शिव:
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर1875 को ग्राम उलीहातू अड़की प्रखंड छोटा नागपुर पठार रांची में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना मुंडा व माता का नाम करमी देवी था।
एक 25 साल का नौजवान लड़का धरती आबा कैसे बन गया? कैसे अंग्रेजी हुकुमत सेठ साहुकार, जमींदार, पूंजीपतियों की मात्र 25 साल में ईट से ईट बजा दी थी? जब 8वीं क्लास के बच्चों का ध्यान शिक्षा पर होता है, तब ये नौजवान इन गोरे अंग्रेजों को झारखण्ड से कैसे भगाया जाये इस पर ध्यान लगा रहा था?
बिरसा मुंडा महान आदिवासी योद्धा के रूप में जाने जाते हैं।
बिरसा मुंडा जयंती को भाजपा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री व प्रधान मंत्री ने ‘जनजाति गौरव दिवस’ के रूप में मनाया, जो मेरे हिसाब से बिरसा मुंडा व आदिवासियों का अपमान है। मुझे इस समारोह से कोई समस्या नहीं है। धरती आब का जन्मदिन पूरे विश्व के लोगों को मानना चाहिए। लेकिन मुझे ‘जनजाति दिवस’ शब्द से आपत्ति है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि, यह बात तो सही है कि संविधान में मुसलमान व ईसाई को अल्पसंख्यक कहा गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, को सवर्ण जाति कहा गया है और दलित को अनूसूचित जाति और आदिवासी को अनूसूचित जनजाति कहा गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी मूल पहचान ही भूल जाए। यह केवल आर्थिक, जनसंख्या और क्षेत्र के आधार पर है।
हम अनूसूचित जनजाति शब्द का सम्मान करते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि हम इसे अपनी मूल पहचान मान लें। हमारी मूल पहचान आदिवासी है और आदिवासी ही रहेगी।
पहले आदिम जाति मंत्रालय हुआ करता था, जिसका नाम बदलकर जनजाति मंत्रालय कर दिया गया है। वैसे ही सत्तासीन लोग आदिवासी शब्द को खत्म करने में लगे हुए हैं। जनजाति, वनवासी जैसे शब्द हमारे आदिवासियों के ऊपर थोपना चाहते हैं। हमें यह कतई मंजूर नहीं है। हमारा आदिवासी समाज अशिक्षित, गरीब, भोला-भाला होने से शब्द के खेल को समझ नहीं पा रहा है। शिक्षित वर्ग सरकार के दबाव में खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा है। जिन आदिवासी कर्मचारियों की ड्यूटी भोपाल कार्यक्रम में लगी थी, वें खुद जनजाति शब्द का विरोध नहीं कर सके, क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी जाने का डर था।
अब जनजाति गौरव दिवस तो मना लिया लेकिन क्या ये अब परशुराम की जयंती पर सवर्ण जयंती मनाएंगे या महाराणा प्रताप की जयंती पर? या डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर गौरव जाति दिवस मनाएंगे? डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम की जयंती पर गौरव अल्पसंख्यक जयंती मनाएंगे? इस प्रकार भारत में रहने वाले समुदायों के महापरूषों की जयंती पर गौरव दिवस मनाते रहेंगे और शब्दों के खेल से उन्ही समुदायों का अपमान करते रहेंगे या ये केवल आदिवासियों का ही अपमान करते रहेंगे?