कमला भसीन:
एक पिता अपनी बेटी से कहता है –
पढ़ना है! पढ़ना है! तुम्हें क्यों पढ़ना है?
पढ़ने को बेटे काफ़ी हैं, तुम्हें क्यों पढ़ना है?
बेटी पिता से कहती है –
जब पूछा ही है तो सुनो मुझे क्यों पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है
पढ़ने की मुझे मनाही है सो पढ़ना है
मुझ में भी तरुणाई है सो पढ़ना है
सपनों ने ली अंगड़ाई है सो पढ़ना है
कुछ करने की मन में आई है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है
मुझे दर-दर नहीं भटकना है सो पढ़ना है
मुझे अपने पाँवों चलना है सो पढ़ना है
मुझे अपने डर से लड़ना है सो पढ़ना है
मुझे अपना आप ही गढ़ना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है
कई जोर जुल्म से बचना है सो पढ़ना है
कई कानूनों को परखना है सो पढ़ना है
मुझे नये धर्मों को रचना है सो पढ़ना है
मुझे सब कुछ ही तो बदलना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है
हर ज्ञानी से बतियाना है सो पढ़ना है
मीरा-राबिया का गाना गाना है सो पढ़ना है
मुझे अपना राग बनाना है सो पढ़ना है
अनपढ़ का नहीं ज़माना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है।