बस चीज़ें बटोर लेने से आसान नहीं होता जीवन का सफर

फ़हीम अंसारी:  

एक दिन एक बुनकर सेठ के दो कारीगर आपस में विभिन्न मुद्दों को लेकर उलझे हुए थे। एक कारीगर दुनिया की चकाचौंध की बात कर रहा था कि ज़िंदगी एक बार मिली है! इतना कुछ कमा लिया जाए जिससे दुनिया के सभी ऐश और आराम मिल जाएँ, परिवार और बच्चों के लिए भी संसाधन जुट जाएँ। वहीं दूसरा कारीगर कह रहा था कि फकीरी में जो बात है वो किसी में नहीं, दरअसल वो फकीरी मे अपनी आस्था रखता था। ये बात सेठ तक पहुंची कि आपके दो कारीगर उलझे हुए हैं और अब आप ही फैसला कर दें तो बेहतर होगा। सेठ ने कहा कि मैं ऐसे ही फैसला नहीं दूंगा और दोनों को एक काम दूँगा, उसके बाद ये लोग खुद ही समझ जाएंगे कि क्या सही है और क्या गलत है। 

पहला कारीगर जो विलासिता की तरफदारी कर रहा था, उसे सेठ ने एक खाली बोरी दी और फ़कीरी के पैरोकार दूसरे कारीगर को खाने-पीने की सामग्री से भरी हुई बोरी दी। दोनों समझ नहीं पा रहे थे तो उन्होने सेठ से पूछा, ‘अब क्या करना है?’ सेठ ने पहले कारीगर से कहा, “आपको यहाँ से 10 किलोमीटर की दूरी तय कर करनी है और खाली बोरी में रास्ते में जो भी क़ीमती चीज़ मिले उसे बटोरते जाना है।” वहीं दूसरे कारीगर से सेठ ने कहा, “रास्ते में जहाँ भी कोई गरीब या ज़रूरतमंद दिखे उसे आपको बोरी में रखा सामान तकसीम करते (बाँटते) जाना है।” 

दोनों कारीगरों ने चलना शुरू किया। पहला कारीगर खाली बोरी मे क़ीमती चीज़ें बटोरने लगा, अंत मे उसकी बोरी उन चीजों के वज़न से इतनी भर गई कि उसके लिए चलना ही मुश्किल हो गया और वह मंजिल तक पहुँच नहीं पाया। वहीं दूसरा कारीगर लोगों की मदद करता गया और बोरी में रखा सामान बाँट देने से उसकी बोरी हल्की होती चली गई, और वह आसानी से मंज़िल तक पहुँच गया। 

इस कहानी से एक छोटी सी सीख हम सब को मिलती है कि सारा जीवन हम कुछ ना कुछ बटोरते रहते हैं।  लेकिन यह याद रहे कि एक उम्र के बाद आपसे यह कोई नहीं पूछेगा कि अपने कितना सामान बटोरा? आपसे यही पूछा जाएगा कि आपकी सेहत कैसी है, या आपके बच्चे क्या करते हैं? हमारी असल संपति तो आने वाली पीढ़ी है जिसे बेहतर बनाने पर हमें अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए और हमारी सेहत ही आखिरी तक हमारा साथ देने वाली है। लेकिन कई बार हम इन दोनों को ही छोड़कर ऐसी भागदौड़ में लग जाते हैं कि बस क़ीमती सामान ही बटोरते रह जाते हैं और अंत में जीवन के सफर में चलना मुश्किल हो जाता है। गौर कीजिए कि आपको अपना समय और ध्यान कहाँ लगाना है? मंजिल तक बोझ के साथ पहुँचना है या फिर हल्के हो के जाना है? 

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