहीं भी नहीं बताया गया है कि टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर लगनी चाहिए, जिससे हमे सरकार का झूठ साफ नजर आ रहा है।
अतः टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधान मंत्री जी का तस्वीर होना किसी भी तरह से सही साबित नहीं होता। टीकाकरण प्रमाण पत्र पर हमारे वैज्ञानिकों की तस्वीरें लगानी चाहिए जो इस मुश्किल घड़ी में वरदान के रूप में उभरे हैं, टीके का आविष्कार किया एवं लोगों की जान बचाई या उन डॉक्टरों की तस्वीरें होनी चाहिए जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर दुसरे लोगों की जान बचाई। यदि किसी की तस्वीर लगनी ही है तो क्यों न टीका लेने वाले लोगों की तस्वीर लगाई जाये, क्योंकि वो करदाता है उनके पैसे से ही टीके बनाए और लगाये जा रहे हैं और इस पर उनका पूरा हक है।