दुर्गा दीवान:
छेरछेरा त्यौहार छत्तीसगढ़ का लोक पर्व है । अंग्रेज़ी के जनवरी माह में व हिन्दी के पुष पुन्नी त्यौहार छेरछेरा को मनाया जाता है। त्यौहार के पहले घर की साफ़-सफ़ाई की जाती है। छत्तीसगढ़ में धान कटाई, मिसाइ के बाद यह त्यौहार को मनाया जाता है। यह त्यौहार छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध त्यौहार है जो अन्न सुरक्षा, मेल-मिलाप का त्यौहार है। किसान धान को मिसकर सुरक्षित अपने घर में रख देता है। यह त्यौहार अन्न सुरक्षा को दर्शाता है। इस त्यौहार के दिन, बच्चों से लेकर बड़ों तक घर-घर जाकर छेरछेरा मांगा जाता है। इसमें धान या अन्न दान किया जाता है। अमीर-गरीब सभी के घर जाकर छेरछेरा (अन्न) मांगा जाता है। यह दिन समानता का दिन होता है। इस दिन कोई अमीर-गरीब व कोई छूआ-छूत नहीं होता है। इस वाक्य को सभी घर में बोलते हैं- ‘ छेरछेरा कोठी के धान ला हेरहेरा’
इस दिन, बारा रोटी, अरसा रोटी, चौसल्ला रोटी बनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में पुष के महीने में शादी नहीं होती है। पुष के पहले या बाद में ही शादी होती है। पुष पुन्नी के बाद छत्तीसगढ़ में शादी ब्याह किया जाता है।
इसी दिन छत्तीसगढ़ के बलौदा बाज़ार ज़िला में बार क्षेत्र के तुरतुरीया गाँव, एक प्राकृतिक व धार्मिक स्थल है। यहाँ पर तीन दिवसीय तुरतुरीया मेला होता है। यह क्षेत्र चारों ओर से प्राकृतिक वन संपदा से घिरा हुआ है। तुरतुरीया में वाल्मीकि का आश्रम है। यहाँ पर माता सीता व श्री राम के बेटे लव और कुश का जन्म स्थल है। इसी जगह पर लव और कुश की शिक्षा-दीक्षा वाल्मीकि द्वारा किया गया है। माना जाता है इसी जगह पर वाल्मीकि ने रामायण की रचना की है।
इस स्थल का नाम तुरतुरीया पड़ने का कारण यह है की बालभद्री नाले का जल प्रवाह के माध्यम से होकर निकलता है, तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण इस जगह को तुरतुरीया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लंबी संकरी सुरंग से होता हुआ, आगे जाकर एक कुंड मे जाकर मिलता है। यह प्राचीन ईंटों से बना है।
फीचर्ड फोटो आभार: दुर्गा
दुर्गा दीवान जी छत्तीसगढ़ के छेरछेरा लोक पर्व की जानकारी के लिए आपका शुक्रिया💐
मुझे एक संदेह है क्या तुरतुरीया जगह वाल्मीकि के आश्रम के लिए प्रसिद्ध है या इसके पीछे लोक इतिहास कुछ और है?