देश के युवा, आईएएस के “साहब” और संसाधनो का बेतरतीब आवंटन

डॉ. गणेश मांझी:

2019 में लगभग 11.35 लाख और 2020 में लगभग 10.6 लाख लोगों ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए आवेदन दिए थे और उनमें से लगभग आधे लोग प्रारंभिक परीक्षा के लिए उपस्थित हुए। 2019 में 929 लोगों का और 2020 में 796 लोगों का अंतिम रूप से चयन हुआ है। हरेक स्तर पर जांच करने से पता चलता है कि 1 सीट के पीछे लगभग 1200 से 1300 लोग आवेदन देते हैं और 1 सीट के पीछे 610 लोग प्रारम्भिक परीक्षा में बैठते हैं| हरेक सीट के पीछे 13 लोगों को मुख्य परीक्षा के लिए बुलाया जाता है। साथ ही 1 सीट के पीछे 2-3 लोगों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। 

भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन अत्यधिक अनिश्चितताओं का खेल है, जहाँ वास्तव में चयन नहीं बल्कि बाहर निकालने का काम ज़्यादा होता है। ब्रिटिश इंडिया की ठाट-बाट को विरासत के रूप में स्वीकारने वाला स्वतंत्र भारत ने इस ऑफिस के ‘साहब’ वाली प्रतिष्ठा को सर पर चढ़ा रखा है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन, समाज और परिवारों में प्रतिष्ठा और प्रतिस्पर्धा का विषय बन गया है। इस प्रतिस्पर्धा में 20 से 25 के बीच का मूलयवान उम्र कितने ही युवा गँवा देते हैं। बहुत से युवाओं के पास कोई प्लान-बी या प्लान-सी नहीं होने की वजह से वह कोई और नौकरी करने के लायक भी नहीं रह जाते हैं। साथ ही यूपीएससी के स्कोर को किसी और परीक्षा के लिए मान्य नहीं रखना (किसी-किसी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए यूपीएससी के प्राप्तांक को इस्तेमाल किया जाने लगा है), जो लोग चयनित नहीं हो पाए उनके लिए काफी बड़ा घाटे का सौदा है। 

विज्ञान पढ़ना-पढ़ाना, इंजीनियर और डॉक्टर के पेशों को भी समाज में प्रतिष्ठा का विषय बना दिया गया है। मतलब मेरा बेटा इंजीनियरिंग है या भारतीय प्रशासनिक सेवा में है तो समाज हमें सैल्यूट करेगा, अन्यथा हमें सामाजिक ढांचे में नीचले स्तर का समझा जाएगा सामाजिक ताना-बाना, और प्रतिष्ठा का विषय बहुधा युवाओं के अपने सपनों के लिए बोझ बन जाता है, जिससे बचा जा सकता है| वहीं, दूसरी ओर प्रशासनिक अधिकारियों का आम लोगों से जुड़ाव नहीं होना, भ्रष्टाचार नहीं रुकना, विश्व की प्रजातान्त्रिक श्रेणी में नीचे जाने की खास वजह बन गयी है। 

प्रशासनिक अधिकारियों का सिर्फ राजनीतिक इस्तेमाल होना, उनमें निहित ज्ञान और क्षमता का दुरूपयोग ही है। कुछ लोग जरूर हैं, जो अपनी 40 साल के नौकरी जीवन में 55 बार स्थानांतरित किये गए हैं। क्यों का जवाब ढूँढना मुश्किल नहीं है। वर्षों तक प्रशासनिक सेवा की तैयारी में समय गंवाने के बाद इनकी क्षमता का देश के विकास में इस्तेमाल नहीं होना मानव संसाधन की बर्बादी ही है। देश में हर प्रकार का सकारात्मक उत्पादकता सम्बंधित कार्य देश को उन्नति की ओर ले जाएगा| प्रतिष्ठा के आधार पर सेवा का विभाजन और इस आधार पर सामाजिक विभाजन और इसकी स्वीकार्यता प्रजातान्त्रिक मूल्यों से दूर होना ही है।

अर्थव्यवस्था के समुचित विकास के लिए संसाधन का आवंटन बहुत ही महत्वपूर्ण है, साथ ही सामाजिक और राजनीतिक तौर पर उत्पन्न तथाकथित सामाजिक प्रतिष्ठा के समुचित आवंटन की भी सख्त ज़रुरत है। उदाहरण के तौर पर एक डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक या बैंककर्मी में किसी एक को सामाजिक रूप से अधिक प्रतिष्ठित बनाना और दूसरे को कमतर समझना/ बनाना संसाधन के दुरूपयोग के लिए रास्ता बनाना है, क्यूंकि प्रतिष्ठा और पैसे की ओर सभी लोग भेड़ की तरह भागेंगे। इससे तो उनकी उत्पादकता घटेगी ही, साथ ही गैर बराबरी को भी बढ़ावा मिलेगा। संसाधन का समुचित आवंटन हमारे देश में बहुत बड़ी समस्या है, जैसे कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक लोगों का होना उनकी उत्पादकता को कम कर देता है, उसी प्रकार किसी एक क्षेत्र की ओर अत्यधिक लोगों का रुख़ करना उनकी उत्पादकता को कम कर देगा। समुचित विकास के लिए सामान भागीदारी, और साथ ही समान प्रतिष्ठा भी अति-आवश्यक है।

कमोबेश खेल का क्षेत्र भी ऐसा ही कुछ है। अभी हर गांव का बच्चा क्रिकेट खेलना चाहता है। ऐसा क्यों है, शायद हमें बताने की ज़रूरत नहीं है। हर राज्य, हर गांव में सभी प्रकार के खेलों के लिए ढाँचागत निर्माण बहुत ज़रूरी है ताकि युवा अपनी क्षमता के अनुसार उनका चयन कर सकें और आगे बढ़ सकें| जहाँ कहीं भी किसी एक ही क्षेत्र को बढ़ावा, प्रतिष्ठा, और पैसा मिलेगा, लोग भेड़ की भांति ही प्रतिष्ठा, पैसे, और पावर की ओर रुख़ करेंगे| सरकारें भीड़ से थोड़ा-बहुत राजस्व जुटा तो लेंगी लेकिन युवा की ऊर्जा का, उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी। परिणामस्वरुप, समय के साथ इस पर अगर सुधार नहीं हुआ तो युवावों से भरा ये देश, संसाधन और इनकी ऊर्जा को बर्बाद ही करेगा।

फीचर्ड फोटो आभार: गूगल

Author

  • डॉ गणेश / Dr. Ganesh

    डॉ गणेश मांझी, झारखण्ड के सिमडेगा जिले के युवा स्कॉलर हैं। वे अभी गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) के रूप में कार्यरत हैं। उन्हे आप इस ईमेल आईडी पर संपर्क कर सकते हैं : gmanjhidse@gmail.com

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