पढ़ाई कर, परिवार-समाज के लिये कुछ करने का पूनम का संघर्ष

पूनम कुमारी:

मैं एक ऐसे परिवार से हूँ जहाँ हर एक चीज बहुत ही मुश्किल से मुकम्मल होती है। एक बार में कुछ मिल जाये अब तक तो ऐसा वक़्त ही नहीं आया। हर रोज़ एक नई समस्या से गुज़रना पड़ता है… जब मैं छोटी थी हर बच्चे की तरह मैं भी सपने देखा करती थी। मैं भी पढ़ाई करूँ, अपने परिवार, समाज के लिये कुछ करूँ। 

फिर, अपनी कड़ी मेहनत और लगन से मुझे नवोदय विद्यालय में दाखिला मिल गया। हां, मेरे सामने बहुत कठिनाइयाँ थीं। बहुत बार मुझे लोगों के ताने भी झेलने पड़ते थे। मैं चाहती तो सब कुछ छोड़ सकती थी परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया क्यूंकि मैं आगे पढ़ना और पढ़ना चाहती थी। इतना ही नहीं हमें स्कूल में दाखिला लेने के बाद भी काफ़ी दिक्कतें सामने आईं अंग्रेज़ी भाषा को ले कर। मैंने कक्षा छठी तक हिंदी में सब कुछ पढ़ा था और नवोदया में अंग्रेज़ी में पढ़ाई होती थी। परन्तु मैंने वहाँ भी हार नहीं मानी। अंग्रेज़ी की वजह से नम्बर कम आया करते थे क्योंकि अंग्रेज़ी में पढ़ने में मन ही नहीं लगता था। 

किसी तरह 10वीं कक्षा में आ गई और मैं डरते-डरते पढ़ाई किया करती थी, यह सोच के कि 10वीं बोर्ड में क्या होगा? वो, कहते हैं न कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। यही सोच कर मैं मेहनत करती रहती थी। मेरी भी हार नहीं हुई। मैंने भी अच्छे नम्बरों से 12वीं पास की। इसके बाद मैंने हिंदी मीडियम से पढ़ाई पूरी की, कटिहार नवोदय विद्यालय से। वहाँ भी मुझे सफ़लता मिली। मेरे परिवार से ले कर, मुझे जानने वाले, सभी बहुत खुश हुए मेरे लिए। 

12वीं के बाद मैं फिर से असहाय महसूस करने लगी थी। ऐसा लग रहा था मानो सब ख़तम हो गया। अब मैं आगे कि पढ़ाई अच्छे कॉलेज से नहीं कर पाऊँगी क्यूंकि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। मुझे सहायता मिली और मैं फिर से आगे बढ़ी। 

उस वक़्त (जब मैं छोटी थी) तब तक मेरे समाज के घरों से कोई बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु आज लोग मेरा उदाहरण दे कर अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजा करते हैं। सच कहूँ तो मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मैं बच्चों को स्कूल जाते हुए देखती हूँ।

आज मैं कॉलेज स्टूडेंट हूँ। देश के एक नामी विश्वविद्यालय – ‘डॉ भीम राव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली’, में फाइनल ईयर में हूँ। यहां पहुँचने तक मेरे दोस्त, रिश्तेदार सभी ने काफ़ी सहयोग किया, क्यूंकि आप अकेले कुछ नहीं, सबके साथ रहके ही सब पा सकतें हैं। 

मुझे कॉलेज में भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, आर्थिक तंगी के कारण। साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा को ले कर जो आज भी बहुत मुश्किल लगती है और इस कारण अपने पाठ ख़तम करने में मुश्किल आती है। परन्तु मुश्किलों को पीछे छोड़ के आगे निकलना चाहती हूँ अपने लिए और अपने गाँव, अपने समाज के लिये कुछ करना चाहती हूँ। अपने तरह के बच्चों की हिम्मत बनना चाहती हूँ। सबका विश्वास जीतते आई हूँ और जीतना चाहती हूँ। ज़िंदगी में आपको किसी से सहायता मिले अथवा ना मिले हमें कोशिश हमेशा जारी रखना चाहिए। मुझे अब तक सबसे सहायता, प्यार और सम्मान मिला है और मुझे पूरी उम्मीद है जब तक मैं कोशिश करती रहूंगी, आगे बढ़ने की, तब तक यह मिलता रहेगा। 

मैंने सोचा है कि जब मैं काबिल बन जाऊँगी तो मैं भी किसी न किसी गरीब बच्चे को आगे बढ़ाने में ज़रूर सहायता करूंगी। 

फीचर्ड फ़ोटो आभार: पिक्साहाइव

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