पप्पू आर्य –
(किसानों की दुर्दशा दर्शाता एक गीत)
हम हैं किसान, हम हैं किसान …. हम हैं किसान,
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान – 2
हल जोड़ी जोतकर, खून पसीना बहाकर – 2
फसल भी हमने पकाई…
फसल भी हमने पकाई..
हम हैं किसान, हम हैं किसान …. हम हैं किसान,
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान – 2
ज्वार हमने पकाई, बाजरा हमने पकाया – 2
मक्का भी हमने पकाया
मक्का भी हमने पकाया….
दुनिया को खिलाने वाले हम हैं किसान,
दुनिया का पेट भरने वाले हम हैं किसान
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान
हम हैं किसान, हम हैं किसान …. हम हैं किसान,
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान – 2
तुअर हमने पकाई, उड़द हमने पकाई – 2
चना भी हमने पकाया…
चना भी हमने पकाया…
दुनिया को खिलाने वाले हम हैं किसान,
दुनिया का पेट भरने वाले हम हैं किसान
हम हैं किसान, हम हैं किसान …. हम हैं किसान,
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान
खेती हमने की है, मज़दूरी भी की है – 2
भवन भी हमने बनाया…
भवन भी हमने बनाया…
फिर भी रे भाई दाम नहीं,
फिर भी रे सही दाम नहीं – 2
हम हैं किसान, हम हैं किसान …. हम हैं किसान,
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान
कभी पानी आया है, कभी ना आया रे,
कभी ज़्यादा पानी रे,
कभी कम पानी रे…
ख़राब मानसून में हुआ किसान परेशान… – 2
किसान परेशां हुआ रे…
आत्महत्या का बोझ बना – 2
हम हैं किसान, हम हैं किसान …. हम हैं किसान,
इस देश को चलाने वाले हम हैं किसान
दुनिया का पेट भरने वाले हम हैं किसान – 3
