राजू और स्वप्निल:
भारत में लड़के एवं लड़कियों की शादी के लिए निर्धारित न्यूनतम उम्र क्रमशः 21 एवं 18 वर्ष है और जो भी व्यक्ति इससे कम उम्र में शादी करता है, तो यह बाल विवाह की श्रेणी में आता है, जो कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत एक आपराधिक कृत्य है। भारत में बाल विवाह क़ानूनी अपराध होने के बावजूद भी हो रहे है। यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रंस फण्ड (यूनीसेफ) के आंकड़ों के अनुसार हर साल भारत में कम से कम 18 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है।
सबसे पहला कानून जिसने शादी के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की वह ‘बाल विवाह अवरोध अधिनियम, 1929’ था। इसको शारदा अधिनियम भी कहा जाता है। शारदा अधिनियम में लड़के एवं लड़कियों के लिए विवाह की उम्र क्रमशः 14 एवं 18 वर्ष निर्धारित की गई थी। बाल विवाह के प्रति समाज की सोच में बदलाव हुआ और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 ने फिर से विवाह के लिए न्यूनतम आयु को बदलकर लडको के लिए 21 वर्ष एवं लड़की के लिए 18 कर दी थी, जो कि अभी भी लागू है।
भारत सरकार ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा एवं कुपोषण आदि से सम्बंधित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया। कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि महिलाओं को उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, कौशल जैसे अवसरों से वंचित रखा गया। और बढ़ती हुई शिशु एवं मातृ मृत्यु दर का कारण भी बाल विवाह है। महिलाओं की शादी जल्दी कर देने की वजह से उनको उच्च शिक्षा का अवसर भी नही मिलता, इसी कारण लडकियों का समग्र विकास नही हो पाता। महिलाओं के शारीरिक, मानसिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कार्यदल ने महिलाओं की शादी के लिए न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष करने की सिफारिश की। जेटली ने एक साक्षात्कार में यह भी स्पष्ट किया कि सिफारिश जनसंख्या नियंत्रण के तर्क पर आधारित नहीं है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता पर आधारित है।
इस सिफारिश को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने 21 दिसंबर को लोकसभा में “बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021” पेश किया। जिसका उद्देश्य-
- समग्र रूप से महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना,
- महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना,
- लैंगिक समानता को बढ़ावा देना,
- महिला श्रम बल की भागीदारी बढ़ाना,
- उन्हें आत्मनिर्भर बनाने एवं स्वयं निर्णय लेने के लिए समर्थ बनाना,
- मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने,
- बालिकाओं के गर्भधारण करने में कमी करने के साथ ही विवाह की आयु से संबंधित पुराने कानूनों में संशोधन करना है।
यह विधेयक मुख्यतः दो चीजों के बारे में बात करता हैं 1. लडकियों की शादी के लिए न्यूनतम आयु के बारे में और, 2. अगर किसी की शादी 21 वर्ष कि आयु होने से पहले कर दी जाती है तो शादी को अमान्य घोषित कब किया जा सकता है।
2021 का यह विधेयक सभी धर्मों की महिलाओं के लिए विवाह की आयु, पुरुषों के समान, 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में संशोधन की बात करता है। और इस अधिनियम की धारा 2 (क) में संशोधन करके बालक की परिभाषा को बदलने का प्रस्ताव करता है और निम्नलिखित कानूनों में संशोधन करता है-
- ईसाई विवाह अधिनियम, 1872,
- पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम 1936,
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) लागू होना अधिनियम 1937,
- विशेष विवाह अधिनियम 1954,
- हिंदू विवाह अधिनियम 1955,
- विदेशी विवाह अधिनियम 1969 आदि।
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 3 में यह प्रावधान है कि जब किसी लड़के या लड़की का विवाह कम उम्र में हो जाता हैं तो ऐसे विवाह को लड़का या लड़की अमान्य घोषित करने के लिए जिला अदालत में याचिका दायर कर सकता है। वयस्क (major) होने के बाद लड़के या लड़की के पास यह याचिका दायर करने के लिए दो वर्ष की समय है। इसका मतलब यह हुआ कि लड़का या लड़की को 20 वर्ष की आयु पूरा होने से पहले याचिका दायर करना होता है। जबकि 2021 के विधेयक में यह समय सीमा बढ़ाकर 5 वर्ष करने का प्रस्ताव किया है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर यह विधेयक कानून बन जाता है तो लड़का या लड़की अब 23 वर्ष की आयु पूरा होने तक अपना बाल विवाह अमान्य घोषित करने के लिए जिला अदालत में याचिका दायर कर सकता है।
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह संशोधन विधेयक भी बाल विवाह को अमान्य नहीं मानता, यह कहता है कि अगर बाल विवाह हो जाता है तो उसके बाद इसको अमान्य घोषित करने के लिए लड़के या लड़की को जिला न्यायालय में याचिका दायर करनी होगी।
यह समझना ज़रुरी है कि यह विधेयक सिर्फ़ विवाह से सम्बंधित कानूनों में ही संशोधन करता है। ‘वयस्कता अधिनियम, 1875’ (Majority Act, 1875) के अनुसार वयस्क (major) व्यक्ति वो है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर दी है। और ‘किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015’ और ‘लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012’ में ‘बालक’ वो ही है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है। यह विधेयक इन अधिनियमों में कोई संशोधन नहीं करता है।
फीचर्ड फ़ोटो आभार: द न्यूइंडियन एक्सप्रेस