समाज में प्रचलित अंधविश्वास और इससे हो रहे नुकसान 

जागृति:

वर्तमान समय को लोग आधुनिक काल कहते हैं, जिसमें लोग विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की कर रहे है और लोगों का जीवन वैज्ञानिक तथ्यों से घिरा हुआ है। लोगों के निजी जीवन से लेकर उनके कार्यक्षेत्रों तक में वैज्ञानिक उपकरणों का ही उपयोग होता है। साथ ही मनुष्य के शरीर में होने वाले रोगों से बचाव के लिए भी विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है, जिससे अब मनुष्य एक लम्बे समय तक निरोगी जीवन जी सकता है। इतने सारे वैज्ञानिक तथ्य होने के बावजूद आज भी दुनिया मे अंधविश्वास  फैला हुआ है। आज भी हर घर मे अंधविश्वास को मानने वाले लोग मौजूद हैं। लोगों के जीवन में आने वाली मुसीबतों का सामना परिश्रम से ना करके लोग अंधविश्वास का सहारा लेते हैं। और तो और यह भी देखा गया है कि लोग अपने आस-पास के लोगों को भी यह सब मानने को कहते हैं या मनवाने का प्रयास करते/करवाते हैं। 

हमारे क्षेत्र मे लोग कई तरह के टोने-टोटके, झाड़-फूँक, उतारा, काला जादू और नज़र से बचने के लिए नज़रबट्टू आदि पर विश्वास करते हैं। यहाँ पर लोग अभी भी बच्चे के बीमार होने पर डॉक्टर को दिखाने से पहले किसी बाबा, मौलवी या पंडित से अपने बच्चों को दिखवाते हैं, जिससे बच्चों का शरीरिक और मानसिक तनाव  बढ़ता ही है। बच्चों को बाबा बैरागी से नज़र झड़वाने और उनकी सलाह से डॉक्टर को न दिखाने के कारण बच्चों की बीमारी और बिगड़ जाती है। ज्यादातर तो यही देखने को मिलता है कि अंधविश्वास के चलते लोग बीमारी का उपचार नहीं कराते और जब हालत ज्यादा खराब हो जाती है तो आखिर मे डॉक्टर के पास ही जाते हैं, और उस वक़्त डॉक्टर भी उसका उपाचर करने मे असमर्थ हो जाता है l बीमारी की अवस्था मे कई लोगों की मृत्यु अंधविश्वास के कारण ही होती है। 

वयस्कों के साथ-साथ युवाओं के बीच भी अंधविश्वास देखा जा सकता है। अक्सर देखने को मिलता है कि वह अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं, भविष्य में रोज़गार पाने के लिए परिश्रम न करके कई युवा अंधविश्वास का सहारा लेते हैं। अच्छी नौकरी, धनप्राप्ति के लिए लोग कछुए की अंगूठी, मेरु रिंग, नवरत्न अंगूठी और जाने क्या-क्या पहनते हैं। उनका मानना होता है कि इन अंगूठियो के धारण से धन की प्राप्ति होती है, कई युवा अपने विवाह से लेकर पुत्र प्राप्ति तक के लिए बाबाओं के पास जाते हैं, ऐसे कई मामलों में महिलाओं के साथ मानसिक और शरीरिक शोषण की घटनाएँ भी सुनने में आती हैं। यह सब बड़े पैमाने पर गाँवों और शहरों में फैला हुआ है। 

कई मामलों में जब मानसिक स्थिति सही ना होने के कारण लोग अलग तरह की हरकतें करने लगते हैं, ऐसे में लोग इसको मानसिक बीमारी न मानकर भूत-प्रेत का नाम दे देते हैं और अलग-अलग बाबा-बैरागियों से टोटका करवाते हैं। इन सभी के कारण रोगी की मानसिक हालत और बिगड़ जाती है।

अंधविश्वास के कारण समाज में लोगों में एक दूसरे के प्रति दुर्भावना भी बढ़ रही है। लोग एक दूसरे पर टोने-टोटके करने का आरोप लगाते हैं और इसमें भी महिलाओ और किशोरियों के साथ शोषण ज़्यादा होता है। युवा परिश्रम न करके, ऐसे तरीकों से सफल होने की दिशा ढूंढते हैं जिनमें वो खुद ही उलझ कर रह जाते है। इससे उनका मानसिक तनाव बढ़ता है और अंधविश्वास के कारण वह अपने बचत-पूंजी को दांव पर लगा देते हैं जो कि एक चिंता का विषय है। 

फोटो आभार: dw.com

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  • जागृति सोनकर / Jagriti Sonkar

    जागृति, दिलकुशा फैज़ाबाद की रहने वाली हैं और 5 सालों से समुदाय में शिक्षिका के रूप में काम कर रही हैं। जागृति उन किशोरियों को पढ़ाने का काम करती हैं जो कई कारणों से स्कूल नहीं जा पाती या जिन को स्कूल छोड़ना पड़ता है। वे महिलाओं के कानूनी हक-अधिकारों को लेकर फैज़ाबाद के 10 समुदायों में अवध पीपुल्स फोरम के साथ काम करती हैं। जागृति ने एन.टी.टी किया है और संविधान मित्र मंडली के समूह का संचालन करती है। इनके साथ 500 किशोरियाँ जुड़ी है जो अपनी ज़िंदगी को शिक्षा के माध्यम से बेहतर कर रही है।

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